से फगुआ खेलायत कोना कऽ
जकरा सोझाँ मे नेना कनै छै , “माँ की खैब ? भूख अछि लागल” । से पूआ पकाओत कोना कऽ, जकरा आँगन वसन्त नहि आयल ।। |
छै जेबी जकर खाली – खाली,
आ खरची घरक लटपटायल ।
से फगुआ खेलायत कोना कऽ,
जकरा आङन वसन्त नहि आयल ।।
बीस
बरखक तपस्या तऽ कैलक तखन,
भेटलैक
बड़कीटा डीगरी ।
से
दर - दर के ठोकर खेलक मुदा,
नहि
भेटलैक एकोटा नोकरी ।
जकर स्वप्नक महल ढहि गेलै,
छै आशा - कमल मुरुझायल ।
से डम्फा बजाओत कोना कऽ,
जकरा आङन वसन्त नहि आयल ।।
दऽ
आयल कते ठाम औना
– पथारी,
ने
भेटलैक पैंचे, ने भेटलै
उधारी ।
ने
घर मे छै चुटकी भरि मड़ुओ खेसारी ,
की
करतैक भानस, से चिन्ता छै भारी ।
बेकल
भऽ*
कनैत छैक गृहणी बेचारी,
कतऽ
छह बैसल हौ कृष्ण
– मुरारी !
जकरा सोझाँ मे नेना कनै छै ,
“माँ की खैब ? भूख अछि लागल” ।
से पूआ पकाओत कोना कऽ,
जकरा आँगन वसन्त नहि आयल ।।
नूआ
छै गुदरी आ धोती
छै
फाटल,
बौआक
अंगा पर चिप्पी छै साटल ।
बाँचल
छै
जकरा
घऽरे - घरारी ,
से
कीनत कोना नऽव धोती आ साड़ी ।
जकरा रहबा लेऽ एकटा मड़ैया ,
आ मड़ैया सेहो ढनमनायल ।
से रंग उड़ायत कोना कऽ,
जकरा आङन वसन्त नहि आयल ।।
जकरा रहबा लेऽ एकटा मड़ैया , आ मड़ैया सेहो ढनमनायल । से रंग उड़ायत कोना कऽ, जकरा आङन वसन्त नहि आयल ।। |
* Original print मे “बेकल भऽ” केर स्थान पर “शोकाकुल” शब्द आयल अछि, जे कि बाद मे हमरा युक्तिसंगत नञि बुझना गेल । “शोकाकुल” शब्द मैथिली मे प्रायः ककरो मृत्युक सन्दर्भ मे प्रयुक्त होइत अछि । तेँ आगाँ केर लेल एहि ब्लॉग पर देल गेल परिवर्तित पाठ केँ ग्राह्य मानल जाए ।
( १९७८ मे प्रकाशित गीत संग्रह “तोरा अङना मे” क गीत क्र. २२ )
संगहि “गीतक फुलवारी” मे सेहो प्रकाशित
।
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