घऽरेकेँ मंदिर बनाउ
बनाउ हे यै कनियाँ,
घऽरे केँ मंदिर बनाउ |
कखनहुँ घर अन्हार रहय नहि
अखण्ड ज्योति, प्रेमक जड़ाउ |
गमकय भरि घर-आँगन गम-गम
बातेँ केर बेली बनाउ |
हो सिनेह मन मे सब जन ले'
आसक अछिञ्जल चढ़ाउ |
धूप – दीप - नैबेद्य हो करुणा
सेवा केँ पूजा बनाउ |
सासु - ससुर छथि देवी - देवता
श्रद्धा सँ माथा झुकाउ |
( प्रकाशित : मिथिलायतन, रायपुर, छत्तीसगढ़ : दिसम्बर २००५ )
No comments:
Post a Comment