गौरी कोना कऽ रहती हे
छोटे-मोटे टूटल मड़इया मे गौरी कोना कऽ रहती हे ?? .....
गौरी हमर,
छथि बड़ सहलोला ।
कोना कऽ,
पिसती भाँगक गोला ।
हाथो मे पड़तनि लोढ़ीक ठेला, कोना कऽ सहती हे ?? ......
शिवजी कें धुर दुइ,
भांगेक बाड़ी ।
बीतो करथि नहि
खेती - पथारी ।
धीया-पूता केर पेटक बखारी, कोना कऽ भरती हे ?? .......
अपने महादेव,
भेला मसानी ।
बसहा केँ के देत,
गूड़ा आ सानी ।
भूत - परेतक डऽरेँ भवानी, दूरे पड़ेती हे ।। .......
कहथि “अनिल”
सुनु-सुनु हे मनाइनि ।
धीया अहाँ केर
छथि जगतारणि ।
जनिक संगमे त्रिभुवनदानी, तनिका कथीक दुःख हे ??
छोटे-मोटे टूटल मडइयो मे गौरी सभ सुख पओती हे ।। ......
ई गीत “तोरा अङना मे” गीत संग्रह केर अन्तिम गीत छल, जे कि सम्पुर्ण मिथिला मे लोकगीतक रूप मे प्रसिद्ध भेल आ एखनहु गाओल जाइत अछि ।
( १९७८ मे प्रकाशित गीत संग्रह 'तोरा अँगना मे' केर गीत क्र. ३० )
संगहि “गीतक फुलवारी” मे सेहो प्रकाशित ।
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