Saturday, 11 February 2012

हम मुग्ध भेलौं


हम मुग्ध भेलौं



हम मुग्ध भेलौं, धरतीक श्रृंगार देखि कऽ ।
नव कलश, नव मज्जर, आ पात देखि ऽ ।



हम      मुग्ध     भेलौं,

धरतीक श्रृंगार देखि कऽ ।

नव  कलश,  नव मज्जर,

आ   पात   देखि   ऽ ।


बुझि पड़ैछ आबि गेल नव दुनिया जेना ।

आइ धरतीयो लगैछ  नव कनियाँ जेना ।।





थाकि   गेलाह    चलिते,

वसन्त   सन    कहार ।

पीयरे  महफा  सँ भेलीह,

कनियाँ          बहार ।


आइ भमरो लगैत अछि नचनियाँ जेना ।

आइ  सगरो  बजैछ  हरमुनियाँ  जेना ।।





सूतलि   कली    छलि,

से    जागि    उठली ।

ई हूलि-मालि देखि कऽ,

नाचि          उठली ।


आइ उमतल चलैत अछि हावा जेना ।

नेने फूल-पात दूभि-धान-लावा जेना ।।





आकाश   सन   कोबर,

निहारि   लिय   मित्र।

देखू चन्द्रमाक  लीखल,

तरेगनक       चित्र ।

काल्हि रातियो लगैत छल

काल - राति     सन ।

आइ  दिनो  लगैत अछि,

सोहाग – राति    सन ।


आइ कोइलियो लगैछ अहिबाती जेना ।

जे झूमि क गबैत हो  पराती जेना  ।।






( १९७८ मे प्रकाशित गीत संग्रह तोरा अङना मे” क गीत क्र. १९ )






              

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