Sunday, 12 February 2012

युग कहैत अछि

                                 
युग कहैत अछि








युग  कहैत  अछि  हम ने कही
अपना जिनगीक अहीं छी मालिक
                     चाहे अपने जेना रही ।।



दू - तीन     बाउ
सँ  घर    बसाउ
बेशी   ले   मन
नै        ललचाउ 

अपने हाथ लगाम अहाँक अछि
                  चाहे अपने जेना उड़ी ।। ............


छोट - छीन          परिवार
अछि   सुख  केर    आधार
बेशी धीया-पूता सँ लागय
घर   हो  जेना     बाजार

स्वर्ग - नरक अपनेक हाथ अछि
                   चाहे अपने जत रही ।। .............


देखू  ई  दूध - कट्टु    बच्चा
आँखि धँसल छै पेट चभच्चा
आओत ई जहिया  दुनिया मे
गारि अहाँ केँ  देत   ई पक्का

भरि नै सकतै पेट   कोनहुना
             कत सँ भेटतै दूध-दही ।। ..........


नहि चिन्ता केर    कोनो प्रयोजन
करा लिय   परिवार - नियोजन
जतबे  अछि    ततबे  ले   चाही
समुचित शिक्षा, समुचित भोजन

पीड़ित परिवारक भारेँ छथि
             काँपि रहल भारतक मही ।। ...........


माँगि रहल अछि देश अहाँ सँ
स्वस्थ        सुखी        सन्तान
तखने  होयत   परिवारक   संग 
भरि      देशक        कल्याण

अछि कर्तव्य पुनीत अहाँ ले
                चाहे अपने जेना करी ।। .................





(१९७८ मे प्रकाशित गीत संग्रह तोरा अङना मे केर गीत क्र. २३)

                 

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