Thursday, 16 February 2012

तोरा की पता जे

तोरा की पता जे


मोने अछि बिछुड़नक घड़ी ,  आ आँखिक पिपनी तीतल 




तोरा बिना  कोना  हम रहै छी
मोन केर बात ई मोने रखै छी

तोरा की पता जे,
कोना हम जिबै छी ?




अपन मोनक हरियर कागत पर,
                   लीखल तोरहि नाम
एको  पल  विश्राम  करै  छी 
                      जाक ओही ठाम

मात्र ओही ठाम कने छाहरि देखै छी ।
ओही ठाँ जा क हँसै छी -   गबै छी  ।
                 
तोरा की पता जे,
कोना हम जिबै छी ?




मोन पड़ैत'छि ओ दिन प्रियतम,
                   तोरा संग जे बीतल।
        मोने अछि बिछुड़नक घड़ी ,
       आ  आँखिक पिपनी तीतल 

नोरे टा पीबिक  हमहूँ रहै  छी 
नोरेमे डूबल ई जिनगी देखै छी

तोरा की पता जे,
कोना हम जिबै छी ?




तोरे स्नेह-शिखा  पर अर्पित ,
      कएने छी हम अपना केँ
मन-मंदिर मे पूजि रहल छी ,
          तोरे प्रेमक प्रतिमा केँ

प्रतीक्षाक उपवन सँ कुसुमो अनै छी
मोन केर वेदना सँ  प्रतिमा पुजै छी

तोरा की पता जे,
कोना हम जिबै छी ?




ताकि रहल छी तोरा सदिखन,
          बिसरल गीतक पाँती मे।
   टूटल  निन्नक  सपना  मे,
     आ जरल प्रेम केर बातीमे।

घुरिकऽ अतीत सँ हम चल अबै छी ।
स्मृतिक  दर्द  मे    तोरा   पबै छी 

तोरा की पता जे,
कोना हम जिबै छी ?





कथमपि टूटि सकै’छ ने कहियो,
                   निर्मल प्रेमक डोरी ।
   जै डोरी मे युग-युग सँ अछि,
                 बान्हल चान-चकोरी ।

हृदयक गगन केर तोरे चन्ना बुझै छी ।
अपना  केँ  तेँ हम चकोरो  कहै छी ।

तोरा की पता जे,
कोना हम जिबै छी ?




कतेक जतन सँ लीखि रहल छी,
                  तोरा दू - टा आखर ।
             उत्तर दीहेँ  जुनि  बनबिहें,
                अपन हृदय कें पाथर ।

ई जुनि लिखिहेँ जे हमहूँ     कनै छी ।
लिखिहेँ जे सदिखन हँसिते रहै  छी  
                                              
तोरे खुशीक कामना हम करै  छी  

तोरा की पता जे,
कोना हम जिबै छी ?





( १९७८ मे प्रकाशित गीत संग्रह 'तोरा अँगना मे' केर गीत क्र. २९ )
संगहि “गीतक फुलवारी” मे सेहो प्रकाशित ।

                                        



                                                                 

No comments:

Post a Comment