...मिथिला मे
गजल
भूख अशिक्षा आओर अन्हार अछि मिथिलामे
गर्म बहुत ब्याहक बजार अछि मिथिलामे ।
गाम कते अछि बिला गेल कोसीक धारमे
अनगिनती सूखल इनार अछि मिथिलामे ।
जाति,पांजि, कुल, शील, मूल आ गोत्र,गाम
तिलक-दहेजहु के विचार अछि मिथिलामे ।
पेट भरैले’ लोक हजारो भागल दिल्ली
सय बीमार आ एक अनार अछि मिथिलामे ।
पोल गडायल गाम-गाममे कानि रहल अछि
बिनु बिजली गरमी,गुमार अछि मिथिलामे ।
खेबा ले’ एखनहुं अल्हुआ,मडुआ,बिसांढ
सुतबाले’ एखनहुं पुआर अछि मिथिलामे ।
कोन कृष्ण कहिया अओता से के जानय
दुख केर गोवर्द्धन पहाड अछि मिथिलामे ।
“विदेह” – अंक ९८ - १५ जनवरी २०१२ मे प्रकाशित ।
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