Monday, 20 February 2012

ई प्रवाह मैथिलीक, कियो रोकि ने सकैए

     
ई प्रवाह मैथिलीक, कियो रोकि  ने सकैए







तीनि  कोटि* मैथिल, ताल ठोकि कऽ कहैए 
ई प्रवाह मैथिलीक,  कियो रोकि  ने सकैए ।।



व्यर्थ  हमर  जिनगी,
आ व्यर्थ हमर प्राण ।
हमर  दर्द    जँ  नञि,
बूझि सकल  संविधान।

हमर संस्कृति केँ कियो,  सोखि ने सकैए ।
ई प्रवाह मैथिलीक, कियो  रोकि  ने सकैए ।।



भीख  ने मँगइ छी,
अधिकार     चाही ।
आश्वासन ने लै छी,
व्यवहार     चाही ।

आँखि मे आब गरदा,कियो झोँकि ने सकैए ।
ई प्रवाह मैथिलीक, कियो रोकि   ने सकैए ।।



ई डेग जे  बढ़ल  अछि,
से  ता धरि ने  रूकत ।
हमर    माँग    एतबो,
जा  धरि   ने  पूरत ।

आब हमर गरदनि, कियो  मोकि ने सकैए ।
ई प्रवाह मैथिलीक, कियो रोकि  ने सकैए ।।






* ओहि समय मैथिलक जनसंख्या लगभग ३ कड़ोर छल ।





हमर ई गीत तत्कालीन मिथिलाक हर सांस्कृतिक मञ्च पर शशिकान्तजी आ सुधाकान्तजी द्वारा गाओल गेल आ स्रोता लोकनि द्वारा अतिशय सराहना पओलक ।





( प्रकाशित : मिथिला मिहिर  दि. २३.०१.१९८४ )




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