Saturday 10 December 2022

 

                                   

     आत्मकथाक ई भाग  इन्टरनेट पत्रिका ‘विदेह’क अंक 324 (15.6.2021) मे प्रकाशित भेल छल.

                                        आँखिमे चित्र हो मैथिली केर

                        ( आत्मकथा )

                      14. समस्या आ समाधान : कल्पना आ यथार्थ

ढोलीसँ  गाम जाइत काल दरभंगामे टैक्सी स्टैंड पर भेटलाह  रामपट्टीक आर के रमण जी | हुनकासँ  किछु गीत सुनने रही आर के कॉलेज, मधुबनीमे भेल विद्यापति पर्वमे | बहुत नीक लागल रहय | हुनकासँ गप भेल | हुनको दरभंगासँ मधुबनीबला टैक्सी पकड़बाक रहनि | रस्तामे हुनका जना देलियनि जे हमहूँ लिखै छी |

कोनो रचना संगमे अछि ?

 ओ पुछ्लनि |

हम हुनका एकटा रचना देख’ देलियनि | कविता रहै ‘रूपांतरण’|

ओ कहलनि, हम ई राखि लै छी, वैदेहीक अगिला अंकमे छपि जाएत (आदरणीय सोमदेवजी छलाह ‘वैदेही’क सम्पादक)| पुछ्लनि, और की लिखै छी, त कहलियनि जे एखन किछु गीत सेहो  लीखि रहल छी | ओ कहलनि फल्लाँ  तारीक क’ कोइलखमे विद्यापति पर्व मनाओल जेतै, अहूँ आउ, किछु और साहित्यकार सभसँ  परिचय हैत |

कोइलख गेलहुँ | नीक लागल | मधुपजी, किरणजी, सोमदेवजीकें  सेहो देखलियनि | पहिल बेर हुनका सभसँ कविता सुनबाक अवसर भेटल छल, से बड्ड नीक लागल | हमरो काव्य पाठ लेल प्रस्तुत कएल गेल | दूटा रचना सुनौलियनि |

श्रोता सबहक प्रतिक्रिया आ साहित्यकार लोकनिक आशीषसँ  हमर उत्साहवर्धन  भेल |

तकर बाद रामपट्टी, कथवार आ रहिका सेहो विद्यापति पर्वमे भाग लेलहुँ | कमलाकान्तजी, ‘अकेला’ जी, शंकपियाजी, प्रदीपजी  आ प्रवासी साहित्यालंकारजीसँ  सेहो परिचय भेल | रहिकामे आदरणीय रवीन्द्रजी आ उदय चन्द्र झा ‘विनोद’जीसँ परिचय भेल |

एकठाम एकटा गीत प्रस्तुत केने रही जकर अंतिम पाँती ई रहै :

‘दुख केर इ राति बौआ  बीतत अबस्से, असरा गरीबक भगवान रे, जुनि कान रे बौआ जुनि कान रे |’

आर के रमणजी कहलनि जे ‘असरा गरीबक भगवान रे’ के बदला ‘जहिया तों हेबही जुआन रे’ हमरा बेशी नीक लगैत | गीत एना अछि :

 

जुनि कान जुनि कान जुनि कान रे

                              बौआ जुनि कान रे |

 

नै तँ कौआ ल’ जेतौ तोहर कान रे || बौआ .......

 खा ले जल्दी, सूति रह चुप-चाप

       नहि  तँ  भकौआँ धरतौ,

सुनहिन हे जंगलमे गीदड़ बजै छै

         टाङ  पकड़ि  ल’ जेतौ

 एतौ लकड़सुंघा धोकड़ीमे कसिक’

 नेने चल जेतौ अपन गाम रे |......

  काल्हि अबै छै बौआके बाबू

         नेने कते बस्तुनमा

हमरा  बौआ ले’ अंगा - टोपी

        रंग-विरंगक खेलौना

सायकिल के घंटी बौआ टुनटुन बजेतै

      देखि  जुड़ायत  हमर प्राण रे | .....

