Friday, 27 January 2012

महाभारत आ हम

                                  महाभारत आ हम
(कविता)

भोरे  उठि
सब दिन
करैत छी संकल्प
विदुर जकाँ जीबाक
अपन जीवन
दस बजैत - बजैत
शुरू भ जाइत अछि महाभारत
टूटि जाइत अछि हमर संकल्प
बिसरि जाइत छी अपन कर्तव्य
बन्न भ जाइत छी हम
एकटा छहरदेबालीमे
अपनहि कोनहु पाखंडक
भ जाइत छी दास
आ पांच बजैत - बजैत
पबैत छी
अपनाकेँ
कुरुक्षेत्रक कातमे
पड़ल शरशय्या पर
बेचारा
भीष्म पितामह- सन |


( प्रकाशित : मैथिली पत्रिका आरम्भ, पटना, अंक २४ / जून २०००   )

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