आँखि मे चित्र हो मैथिली केर
(गीत)
आँखि मे
चित्र हो मैथिली केर, आ हृदय मे माटिक ममता ।
माएक सेवा मे जीवन
बीता दी, बस इएह एकटा होइए सिहन्ता ।।
अछि करेजाक
टुकड़ी हमर ई तिरंगा ।
धमनी मे
हिमालय आ शोणित मे गंगा ।
अछि हमरा
ऐश्वर्यक कोनो
चाह नञि ।
बाट चलिते विपत्तिक परवाह नञि ।
हम टुटि जा
सकै छी, पर झुकि ने सकब ।
तुफानोक भय
सँ हम रुकि ने सकब ।
हमरा संग
संग बहय उनचासो पवन ।
बान्हि लेने
छी तेँ माथ मे हम कफन ।
हम रही - ने
रही,
ई तिरंगा
रहय ।
ई हिमालय
रहय आ ई गंगा रहय ।
फेर बनवास ने
होन्हि रामक, आ जंगल मे कानथि ने सीता ।
माएक सेवा मे जीवन
बीता दी, बस इएह एकटा होइए सिहन्ता ।।
कल्पना मे करोड़ो नदी आ नहरि ।
भावना मे हो लाखों समुद्रक लहरि ।
चिन्तन मे उठैत अछि तेहने लहास ।
जेना हाथ
होथि ओरने भगत आ सुभाष ।
माटि चमकैए
माथ पर जन्मभूमि केर ।
हमर
कर्मभूमि केर,
हमर धर्मभुमि केर ।
जतऽ खल- खल
जानकीक आङ्गन हँसय ।
आ चकमक सावित्रीक कङ्गन करय ।
वीण अपनहि
बजाएब हम भारतीक मित्र ।
मरितो दम तक सजाएब
हम मैथिलीक चित्र ।
गीत मे राखि
क्रान्तिक ज्वाला,
सरगम मे विजय केर भनिता ।
माएक सेवा मे जीवन
बीता दी, बस इएह एकटा होइए सिहन्ता ।।
“मिथिला दर्शन” , सितम्बर – अक्टूबर २०११, वर्ष
५९, अंक ५, पृष्ठ ३९ पर प्रकाशित ।
बहुत नीक । बच्चहि सँ सुनैत अाबि रहल छी ई गीत ।
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