हम देश केर सिपाही
हम देश केर सिपाही ।
हम एक बात जानी ।
अइ देश केर पूत हम,
थिक नाम हिन्दुस्तानी ।। हम देश केर .........
मरिए
कऽ भेटय अमृत*
तऽ,
पीबिए
कऽ की करब ।
गुलाम
भइए जैब तऽ,
जीबिए
कऽ
की करब ।
लुटा ने सकै छी,
सुभाषक निशानी ।। हम देश केर........ .
हमरा
ले' एहि
धरतीक आगाँ,
स्वर्गो
एकदम तुच्छ अछि ।
हमरा
ले' आजादीक आगाँ,
जिनगी
एकदम छुच्छ अछि ।
बिसरि नै सकै छी ,
बियालिस केर पिहानी ।। हम देश केर .......
अछि
स्वतंत्रता हमर,
सपनाक ओ सरोवर ।
जाहि
मे हो देशक,
कते रत्न केर धरोहर ।
से गमा नै सकै छी,
हम राखि कऽ जुआनी ।। हम देश केर ......
खूनक
एकोटा
कतरा,
जा
धरि शरीर मे रहत ।
फहराइत
तिरंगा केँ,
कियो
झुका नै सकत ।
सहि नै सकै छी,
हम ककरो शैतानी ।। हम देश केर सिपाही .......
आँखि
देखयबाक उत्तर,
टाकु
भोंकि कऽ देबै ।
डेग
बढ़यबाक
उत्तर,
घेँट
छोपि कऽ देबै ।
चिकरि कऽ कहै छी,
चाहे मानी ने मानी ।। हम देश केर सिपाही ..........
* एहि ठाम अमृत केर मतलब मृत लोकनिक केँ फेर सँ जिआबए बाला अमृत नञि अपितु एहि ठाम अमृत केर मतलब थिक नीक वा दुर्लभ खाए – पीबए बाला वस्तु सभ ।
( १९७८ मे प्रकाशित गीत संग्रह 'तोरा अँगना मे' केर गीत क्र. ३० )
संगहि “गीतक फुलवारी” मे सेहो प्रकाशित ।
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