जै खातिर मारामारी अछि
जै खातिर मारामारी अछि,
भात – दालि – तरकारी अछि ।
छात्र गरीबक धिया – पुता,
छात्र गरीबक धिया – पुता,
विद्यालय सरकारी अछि ।
ई जे उल्लू देखि रहल छी,
लक्ष्मी मैयाक सबारी अछि ।
सदाचार केर शिक्षा सबठाँ,
सबठाँ चोरबजारी अछि ।
भोज करत रसगुल्ला केर,
बड़का ई भ्रष्टाचारी अछि ।
घूस, दहेजक चस्का बूझू,
छूआछूतक बीमारी अछि ।
देश द्रौपदी, हम भीष्म छी,
हमरहुँ ई लाचारी अछि ।
ई जे उल्लू देखि रहल छी,
लक्ष्मी मैयाक सबारी अछि ।
सदाचार केर शिक्षा सबठाँ,
सबठाँ चोरबजारी अछि ।
भोज करत रसगुल्ला केर,
बड़का ई भ्रष्टाचारी अछि ।
घूस, दहेजक चस्का बूझू,
छूआछूतक बीमारी अछि ।
देश द्रौपदी, हम भीष्म छी,
हमरहुँ ई लाचारी अछि ।
“विदेह” पाक्षिक इ पत्रिका वर्ष ५, मास ५०, अंक १०० मे छपल ।
No comments:
Post a Comment