Wednesday, 22 February 2012

किछु ने किछु सदिखन सिखबाक मोन होइए


किछु ने किछु सदिखन सिखबाक मोन होइए




पढ़बाक   मोन   होइए,  लिखबाक  मोन   होइए,
किछु  ने  किछु सदिखन, सिखबाक  मोन होइए ।

अन्हड़ जे  रातिखन  एलै,  सब गाछ  डोलि गेलै,
टिकुला  कतेक  खसलै,  बिछबाक  मोन  होइए ।

सासुर  इनार  होइए     डोल  थिकहुँ  हमहूँ,
किछु ने किछु  एखनहुँ,   झिकबाक मोन होइए ।

अहाँ आबि  जे रहल छी,  सुनिकऽ  बताह  भेलहुँ,
गोबर  सँ  आइ  आङन,  निपबाक  मोन होइए ।

दुइ  ठोर  थीक   अथवा  तिलकोर  केर  तड़ुआ,
होइत अछि लाज लेकिन,  चिखबाक  मोन होइए ।

कोनो  ऑफिसक  चक्कर, लगबऽ  ने पड़ै  ककरो,
ई बीया  विचार क्रान्तिक, छिटबाक मोन होइए ।

आजादीक  लेल   एखनहुँ,  संघर्ष   अछि  जरूरी,
व्यर्थ  गेल  सब माँगब,  छिनबाक  मोन  होइए ।



“विदेह” पाक्षिक इ पत्रिका वर्ष ५, मास ५०, अंक ‍१०० मे छपल ।

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