महाभारत आ
हम
(कविता)
भोरे उठि
सब दिन
करैत छी
संकल्प
विदुर
जकाँ जीबाक
अपन जीवन
आ
दस बजैत
- बजैत
शुरू भ
जाइत अछि महाभारत
टूटि
जाइत अछि हमर संकल्प
बिसरि
जाइत छी अपन कर्तव्य
बन्न भ
जाइत छी हम
एकटा
छहरदेबालीमे
अपनहि
कोनहु पाखंडक
भ जाइत
छी दास
आ पांच
बजैत - बजैत
पबैत छी
अपनाकेँ
कुरुक्षेत्रक
कातमे
पड़ल
शरशय्या पर
बेचारा
भीष्म
पितामह- सन |
( प्रकाशित
: मैथिली पत्रिका आरम्भ, पटना, अंक २४ / जून २००० )
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