Sunday, 19 February 2012

हम देश केर सिपाही

हम देश केर सिपाही









हम  देश  केर  सिपाही
हम   एक  बात   जानी
अइ  देश  केर  पूत हम,
थिक  नाम  हिन्दुस्तानी ।।  हम देश केर .........




मरिए क भेटय अमृत* तऽ,
पीबिए      की  करब
गुलाम  भइए   जैब  तऽ,
जीबिए  कऽ   की  करब

लुटा  ने   सकै   छी,
सुभाषक    निशानी ।।  हम देश केर........ .




हमरा ले'हि धरतीक आगाँ,
स्वर्गो एकदम  तुच्छ अछि
हमरा  ले'  आजादीक  आगाँ,
जिनगी एकदम छुच्छ अछि

बिसरि   नै   सकै  छी ,
बियालिस  केर  पिहानी ।।  हम देश केर .......




अछि  स्वतंत्रता  हमर,
सपनाक   सरोवर
जाहि  मे  हो      देशक,
कते  रत्न केर    धरोहर

से  गमा  नै  सकै  छी,
हम  राखि    जुआनी ।। हम देश केर ......




खूनक  एकोटा   कतरा,
जा धरि शरीर मे रहत ।
फहराइत   तिरंगा   केँ,
कियो  झुका  नै सकत

सहि   नै   सकै   छी,
हम   ककरो   शैतानी ।।  हम देश केर सिपाही .......




आँखि  देखयबाक उत्तर,
टाकु  भोंकि     देबै
डेग   बढ़यबाक   उत्तर,
घेँट  छोपि     देबै ।

चिकरि क कहै छी,
चाहे मानी ने मानी ।। हम देश केर सिपाही ..........




* एहि ठाम अमृत केर मतलब मृत लोकनिक केँ फेर सँ जिआबए बाला अमृत नञि अपितु एहि ठाम अमृत केर मतलब थिक नीक वा दुर्लभ खाए – पीबए बाला वस्तु सभ



( १९७८ मे प्रकाशित गीत संग्रह 'तोरा अँगना मे' केर गीत क्र. ३० )
संगहि “गीतक फुलवारी” मे सेहो प्रकाशित ।



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