     बुचिया रधिया बड़  बदमास’छि

               बौआ हमर बुधियार

         भोरे बौआक बाबाकें कहिक’

               मङबा देबै कुसियार

 काल्हि खन नानीक  गामसँ  अबै छै,

                 चङेरा भरल पूरी -पकवान रे | .....

                      भोरे बौआले’ भानस करबै

                               भात- दालि- तरकारी

           बुचियाकें कनिञो नै देबै

                बौआकें भरि थारी

 दुखकेर ई राति बौआ बीतत अबस्से

         असरा गरीबक भगवान रे | ....

1978 मे प्रकाशित गीत-संग्रह ‘तोरा अङनामे’क  पृष्ठ चारि आ पाँचपर ई गीत छपल अछि | इन्टरनेट पत्रिका ‘विदेह’क साइटपर सेहो ई पोथी उपलब्ध अछि |

10.05.2021 क’ यू-ट्युब पर ‘नीलम मैथिली’ द्वारा अशोक चंचल जीक स्वरमे ई गीत प्रस्तुत कयल गेल अछि जाहिमे ‘वस्तुनमा’क स्थानपर ‘वस्तुनामा’ कहल गेल अछि, जे ठीक नै लागि रहल छै | विडियो तैयार करबा काल प्रस्तुतकर्ता आ गायक दुनू गोटेकें मूल गीतक शब्दक शुद्ध उच्चारण सुनिश्चित करबाक चाहियनि |

एहि प्रस्तुतिमे एकटा और त्रुटि भेल अछि जे गीतकारक नाम रवीन्द्र नाथ ठाकुर अंकित अछि | हमरा द्वारा सुचित केलापर एकठाम त सुधार कयल गेलै, मुदा फ्रंट पर एखनो सुधार बाँकी अछि | आब दुनू नाम आबि रहल अछि | आदरणीय रवीन्द्र नाथ ठाकुर जी मैथिलीक  सर्वश्रेष्ठ गीतकार छथि | लोकप्रियताक लेल हुनक नामक उपयोग हुनक सहमतिक बिना नहि कयल जेबाक चाही |

  आर के रमणजीक एकटा गीत ‘अहाँकेर इजोरिया कहाँ हम मँगै छी, अन्हारोमे हमरो जीब’ त दीय’..... बहुत नीक लागल रहय | प्रवासी साहित्यालंकारजीक  ‘अन्नपूर्णा’ सेहो सभकें बहुत नीक लागल रहनि | प्रदीपजीक  कयटा गीत बहुत लोकप्रिय भेल छलनि |

रहिकामे कवि सम्मेलन खूब नीक होइत छलैक  | रवीन्द्रजी पहिने कवि सम्मलेनमे सुन्दर  कविता अथवा गीत  प्रस्तुत करैत छलाह, सांस्कृतिक कार्यक्रममे एसगर अथवा महेन्द्र झा जीक संग रंग-विरंगक मनोरंजक  गीत प्रस्तुत करैत छलाह जे लोककें तीन-तीन घंटा धरि मुग्ध केने रहैत छल |

 रहिकाक कार्यक्रमक विशेषता ई छलै जे सांस्कृतिक कार्यक्रमसँ  कवि-सम्मेलन  प्रभावित नहि होइत छलैक | बड़ी-बड़ी राति धरि लोक कवि सम्मेलनक आनन्द लैत रहैत छल | आदरणीय उदय चन्द्र झा ‘विनोद’ जीक देख-रेखमे  कवि-सम्मेलनक आयोजन होइत छलै, जे अपने त खूब सुन्दर कविता प्रस्तुत करिते छलाह, अन्त धरि कवि-सम्मेलनकें  आकर्षक बनबौने रहैत छलाह | आदरणीय सुमनजी, किरणजी,मनिपद्मजी, अमरजी, सोमदेवजी, मायानन्द बाबू, विनोदजी, रवीन्द्र जी, अर्जुन  कविराज आदि कविक कविता लोककें भाव-विभोर क’ दैत छलैक |

