कक्का मारल गेला
कक्का मारल गेला ,
सौराठक मैदान मे ।
पहिले कन्यादान मे ।।
भरना रखलनि खेत – पथार,
टाका गनलनि दऽस हजार ।
तै पर दू सोड़हि वरियाती,
अयला बनि-बनि घोड़ा-हाथी ।
महिसो बेचऽ पड़लनि रसगुल्ला केर दाम मे ।
वरियातीक सम्मानमे ।।
भेलखिन “अप टू डेट” जमाइ,
समधि से नमरी कसाइ ।
कोनो ठाँ हुए ने हिनाइ,
सँठलनि खेतो बेचि बिदाइ
तइयो रुसिए गेलखिन समधिन समधियान मे ।
कोजगराक मखानमे ।।
तै पर दाही से घमसान,
ने हेतनि एको चुटकी धान ।
छटपट-छटपट करनि परान,
कथी पर जीतै सभ संतान ।
की करता ? माथ हाथ धए बैसल छथि खरिहान मे ।
जड़ाउरक ओरिआनमे ।।
समधियो पौलनि जतबा टाका,
भेलनि रमन - चमनमे खरचा।
नफ्फा बस एतबे टा भेलनि,
समधिक घर उजाड़िकऽ छोड़लनि ।
सभटा टाका चलि गेल बनियाँ केर दोकान मे ।
पूरी आ पकवान मे ।।
अछि तऽ सभहक घरमे बेटी,
सभ क्यो मिलि एखनो जँ चेती ।
तखने मिथिला फेर चमकती,
तखने मैथिलियो हँसि सकती
अत्यावश्यक अछि परिवर्तन तिलक - विधान मे ।
सौराठक मैदान मे ।।
( १९७८ मे प्रकाशित गीत संग्रह 'तोरा अंगनामे'क गीत क्र.१० )
संगहि “गीतक फुलवारी” फुलवारी मे सेहो प्रकाशितएहि गीतक भाष निम्न प्रकारेँ अछि आ अही भाष पर शशिकान्तजी आ सुधाकान्तजी द्वारा विभिन्न मैथिली मञ्च सभ पर आ हर आङ्गन मे पिछला ३५ – ४० वर्ष सँ लोकगीत जेना गओल जा रहल अछि
सौराठक मैदान मे।
कक्का मारल गेला ,
पहिले कन्यादान मे (ना)।।
“(ना)” केर वस्तुतः कोनो अर्थ एहि ठाम नञि थिक, ओ बस भाष मिलएबाक लेल प्रयुक्त होइछ ।
ई गीत एकटा अलग भाष मे चन्द्रमणि जीक ऑडियो कैसेट “दरभंगा बजार” मे सेहो सुनबा मे आयल ।
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