सभटा
सोनारकें नहि गढ़बाक कला होइछ
(गजलक समीक्षा : पोथी ‘लेखनी एक रंग अनेक’)
एकटा समय छल जखन मैथिली गजलक नामपर जे किछु लीखल जा
रहल छल तकरा भक्ति-भावसँ लोक ग्रहण करैत जा रहल छल |
समय बदलल |
ओकरा राजनीतिक चश्मासँ देखल जाए लागल |
मुदा रचना स्वस्थ दृष्टिसँ नहि पढल जा रहल छल |
प्रगति भेल अछि |
आब ठीकसँ पढल जा रहल अछि |
ओ गजल अछियो कि नहि सेहो देखल जा रहल अछि |
कोनहु रचनाक सार्थकता सेहो अहीमे अछि जे ओकरा
स्वस्थ दृष्टिसँ पढल जाए, ओकर समीक्षा हुए, कमजोर पक्षक आलोचना हुए, नीक पक्षक प्रशंसा
हुए | मुदा, सभसँ पहिने त ई देखब जरूरी अछि जे ओ रचना जाहि विधाक लेल लीखल गेल अछि
ओकर योग्यता रखैत अछि कि नहि |
मैथिली गजलकें भक्ति-भावसँ अथवा राजनीतिक दृष्टिसँ
देखब ओकर उपेक्षा करब हएत |
जाहि समयमे, मैथिलीमे गजलक व्याकरण उपलब्ध नहि छल, 111 टा रचना ल’ क’ ‘लेखनी एक रंग अनेक’ प्रकाशित भेल छल, ओहि समय ई एकटा स्पष्ट
घोषणा छल जे मैथिलीमे गजल अवश्य लीखल जा सकैत अछि | ई एकटा क्रान्ति छल किएक त ओहि
समय किछु साहित्यकार कहैत छलाह जे मैथिलीमे गजल लिखले नहि जा सकैत अछि | एहि
धारणाक खण्डन छल ई संग्रह |
रचनाकारक गीते जकाँ तथाकथित किछु शेर सभ लोककें
आकर्षित केलक |
शब्द सभमे गीतहि जकाँ वैह मिथिलाक माटि-पानि आ
बसातक सुगन्धि !
मिथिला मिहिरमे पढल किछु शेर सभ ह्मरहु बहुत
आकर्षित केलक :
‘हम जे मैथिल थिकहुँ से मूर्ख कालिदास सन
जतय बैसल
छी सैह डारि काटि रहल छी’
‘चली जखनसँ सदिखन सोची एखन दहिन की बाम चलै छी
राखू अपने विश्व-नगर भरि, हम त अपना गाम चलै छी’
‘सुखकेर हो
कि दुखक बीतैये घड़ी सभटा
हो बाँस आ
कि बेंतक टुटैये छड़ी सभटा’
एहि संग्रहक रचना सभक जन्म अस्पतालमे भेल छल |
अस्पतालसँ बाहर आबि ई शेर सभ दहाड़ मारिक’ चिकरल :
‘गजल मैथिलीक मर्म आब जानि लेने छैक
गजल मिथिलामे घर अपन बान्हि लेने छैक’
जे सभ कहैत छलाह जे मैथिलीमे गजल नहि लिखल जा सकैत
छैक, सभ शान्त भ’ गेलाह |
गीतक महाराजक अश्वमेघक घोड़ा निकलि गेल गजलक मैदानमे
|
लव-कुशक हाथें पकड़ल गेल घोड़ा |
रामक कृत्यक
सार्थकता सेहो अहीमे अछि जे घोड़ा पकड़ल जाए लव-कुश द्वारा |
अनचिन्हार आखरक साइटपर गजेन्द्र ठाकुर आ आशीष अनचिन्हार
द्वारा गजल शास्त्र एलाक बाद जाँच-पड़ताल हुअ’ लागल जे गजलक नामपर जे किछु लिखा रहल
अछि से गजल अछियो कि नहि |
ई पाछाँ मूहें घुसक’ बला बात नहि भेलै |
ई पछिला पीढ़ीक कृत्यकें आगाँ ल’ जेबाक, गौरव प्रदान
करबाक,ओकरा परिपूर्ण करबाक, स्वस्थ आ समृद्ध करबाक दिशामे आन्दोलन भेलै |
हमहूँ त भक्ति –भावसँ सभ रचनाकें गजल मानिए नेने
रही | अनचिन्हार आखर साइटपर उपलब्ध व्याकरणसँ परिचित भेलाक बाद ई पोथी पढ़ि जे किछु नीक –बेजाए देखबामे आएल अछि ताहिसँ अवगत करयबाक
प्रयास क’ रहल छी :
(1) 109 टा गजलमे 587 टा शेर अछि | एहि संग किछु ‘कतआ’ अछि
|
(2) 26 टा बिना रदीफक गजल अछि |
( 3 ) 5 टा गजलमे मतलाक अभाव अछि |
( गजल क्रमांक 35,42,45,54,90 )
(4) 4 टा गजलमे रदीफ मतलामे अछि मुदा ओकर पालन सभ शेरमे नहि भेल
अछि |
( गजल क्रमांक :49,62,81,82 )
( 5 ) 9 टा गजलक कयटा शेरमे समान काफियाबला शब्द अछि |
(गजल क्रमांक :65,68,72,77,89,103,105,107,108)