हमरा एहि मंचसँ बहुत किछु सिखबाक अवसर भेटल | आदरणीय रवीन्द्र जीसँ  नीक जकाँ गप भेल | कहने छलाह जे रचनाकारकें प्रतिदिन कम-सँ -कम एकटा रचना करबाक चाही | यदि कोनो गीतकार प्रतिदिन एकटा गीत लिखैए त सालमे तीन सय पैसठिटा गीत भेलै | एहिमे यदि तीन सय रचनाकें ठीक नै मानैत छी आ ओकरा फाड़िक’ फेकियो  दैत छी तैयो पैंसठिटा त नीक रचना अवश्य हैत | जँ  दस साल ई क्रम चलल त छ सय पचासटा रचना त नीक हैत, एतबो पर्याप्त छै | सुझाव त नीक लागल, मुदा एकर क्रियान्वयन नहि कयल भेल |

आदरणीय सोमदेवजी, विनोद जीसँ सेहो मार्ग-दर्शन प्राप्त भेल |

हमर लेखन कार्य बढल |

किछु दिनक बाद सासुर (लदारी)मे कलिगामक मनोजानंद झा जीसँ  भेंट भेल |

हुनको सासुर ओतहि छलनि, ओही टोलमे | हमरासँ  पहिने हुनकर विवाह भेल छलनि | ओहि समयमे हुनकर गिनती सभसँ  नीक जमाएक रूपमे होइ छलनि | हमहूँ हुनक बहुत प्रशंसा सुनने रही | भेंट भेल त नीक लागल |

सम्बन्धक अनुसार हम सभ साढ़ू नै छलहुँ, किन्तु एकहि ठाम सासुर छल,तें हम सभ साढ़ूएक संबोधन चुनलहुँ |

हुनका हमर गीत लेखन द’ बुझल छलनि, हमरा हुनक फिल्म-जगतमे अपन जीवन तलाश करबाक प्रयासक विषयमे सूनल छल |

बड़ी काल गप भेल | कय बेर गप भेल | हुनका साहित्यिक विषय पर चर्चा नीक लगैत छलनि, से हमरो नीक लगैत छल |

एक दिन दूनू गोटे साइकिलसँ दरभंगा गेलहुँ |

बस स्टैंड लग आर के रमण जी भेटि गेलाह, रिक्शासँ  कतहु जा रहल छलाह | झाजीसँ  परिचय करौलियनि | रमणजी कहलनि, सासुर घुरबासँ  पहिने एकटा कविता हमर पत्रिका ( मिथिला टाइम्स ) लेल हमर कार्यालय (अजय छात्रावास)मे छोड़ने जाएब |

रमनजी त आगू निकलि गेलाह, हम मुश्किलमे पड़ि गेलहुँ | एकटा कविता तुरन्त लीखू, साफ़ कागजपर उतारू आ अजय छात्रावास जाक’ जमा क’ आउ, ई काज हमरा लेल बहुत कठिन  लागल | पहिनेसँ  कोनो कविता लीखल नहि छल जे वैह द’ दितियंनि आ गीत त हुनका पत्रिका जोगर हमरा लग नहि छल  |

झाजी कहलनि, हुनका भरोस छलनि, तें अहाँकें कहलनि, आब एकरा पूरा हेबाक छै, चलू कोनो होटलमे चाह पिबैत छी आ तकर बाद भ’ सकै छै अहाँकें लिखबाक प्रेरणा भेटि जाय |

लहेरियासराय टावर चौक लग कोनो होटलमे बैसलहुँ | दू ताव कागज बगलक स्टेशनरी दोकानसँ  अनलहुँ  | एक कोनमे खाली टेबुल छलै | हमरा ओहि कोनमे बैसाक’ झाजी दूरक टेबुल लग चल गेलाह आ दू टा चाहक आदेश द’ देलखिन |

हम  कलम नेने कागज दिस थोड़े काल तकैत रहलहुँ | हमर परीक्षा छल | हमरा बूझल छल जे कम्युनिस्ट पार्टीक पत्रिका छै | विषयक लेल मंथन केलहुँ | किछु-किछु लिखाय लागल | आगू बढैत गेलहुँ | थोड़े काल लेल लागल जे हम एसगर ओत’ छी, और कियो नै छै |

