कहने तऽ जाउ
बात कहलौं कते, ने बिगड़बै अहाँ ।
मुदा जाइते ने सभटा बिसरबै अहाँ ।
से कहने तऽ जाउ फेर कहिया एबै ?
कहिया एबै ?
ओहू बेर, कते हम केलौं नेहोरा ।
मुदा अहाँ, पत्रोक ने देलौं उतारा ।
सेहन्ता हमर, ने बुझलिऐ अहाँ ।
फगुओ सन के पावनि, ने एलिऐ अहाँ ।
आश केर फूल सभ, झहरि गेल छल ।
अहाँ बिना मोन तऽ, हहरि गेल छल ।
हम कनलौं कते, ने देखलिऐ अहाँ ।
गारि पढ़लौं कते, ने सुनलिऐ अहाँ ।
से
सप्पत हमर खाउ ,
आ कहने
तऽ जाउ फेर कहिया एबै
?
कहिया एबै ?
बिना पुरुष केर, मौगीक जिनगी पहाड़ ।
बड़ डेराओन लगैत अछि, रातुक अन्हार ।
पाबि एसगर मे, राति भरि कनैत रहि गेलौं ।
कऽ बोखार केर लाथ, हम सहैत रहि गेलौं ।
एना करबै जँ फेर, हम सहि ने सकब ।
कहि दै छी साफ–साफ, चुप्प रहि ने सकब ।
आगि देह मे लगाय, बुझू जरि जैब हम ।
ने तऽ खा लेब माहुर, आ मरि जैब हम ।
अहूँ ततबे मनाउ ,
ने तऽ कहने तऽ जाउ फेर जल्दी एबै ?
की नै एबै ?
ओना मोनमे तऽ कखनो कऽ, होइए उमंग ।
जे थोड़बो दिन लेऽ, हमरो लऽ चलितौं संग ।
अहूँ हमरो अछैते, तऽ कष्ट कटइ छी ।
व्यर्थ होटल मे, पाइ ओते नष्ट करै छी ।
हम कथू लेऽ अहाँ केँ, ने तंग करब ।
आर चाही की हमरा, जँ संगे रहब ।
से
ई अर्जी हमर,
आ मर्जी अहांक,
चलू
जल्दी सुनाउ
जे की करबै ?
संग लऽ चलबै,
कि नै लऽ जेबै
?
( १९७८ मे प्रकाशित गीत संग्रह 'तोरा अंगनामे'क गीत क्र.२५ )
संगहि “गीतक फुलवारी” मे सेहो प्रकाशित ।
No comments:
Post a Comment