तोरा की पता जे
मोने अछि बिछुड़नक घड़ी , आ आँखिक पिपनी तीतल । |
तोरा
बिना कोना हम रहै छी ।
मोन
केर बात ई मोने रखै छी ।
तोरा
की पता जे,
कोना
हम जिबै छी ?
अपन मोनक हरियर कागत पर,
लीखल तोरहि नाम ।
एको पल विश्राम करै छी ।
जाकऽ ओही ठाम ।
मात्र
ओही ठाम कने छाहरि देखै छी ।
ओही
ठाँ जा कऽ हँसै छी - गबै छी ।
तोरा
की पता जे,
कोना
हम जिबै छी ?
मोन पड़ैत'छि ओ दिन प्रियतम,
तोरा संग जे बीतल।
मोने अछि बिछुड़नक घड़ी ,
आ आँखिक पिपनी तीतल ।
नोरे
टा पीबिकऽ हमहूँ रहै छी ।
नोरेमे
डूबल ई जिनगी देखै छी ।
तोरा
की पता जे,
कोना
हम जिबै छी ?
तोरे स्नेह-शिखा पर अर्पित ,
कएने छी हम अपना केँ ।
मन-मंदिर मे पूजि रहल छी ,
तोरे प्रेमक प्रतिमा केँ ।
प्रतीक्षाक
उपवन सँ कुसुमो अनै छी ।
मोन
केर वेदना सँ प्रतिमा पुजै छी ।
तोरा
की पता जे,
कोना
हम जिबै छी ?
ताकि रहल छी तोरा सदिखन,
बिसरल गीतक पाँती मे।
टूटल निन्नक सपना मे,
आ जरल प्रेम केर बातीमे।
घुरिकऽ अतीत
सँ हम चल अबै
छी ।
स्मृतिक
दर्द मे तोरा पबै छी ।
तोरा
की पता जे,
कोना
हम जिबै छी ?
कथमपि टूटि सकै’छ ने कहियो,
निर्मल प्रेमक डोरी ।
जै डोरी मे युग-युग सँ अछि,
बान्हल चान-चकोरी ।
हृदयक
गगन केर
तोरे चन्ना बुझै छी ।
अपना
केँ तेँ हम चकोरो कहै छी ।
तोरा
की पता जे,
कोना
हम जिबै छी ?
कतेक जतन सँ लीखि रहल छी,
तोरा दू - टा आखर ।
उत्तर दीहेँ जुनि बनबिहें,
अपन हृदय कें पाथर ।
ई
जुनि लिखिहेँ जे हमहूँ कनै छी ।
लिखिहेँ
जे सदिखन हँसिते रहै छी ।
तोरे
खुशीक कामना हम करै
छी ।
तोरा
की पता जे,
कोना
हम जिबै छी ?
( १९७८ मे प्रकाशित गीत संग्रह 'तोरा अँगना मे' केर गीत क्र. २९ )
संगहि “गीतक फुलवारी” मे सेहो प्रकाशित ।
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