लोक जिबैए सुविधामे
गजल
लोक
जिबैए सुविधामे
हम रहैछी दुविधामे।
मन्दिर
मस्जिद लोक घुमैए
हम
घुमैछी कवितामे।
कतहु
मेघके अता-पता नहि
भीजैछी
हम बरखामे।
चमत्कार
देखलक भरि दुनिया
गांधीजी
केर चरखामे।
सभ क्यो
अपनहि भाय-बहिन छथि
देखू
सगरो दुनियामे।
यात्री
कतय,कतय
हरिमोहन
हम तकैछी
अपनामे।
सुखसँ
सभक्यो जीबि सकैए
कोन कमी
छै बसुधामे।
No comments:
Post a Comment