Saturday 21 January 2012

आँखि मे चित्र हो मैथिली केर


आँखि  मे चित्र  हो मैथिली  केर
(गीत)






आँखि  मे चित्र  हो मैथिली  केर, आ  हृदय  मे माटिक ममता ।
माएक सेवा मे जीवन बीता दी, बस इएह एकटा होइए सिहन्ता ।।

अछि  करेजाक  टुकड़ी  हमर  ई  तिरंगा ।
धमनी  मे  हिमालय  आ शोणित मे गंगा ।
अछि  हमरा  ऐश्वर्यक  कोनो  चाह  नञि ।
बाट   चलिते   विपत्तिक   परवाह  नञि ।
हम  टुटि जा सकै छी, पर झुकि ने सकब ।
तुफानोक  भय  सँ हम  रुकि  ने  सकब ।
हमरा  संग  संग  बहय  उनचासो  पवन ।
बान्हि  लेने  छी  तेँ माथ मे  हम कफन ।
हम  रही - ने  रही,    तिरंगा   रहय ।
ई  हिमालय   रहय  आ  ई  गंगा  रहय ।
फेर  बनवास  ने होन्हि  रामक, आ  जंगल मे कानथि ने सीता ।
माएक सेवा मे जीवन बीता दी, बस इएह एकटा होइए सिहन्ता ।।

कल्पना   मे   करोड़ो   नदी   आ  नहरि ।
भावना  मे   हो   लाखों   समुद्रक  लहरि ।
चिन्तन  मे   उठैत  अछि   तेहने  लहास ।
जेना  हाथ  होथि  ओरने  भगत आ सुभाष ।
माटि  चमकैए  माथ  पर  जन्मभूमि  केर ।
हमर  कर्मभूमि  केर,  हमर धर्मभुमि  केर ।
जतऽ  खल- खल जानकीक  आङ्गन  हँसय ।
आ  चकमक   सावित्रीक   कङ्गन   करय ।
वीण  अपनहि  बजाएब  हम  भारतीक मित्र ।
मरितो दम तक सजाएब हम  मैथिलीक चित्र ।
गीत मे राखि क्रान्तिक ज्वाला, सरगम मे विजय केर भनिता ।
माएक सेवा मे जीवन बीता दी, बस इएह एकटा होइए सिहन्ता ।।



मिथिला दर्शन” , सितम्बर अक्टूबर २०११, वर्ष ५९, अंक ५, पृष्ठ ३९ पर प्रकाशित ।

1 comment:

  1. बहुत नीक । बच्चहि सँ सुनैत अाबि रहल छी ई गीत ।

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