हम मुग्ध भेलौं
हम मुग्ध भेलौं, धरतीक श्रृंगार देखि कऽ ।
नव कलश, नव मज्जर, आ पात देखि कऽ ।
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हम मुग्ध भेलौं,
धरतीक श्रृंगार देखि कऽ ।
नव कलश, नव मज्जर,
आ पात देखि कऽ ।
बुझि पड़ैछ आबि गेल नव दुनिया जेना ।
आइ धरतीयो लगैछ नव
कनियाँ जेना ।।
थाकि गेलाह चलिते,
वसन्त सन कहार ।
पीयरे महफा सँ भेलीह,
कनियाँ बहार ।
आइ भमरो लगैत अछि नचनियाँ जेना ।
आइ सगरो बजैछ हरमुनियाँ जेना ।।
सूतलि कली छलि,
से जागि उठली ।
ई हूलि-मालि देखि कऽ,
नाचि उठली ।
आइ उमतल चलैत अछि हावा जेना ।
नेने फूल-पात दूभि-धान-लावा जेना ।।
आकाश सन कोबर,
निहारि लियऽ मित्र।
देखू चन्द्रमाक लीखल,
तरेगनक चित्र ।
काल्हि रातियो लगैत छल
काल - राति सन ।
आइ दिनो लगैत अछि,
सोहाग – राति सन ।
आइ कोइलियो लगैछ अहिबाती जेना ।
जे झूमि कऽ गबैत हो पराती जेना ।।
( १९७८ मे प्रकाशित गीत संग्रह “तोरा अङना मे” क गीत क्र. १९ )
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