Wednesday, 15 February 2012

अन्हरा केँ जगने की ?


अन्हरा  केँ  जगने  की ?


कुदने  की ?   फनने की ?
अन्हरा   केँ  जगने  की ?

सड़क     ने   बिजली,
कुरसी    पकड़ने    की ?

पाप   बढ़ि   गेल  अछि,
गंगाजी  केँ   बहने  की ?

शासन     बहीर    अछि,
कहने  की ?  सुनने की ?

मोन  अछि   झमेला   मे,
राम  - राम   रटने  की ?

सब     ठाम    सुखराम,
अन्नाजी   केँ  सहने  की ?

शीलक     विचार     करू,
कुण्डली  टा  देखने   की ?


“विदेह” पाक्षिक इ पत्रिका वर्ष ५, मास ५०, अंक ९९ मे छपल ।



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