एक बेर फेर चाह आएल |

लिखनाइ  चालू छल | एकठाम आबि रुकल |

एक घंटा बीति चुकल छलै | हमरा आब एकरा संक्षिप्त क’ क’ दोसर कागजपर उतारबाक छल |

झाजी फेर किछु मंगयबाक लेल पुछलनि | मना क’ देलियनि |

हम जहाँ ठाढ़ भेलहुँ  त झाजी कहलनि, आउ हिनकासँ  परिचय कराबी |

झाजी एते कालसँ  एक गोटेसँ  गप करैत छलाह जे एकटा हिन्दीक पत्रिका ‘पूर्वांचल’ निकालैत छलाह |

ओ अपन परिचय दैत हमरासँ  एकटा हिन्दी कविताक मांग केलनि ‘पूर्वांचल’ लेल | हम कहलियनि जे हम मैथिलीमे लिखैत छी त ओ कहलनि, एकहुटा त अवश्य लिखने हेबै, हमरा केह्नो कविता देब, चलतै |

हमरा लागल जे झाजी हमर प्रशंसा क’ देने हेथिन तें हुनका भरोस भ’ गेल छनि जे हम जे देबनि से ठीके हेतै |

हम बहुत पहिने एकेटा तुकबन्दी बला कविता हिन्दीमे लिखने रही, सेहो एखन पूरा मोन  नै छल |

फेर कनी काल बैसलहुँ |लीख’ लगलहुँ    मोन पड़ैत  गेल | हुनका द’ देलियंनि | हमर ढोली छात्रावास बला पता ल’ क’ ओ प्रस्थान केलनि | हमहूँ सभ बिदा भेलहुँ | अजय छात्रावासमे मिथिला टाइम्सक कोठली बन्द छलै |

केबारक नीचाँ  द’ क’ कोठलीमे राखिक’ हम सभ विदा भ’ गेलहुँ |

दोसर दिन झाजीक संग फेर बैसार भेल आ आजुक प्रसंगपर बड़ी काल गप भेल | 

झाजी  फिल्ममे अवसरक तलाशमे छलाह, कहलनि जे फिल्ममे विविध तरहक गीतक उपयोग होइत छै, मैथिलीयोमे एहेन रचना सभ हेबाक चाही जे काल्हि मैथिली फिल्म बन’ लगै त ओहि लेल रचना सभ उपलब्ध होइ, एहि लेल और रवीन्द्र नाथ ठाकुरक आवश्यकता हेतैक |

झाजी हमरा कयटा विषय द’ देलनि गीत रचनाक लेल : गीत जेहेन मुकेश गबै छथि, जेहेन  लता आ रफ़ी गबैत छथि, प्रेमक गीत, मिलन आ बिछुड़नक गीत |

दुनू गोटे अपन-अपन गामक बाट  धेलहुँ |

गाम त आबि गेलहुँ, मुदा मनोज बाबूक देल विषय सब रहि-रहिक’ स्मृतिमे आबि जाइत छल | कालान्तरमे किछु गीत हुनक देल विषय आ परिस्थितिकें ध्यानमे रखैत लिखा गेल, मुदा हुनकासँ व्यक्तिगत रुपमे कोनो नियमित सम्पर्क नहि बनल रहल |

हुनकासँ  पहिल भेंट अंतिम भेंट सिद्ध भेल | तीन बरखक बाद एकदिन ई खबरि सूनि बहुत आहत भ’ गेलहुँ जे हमर प्रिय मनोजानंद झाजीक ह्रदय-गति रुकि गेलनि | लदारीसँ कलिगाम धरि शोकक लहरि व्याप्त भ’ गेल छलै | दू बरखक एकटा बेटी आ किछुए दिनक एकटा पुत्र शांतीकें द’ क’ एहि जगतसँ प्रस्थान क’ गेलाह झाजी |

 

कोनो रोजगारक खगता छल हमरा, से आंशिक रूपसँ  प्राप्त भेल | प्रशिक्षु-पर्यवेक्षकक रूपमे छओ मासक अवधि लेल डेढ़ सय रूपया स्टाइपेंडपर  पौधा संरक्षण केन्द्र, मधुबनीमे काज करबाक अवसर भेटल |

