Sunday, 8 January 2012

लोक जिबैए सुविधामे



लोक जिबैए सुविधामे

गजल 




लोक जिबैए सुविधामे
हम रहैछी  दुविधामे।


मन्दिर मस्जिद लोक घुमैए
हम घुमैछी कवितामे।


कतहु मेघके अता-पता नहि
भीजैछी हम बरखामे।


चमत्कार देखलक भरि दुनिया
गांधीजी केर चरखामे।


सभ क्यो अपनहि भाय-बहिन छथि
देखू सगरो दुनियामे।


यात्री कतय,कतय हरिमोहन
हम तकैछी अपनामे।


सुखसँ सभक्यो जीबि सकैए
कोन कमी छै बसुधामे।

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