अन्हरा केँ जगने
की ?
कुदने की ? फनने की ?
अन्हरा केँ जगने की ?
अन्हरा केँ जगने की ?
सड़क आ ने बिजली,
कुरसी पकड़ने की ?
पाप बढ़ि गेल अछि,
गंगाजी केँ बहने की ?
शासन बहीर अछि,
कहने की ? सुनने की ?
मोन अछि झमेला मे,
राम - राम रटने की ?
सब ठाम सुखराम,
अन्नाजी केँ सहने की ?
शीलक विचार करू,
कुण्डली टा देखने की ?
“विदेह” पाक्षिक इ
पत्रिका वर्ष ५, मास ५०, अंक ९९ मे छपल ।
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