राज्य सरकार द्वारा  बहुत गोटेकें ई अवसर विभिन्न जिलामे देल गेलनि  | जाधरि  बैंकमे भर्तीक विज्ञापन नहि अबैत छै, ताधरि ई हमहूँ स्वीकार क’ लेलहुँ | बादमे  स्टाइपेंड राशि दू सय क’ देल गेलै |

मासमे जिला भरिक प्रशिक्षु सबहक मीटिंग होइ छलै दरभंगामे जिला पौधा संरक्षण पदाधिकारीक कार्यालयमे | किछुए मासक बाद एक दिन मीटिंगमे नन्द कुमार झाजी ( मोहना, झंझारपुर ) कहलनि जे टाइम्स ऑफ़ इंडियामे बैंकमे बहालीक विज्ञापन आबि गेलैए, जल्दिए पठा दियौ | दोसर दिन मधुबनी पुस्तकालय जाक’ टाइम्स ऑफ़ इंडियामे छपल विज्ञापन देखि तदनुसार आवेदन पठा देलिऐ | दू मासक बाद लिखित परीक्षा भेलै पटनामे | तीन  मासक बाद परीक्षामे उतीर्ण हेबाक सूचनाक संग साक्षात्कारमे भाग लेबाक आदेश भेटल |

बैंकमे आवेदन पठा देलाक बाद साक्षात्कारक अवधि धरि लेखन कार्य एकदम छोड़ि देलहुँ, कतहु जाएब सेहो बन्द क’ देने छलहुँ | मुख्य काज छल परीक्षाक तैयारी आ तैयारी मात्र |

साक्षात्कारक बाद फेर पौधा संरक्षण केन्द्र जाएब, घरक कोनो छोट-मोट काज रहैत छल से करैत, पुस्तकालय होइत घर आबि जाइत छलहुँ आ मिथिला मिहिर अथवा मैथिलीक कोनो किताब पढ़ब, कतहु गोष्ठीमे जाएब, साहित्यकार लोकनिक सम्पर्कमे रहब नीक लगैत छल |

हमरा होइत छल जे जीवन जीबाक लेल जहिना नोकरीक आवश्यकता अछि, तहिना साहित्यसँ  लगाव सेहो आवश्यक अछि |

हम देखैत छलिऐक जे लोक स्वस्थ जिनगी नहि जीबि रहल अछि, लोककें सामान्य जिनगी जीबाक लेल जे वस्तु सभ हेबाक चाही, तकर अभाव छै | दोसर दिस अस्वस्थ परम्परा सबहक  त्याग करबाक साहसक अभाव सेहो छै | हमरा लगैत छल जे जाधरि साहित्यसँ  लगाव नहि रह्तै, ताधरि जीवनमे संतुलन नहि आबि सकैत अछि | हमरा होइ छल जे  एहि लेल स्त्री, पुरुष सभकें समान रूपसँ  शिक्षित हेबाक चाही | मुदा हम तँ अपने घरमे हारल छी | हमर पत्नी जँ  शिक्षित नहि भेलीह त हमहूँ स्वस्थ जीवन नहि जीबि सकैत छी | तें हमरा लगैत छल जे एतेक योग्यता त अवश्य भ’ जेबाक चाहियनि जे ओ कोनो पोथी अथवा पत्रिका पढ़ि लेथि | हमरा ई बुझल भ’ गेल छल जे अक्षरक  ज्ञान छन्हि, तें हम जे चाहैत छी, से संभव भ’ सकैत अछि |

