ई प्रवाह मैथिलीक, कियो रोकि ने सकैए
तीनि कोटि* मैथिल, ताल ठोकि कऽ कहैए ।
ई प्रवाह मैथिलीक, कियो रोकि ने सकैए ।।
व्यर्थ हमर जिनगी,
आ व्यर्थ हमर प्राण ।
हमर दर्द जँ नञि,
बूझि सकल संविधान।
हमर संस्कृति केँ कियो, सोखि ने सकैए ।
ई प्रवाह मैथिलीक, कियो रोकि
ने
सकैए ।।
भीख ने मँगइ छी,
अधिकार चाही ।
आश्वासन ने लै छी,
व्यवहार चाही ।
आँखि मे आब गरदा,कियो झोँकि ने सकैए ।
ई प्रवाह मैथिलीक, कियो रोकि ने सकैए ।।
ई डेग जे बढ़ल अछि,
से ता धरि ने रूकत ।
हमर माँग
एतबो,
जा धरि ने पूरत ।
आब हमर गरदनि, कियो मोकि ने सकैए ।
ई प्रवाह मैथिलीक, कियो रोकि ने सकैए ।।
* ओहि
समय मैथिलक जनसंख्या लगभग ३ कड़ोर छल ।
हमर ई गीत तत्कालीन मिथिलाक हर सांस्कृतिक मञ्च पर शशिकान्तजी
आ सुधाकान्तजी द्वारा गाओल गेल आ स्रोता लोकनि द्वारा अतिशय सराहना पओलक ।
( प्रकाशित : मिथिला मिहिर दि. २३.०१.१९८४ )
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