देखि तोरा लगैए
देखि तोरा लगैए तहिना जेना
चान नभ सँ भूतल पर उतरि आएल हो |
दिने मे हो पसरल श्यामल घटा
जैमे आभा तरेगनक छिड़ियैल हो ||
दए रहल अछि , मूक निमंत्रण जेना
लाज सँ सकपकायलि पियासलि नयन |
बुझि पड़इए जेना स्नेह केर बाढ़ि मे
कपोलक दू सरोबर, उमड़ि आएल हो ||
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मधु बोरल अधर, अछि छिड़िया रहल
दाड़िम केर दाना सनक तोर दसन |
बुझि पड़इए जेना साओन मास मे
कतौ अम्बर मे बिजुरी छिटकि आएल हो ||
पुलकित भऽ उठइए एतय सब डगर
तोर साँसक चलय मलयानिल जतय |
बुझि पड़इए जेना चंदन – वन सँ
कस्तूरी वला मृग भटकि आएल हो ||
( १९७८ मे प्रकाशित गीत संग्रह 'तोरा अंगना मे' क गीत सं.५ )
संगहि “गीतक फुलवारी” फुलवारी मे सेहो प्रकाशित ।
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