एहने विश्वास नेने हम एक बेर सासुर गेलहुँ आ रातिमे भेंट भेल त मिथिला मिहिरक एकटा पेज सामने राखि पढबाक लेल कहलियनि | बड़ी काल अनुरोध करैत रहि गेलहुँ, ओ टस-सँ -मस नहि भेलीह | हमरा एकदम ‘कन्यादान’क बुच्ची दाइ जकाँ लाग’ लगलीह | हम कहलियनि, तखन अहाँ बाहर जाउ | ओ बाहर जाक’ माए लग जाक’ सूति रहलीह | हमरा भेल जे काल्हि अवश्य हमर बात मानि लेतीह, मुदा से नहि भेल | हमर सासु सेहो प्रयास केलनि हमरा तरफसँ  मुदा सफल नहि भेलीह | आ लगातार तीन राति  धरि यैह चलैत रहल | ओ अबैत छलीह, हम पढ़’ कहैत छलियनि, ओ ओहिना तकैत रहि जाइत छलीह, फेर हम कहैत छलियनि बाहर जाए लेल, ओ निकलिक’ माए लग जाक’ सुति रहैत छलीह |

 चारिम दिन सबेरे जलखै क’ क’ अपन बैग ल’ क’ हम बाहर निकलि गेलहुँ | दरबज्जापर  सार छलाह | ओहो संगे विदा भेलाह | हुनका अपन  स्थिति  नै कहलियनि, एतबे कहलियनि जे जा रहल छी, जाएब जरूरी अछि | सासु रोकने छलीह, हुनकर बात नै मानने छलहुँ | हम सभ किछु-किछु गप करैत जा रहल छलहुँ | हम तय क’ नेने छलहुँ जे आब किन्नहु नहि घूरब | टोलसँ निकलि गाछीक बीच पहुँचल छलहुँ |

 चौदह-पन्द्रह सालक एकटा लड़की ह्कमैत आबि आगूमे ठाढ़ भ’ गेलि, हुनका पाछू एकटा अधवयसू महिला सेहो छलीह | हम अकबका गेलहुँ | ओ हमरा दूनू गोटेकें झुकिक’ प्रणाम केलनि | पाछाँ हुनकर माए छलथिन | ओ कहलनि जे हम सभ अहींसँ  भेंट कर’ जाइ छलहुँ त पता चलल जे अहाँ जा रहल छी, तें दौड़ल एलहुँ, अहाँकें आइ नै जाए देब हम सभ |

ओ हमरा हाथसँ हमर बैग छीनि लेलनि आ दुनू माइ-धी हमरा सभकें घुरबाक  लेल जिद्द क’ देलनि | हमरा लेल दुनू अपरिचित छलीह | हमर सार जनैत छलखिन | हुनका सबहक बीच जे  गप भेलनि ताहिसँ  पता चलल जे ई बच्ची अपन माए संगे मामा गाम आएल छथि, ई सभ काल्हि साँझमे एलीह, एखन हमरासँ  भेंट कर’ गेल छलीह, हमर सासुसँ  किछु गप भेलनि आ दौड़लीह  हमरा घुरयबाक लेल |

हम किछु बहन्ना बनेलहुँ  गाम जेबाक लेल, मुदा ओ सभ किछु सुनबाक  लेल तैयार नहि भेलीह | कहलनि जे आइ हम सभ नहि मानब, हम सभ अहाँसँ  बिना गीत सुनने अहाँकें नहि छोड़ि सकैत छी | हुनकर माए कहलनि जे अहूँकें सूनब आ इहो सुनाएत, चलू आइ नै जाउ | हुनका सभकें देखि-सूनि हमरो पयर आगू नै बढ़’ चाहैत छल | लागल जेना हमरे समस्याक समाधानक लेल भगवान हिनका सभकें पठा देलखिनहें |

ओ हमर बैग नै द’ रहल छलीह | हमर सार निर्णय सुनौलनि | हमरा कहलनि, आइ यात्रा स्थगित करू, काल्हि देखल जेतै, प्राचीकें कहलखिन दाइ तों बैग नेने जाह, हम हिनका चौकपर घुमाक’ नेने आबि रहल छी | अही बातपर सहमति भेल | प्राची हमर बैग ल’क’ माए संगे घुरि गेलीह | हम सभ  हाजीपुर चौकपर पान ख़ाक’ घुरलहुँ |

