गहबर जे गेलौं
दुरगाथान जे गेलौं
काली सँ जे मंगलौं
मैया दुरगा सँ मंगलौं
दीयऽ मैया एको संतान हे
सुगना रे सुगना, रे सुगना |
थिर ने रहै छल दगधल छाती
केलहुँ कतेको कबुला - पाती
विभुत दियेलौं गोहारि करेलौं
ब्राह्मण खुएलौं कुमारि खुएलौं
धूमन चढेलौं दीप जे जरेलौं
आँचर पसारि कोखिक भीख जे मंगलौं
तइयो ने भेल कल्याण रे
सुगना रे सुगना,रे सुगना |.........
तोरा बिना अंगना अन्हार लगै छल
सगरो जिनगी पहाड़ लगै छल
छठ पावनि पुजलौं, चौठचंद्र पुजलौं
दिनकर सँ जे मंगलौं, चौठी-चान सँ मंगलौं
केरा घौड़ चढेलौँ, खीर पूरी जे चढेलौं
कोशिया कबूललौं ढाकन कबुललौं
हमरा ले' सभ बनला अकान रे
सुगना रे सुगना रे सुगना |.......
गेलौं शिवशंकरक शरण मे
लपटेलौं जा हुनके चरणमे
कुसेसर जे गेलौं, विदेस्सर जे गेलौं
कपलेश्वर जे गेलौं, भवानीपुर गेलौं
गौरी लग कनलौं, महादेव लग कनलौं
फूल - बेलपात आ गंगाजल चढ़ेलौं
कियो नहि देलनि धियान रे
सुगना रे सुगना, रे सुगना |.......
कमलो नहेने किछु नहि भेल
सिमरियो डूब देने कष्ट ने गेल
सभ तरि सँ थकलौं तऽ घर आबि बैसलौं
मोन मारि शुक्रक उपास तखन ठनलौं
धूप जे जरेलौं, दीप से सजेलौं
खीर जे चढ़ेलौं, गुड - पूरी जे चढ़ेलौं
अठमा दिन पर मैया संतोषी जी के पुजलौं
पुजितहि – पुजितहि दस मास पुजलौं
तऽ फेरि देलनि मैया धियान रे
सुगना रे सुगना, रे सुगना |
कह जय माँ संतोषी
जय जय माँ संतोषी |
(१९७८ मे प्रकाशित गीत संग्रह "तोरा अङ्गना मे" केर पृष्ठ ४ - ५, गीत सं - २)
संगहि “गीतक फुलवारी” फुलवारी मे सेहो प्रकाशित ।
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