( 6 )10 टा गजलक मतला छोड़ि सभ शेरमे अनुपयुक्त काफियाबला शब्द अछि |
(
गजल क्रमांक :5,10,11,23,41,43,62,70,83,93 )
(7 ) 7 टा गजलक मतलामे काफिया नियमित नहि अछि |
( गजल
क्रमांक :48,50,63.99,100,101,106 )
(8) 16 टा गजलक एक अथवा अधिक शेरक काफियाबला शब्द सभ उपयुक्त नहि
अछि |
( गजल क्रमांक : 15,21,25,29,30,31,46,49,59,75,86,87,88,94,97,109 )
(9)रचना सभ ओहि समय लिखल गेल
अछि जखन रचनाकारक पयरमे प्लास्टर पड़ल छलनि, ओ अस्पतालमे छलाह |
(10)भरिसक मैथिली गजलक नामपर
एतेक संख्यामे रचनाक ई पहिल संकलन अछि |
(11)कतहु-कतहुसँ किछु गजलक
अवलोकनसँ पता चलैत अछि जे बहरक उपेक्षा भेल अछि |
(12) किछुए रचनाकें छोड़िक’ सभक
अंतिम दू-पाँतीमे रचनाकारक नाम अछि |
(13)नमहर भूमिका द्वारा पाठककें
आतंकित करबाक अथवा रचनाक त्रुटिकें झाँपन देबाक प्रयास नहि कयल गेल अछि, रचना सभमे
पाठककें गुद्गुदयबाक, आनन्द प्रदान करबाक आ जीवनक विभिन्न पक्षक रहस्यकें शालीनताक
संग प्रस्तुत करबाक सामर्थ्य छैक |
उदाहरणस्वरूप किछु पाँती प्रस्तुत कएल जा रहल अछि :
‘जतय सभ किछु देखार, जकर सभ किछु नुकैल
गजल गागरमे सागर तमाशा थिकैक’
‘मोट मडुआकेर रोटीपर रैंचीकेर साग
गजल जीवन केर स्वादहु ठेकानि लेने छैक’
‘मनसँ मनकेर संचार-सेतु ओहि महासेतुकेर नाम गजल
कहलहुँ से गजल, सुनलहुँ से गजल, कहबामे कहू की शेष
रहल’
‘रवीन्द्र’ प्रेम-पंथी से छंदकार जानथि
किछुए गजल एहन जे पढ़बाले’ होइत अछि’
‘रवीन्द्र’ रह-रहाँ एतय होइत अछि एहन
कि जैह क’र मूँह धरी, ताहीमे केस’
‘दाग चेहराक हो कि वस्त्रक, सब दाग थिकै दागे
साधूकें छोड़ि चट-पट सब चोरकें धरक चाही’
‘औंठा ने कटय ध्यान रहय, एहि बातकेर
कि कोन गुरु केर अहाँ शिष्य बनल छी’
‘अस्मिताक प्रश्न अछि त एक भ’ ‘रवीन्द्र’
प्रगट होइत जाउ जे अदृश्य बनल छी’
‘धकियाय आगू गेल जे, बुधियार छल सब लोक से
नाव एखनहुँ अछि हमर, ओहिना पड़ल मझधारमे’
‘किछुओ ने बचा सकलहुँ किछुओ ने बचा पायब
सूझय ने जाल लेकिन, जंजालमे फसल छी’
‘दर्द अपन गुपचुप सह्बाले होइत अछि
हरेक बात नहि हरेककें कहबाले होइत अछि’
‘आँचर रह्य समेटल,बरु केस रह्य फूजल
किछु बात त चौपेतिक’ धरबाले’ होइत अछि’
‘ई बात खानगीमे कहबाक मोन होइछ
बैद्य एहन के जे चीन्हैये जड़ी सबटा’
‘बात केर बात अछि त एक बात हम कहि दी
कि बात, बात-बातमे हो, बात से जरूरी नहि’
‘गुलाब जलक शीशी भरि, पयर धोइत शोषक
नोरक इन्होरमे नहाइत अछि लोक’
‘गाइयो हँ, बड़दो हँ, एहने व्यवस्थामे
आँटाक सङे घून सन पिसाइत अछि लोक’
(14)संकलनक कोनो रचनामे मैथिलीसँ
इतर कोनो आन भाषाक शब्द नहि लेल गेल अछि |एहि दृष्टिसँ ई संकलन मैथिली गजल-लेखन
लेल पथ-प्रदर्शकक योग्यता रखैत अछि |मैथिली गजलक बहुमंजिला भवनकक निर्माणमे एहि संकलनक
आधारक उपयोग कयल जा सकैत अछि |
प्रकाशनक छत्तीस बरखक बाद एहि संकलनक समीक्षा कि आलोचनाक प्रस्तुति एकटा सादर आ सविनय आश्वस्ति अछि जे ‘लेखनी एक
रंग अनेक’ पढल गेल अछि, गुनल गेल अछि आ आदरणीय रवीन्द्र नाथ ठाकुर जी द्वारा रोपल गेल
गाछ आब फुला रहल अछि |
जगदीश चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’
पटना / 19.02.2022
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