अइ माटिकें प्रणाम
बौआ दुनू हाथ जोड़ि करू
अइ माटि कें प्रणाम ।
ई देश थीक गांधीक
विद्यापति केर गाम ।। बौआ .......
सोनाक चिड़इ भारत
से दुनियाँ जनैए
आ तकर हृदय मिथिला
से के नै बुझइए
हम कि कहब इतिहासे कहैत अछि
आएल छथि शंकर, लोभाए ल छथि राम । बौआ........
काल्हि केर मिथिलाक
मंडन अहीं
यौ वाचस्पति अहीं
यौ विद्यापति अहीं
आ काल्हि केर भारतक
गांधी अहीं
यौ सुभाषो अहीं
यौ भगत सिंह अहीं
विश्वमे चमका सकी नाम अपन पूर्वजक
आशा करैए ई धरती ललाम । बौआ .....
पेट अपन कहुना तऽ
कुकुरो भरैए
छिः छिः ओ जीवन
जे अजगर जिबैए
मानव समाज लेल
दम जे तोडैत अछि
सैह दुनियाँ मे
अमर भऽ जिबैए
थूकि दैछ दुनियाँ ओइ स्वार्थीक नाम पर
माटि केर नाम जे करैछ बदनाम । बौआ..........
पड़ल अछि अहींक लेल
काज एकटा
बनयबाले' भारतमे
समाज एकटा
काल्हि केर भारतमे चाही ई घोषणा
ई धरती हो तकरे, चुआबय जे घाम । बौआ ......
(१९७८ मे प्रकाशित गीत संग्रह "तोरा अङ्गना मे" केर पृष्ठ ४ - ५, गीत सं - ४)
संगहि “गीतक फुलवारी” मे सेहो प्रकाशित ।
सुरेन्द्र नारायण यादव जी द्वारा ऑडियो कैसट “एहि माटि के प्रणाम” मे हुनिकहि द्वारा गाओल गेल अछि । पर सम्भवतः भाष बैसएबाक क्रम मेँ शब्द संयोजन कतहु - कतहु किछु बदलि सन गेल अछि ।
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