अहाँ जँ ने अबितौं
सपनो मे कहियो
ने सोचने होयब जे,
अहाँ केर बिना हम
कोना रहि सकै छी ।
मिलन केर तरंग जे
हृदय मे उठइ छल,
प्रियतम अहाँ केँ
कोना कहि सकै छी ।
हमर घर अन्हारक अन्हारे रहैत,
अहाँ जँ ने अबितौं ! अहाँ जँ ने अबितौं !!
चञ्चल चितवन
सनक ई मनोरम,
अहाँ केर हृदय केर
उपवन ने रहितय ।
तऽ अहीं कहू
हे हमर प्राण प्रियतम,
मोनक ई कोइली
कहाँ जा कुहुकितय।
ई स्वप्नक वसंत असारे रहैत,
अहाँ जँ ने अबितौं ! अहाँ जँ ने अबितौं !!
दू मोनक ई हरियर
जँ धरती ने रहितय ,
तऽ कारी घटा ई
कहाँ जा बरसितय ।
अहाँ केर नोरक
जँ सागर ने बनितय,
तऽ उमतल नदी दू
कतऽ जा कऽ मिलितय।
साओनो मे सुखारक सुखारे रहैत,
अहाँ जँ ने अबितौं ! अहाँ जँ ने अबितौं !!
विरहक जँ ई तार
टूटल रहैत,
तऽ जिनगीक वीणा
बजबितौं कोना ।
अधरे मे जँ भास
हेरायल रहैत,
तऽ संगीत प्रेमक
सुनितौं कोना ।
ई श्रृंगारो बेकारक बेकारे रहैत,
अहाँ जँ ने अबितौं ! अहाँ जँ ने अबितौं !!
( १९७८ मे प्रकाशित गीत संग्रह 'तोरा अँगना मे'क गीत क्र.१७ )
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