एना गे सुगिया कतेक दिन रहबें
?
टूइट जेतै बन्हन, तोँ जोर कऽ कऽ देखही । |
नोरे के जिनगी, कतेक दिन उघबेँ ?
एना गे सुगिया ! कतेक दिन रहबेँ ?
तोहर वयस जेना,
कोबर के कनियाँ ।
तोरा ले एखनहि,
अन्हार भेल दुनियाँ ।
तोँ अपने कपार पर कतेक दिन झखबेँ ?
एना गे सुगिया ! कतेक दिन रहबेँ ?
तोरा ले’ सभ ठाम,
सभ बाट काटल ।
सभ दृष्टि काटल,
आ सभ गाछ काटल ।
ओकरा सँ छाहरि केर, आश कोना करबेँ ?
एना गे सुगिया ! कतेक दिन रहबेँ ?
लोक तोरा सोझ भऽ कऽ,
चऽलहु ने देतौ ।
जीबऽ ने देतौ,
आ मरहु ने देतौ ।
चालनि मे पानि तोँ कतेक दिन भरबेँ ?
एना गे सुगिया ! कतेक दिन रहबेँ ?
जिनगी छै सभकेँ,
आ जिनगी छौ तोरो ।
राति अपन देखलेँ,
तऽ देख अपन भोरो ।
बाट कोनो रामक, कतेक दिन तकबेँ ?
एना गे सुगिया ! कतेक दिन रहबेँ ?
टूइट जेतै बन्हन,
तोँ जोर कऽ कऽ देखही ।
भेटि जेतौ संगी,
तोँ सोर कऽ कऽ देखही ।
हुकुर-हुकुर जीबेँ, तऽ जीबि कऽ की करबेँ ?
एना गे सुगिया ! कतेक दिन रहबेँ ?
(परिप्रेक्ष्य / सन्दर्भ विषय – बाल वैधव्य ओ
पुनर्विवाह)
( प्रकाशित : मिथिला
मिहिर / जून ८७ / पहिल पक्ष )
हमर ई गीत आइ सँ २० –
२५ वर्ष पहिने, महादेव ठाकुरजी द्वारा,
nv (new voice) Series, Mumbai (Bombay) सँ हुनिकहि द्वारा गाओल एक गोट “मैथिली ऑडियो कैसेट”
मे निकलल छल । कैसेटक
नाँव छल "मैथिली गीत संग्रह" । बाद मे बहुतहु गोटे विभिन्न
मैथिली सांस्कृतिक मञ्च सभपर गओलन्हि ।
No comments:
Post a Comment