प्राची आ हुनक माएक उपस्थिति वातावरणकें रसमय बना देने छल | वस्तुतः साहित्य आ संगीतक प्रेम जीवनकें आनन्ददायक बना दैत छैक अन्यथा  लोक ककरो खिधांस करबामे अपन अधिक समय बितबैत रहैत अछि अथवा अपन बड़ाइ करबामे | हिनका दुनू गोटेमे जे ई चेतना छलनि से हमरा अद्वितीय लागल | प्राची अपन पाठ्य-पुस्तकसँ  सेहो कोनो-कोनो कविता सुनबैत छलीह आ हमरो सूनि खूब आनन्दित होइत छलीह | बच्चन जीक कविता ‘ जो बीत गयी सो बात गयी...’ बहुत नीक जकाँ सुनबैत छलीह |

दिनमे भोजनक बाद बड़ी काल आ रातिमे भोजनक बाद थोड़े काल बैसकी चलैत छल : गीत-नाद, कविता-संस्मरण, हँसी-ठहक्का चलैत रहैत छल | एकटा नियमक पालन प्राची करैत छलीह जे ओ कखनो एसगर नै अबैत छलीह,  मायक  संगे अबैत छलीह | कखनो-कखनो हुनकर मामी सभ सेहो अबैत छलखिन, हमर दूनू सरहोजि त रहिते छलीह | कखनो-कखनो किछु पुरुष लोकनि सेहो आबि जाइत छलाह |

प्राची बच्चीकें मौसी कहैत छलखिन आ हिनको गोष्ठीमे सम्मिलित करबाक प्रयास करैत छलीह, मुदा बच्चीकें ओहो सभ परिवर्तित नहि क’ सकलीह | एकदिन कहलनि जे द्विरागमनक बाद अहाँक  संग रह’ लगतीह त देखबै सभ बदलि जेतनि, नैहरमे लाज होइ छनि | हुनकर माए पुछ्लनि, ‘अहाँक बहिन सभ तँ  पढल-लिखल हेतीह ने ?’

हम निरुत्तर भ’ गेल रही |

हमरो तीनटा छोट बहिन अछि | ओकरो सबहक पढाइक स्थिति त यैह छै |

हमर चित्त शांत भ’ गेल रह्य | हमर सभ प्रश्नक जबाब हमरा भेटि गेल छल |

चमत्कार भेलै जे बच्चीकें बदलबाक हमर प्रयास बन्द भ’ गेल | हम फेर हुनका पढबाक जिद्द नै केलियनि, फेर घरसँ  बाहर जेबाक लेल नै कहलियनि | हम सोचि नेने रही जे हमरा संग जखन रह’ लगतीह तखन हम प्रयास करब, आ जँ  तैयो संभव नै भेल त अपना बेटीकें खूब पढयबाक  प्रयास करब |

हमरा लागल जेना अस्तित्व हमरा वैह देलक अछि जे हमरा आ हमरा परिवारक लेल जरूरी अछि, अस्तित्वकें हमरा संग हमर परिवारोक लेल व्यवस्था करबाक छैक |

एकदिन जखन एसगर रही त अपनेसँ गप होइत रह्य |                   

‘जँ बियाहसँ पहिने प्राचीकें देखने रहितियनि त ....?’

‘त की ? वैह होइतै जे भेलैए | बच्चा जे-जे मंगैत छैक से सभ टा ओकर माए-बाप नै दै छै, बच्चाकें वैह देल जाइ छै जे माए-बाप ओकरा लेल ठीक बुझैत छै | अहाँ जान’ चाहैत छी त कखनो पुछियौ प्राचीकें जे हुनका सभकें केहेन लड़का पसन्द हेतनि |’

एक दिन हुनका पुछलियनि जे अहाँ लेल केहेन वरक खोज भ’ रहल अछि, त प्राची चुप रहि गेलीह, हुनक माए कहलनि, काल्हि अबिते छथिन, कहबे करताह |

प्राचीक पिता कलाकार छथिन, कहलनि जे लड्काक लेल हमरा मोनमे कृष्णक छवि आबि रहल अछि, आँखि, नाक,मूँह,केश सभ एहेन जेना हम सभ कृष्णक फोटोमे देखैत छियनि, इंजिनियर अथवा डॉक्टर होथि, हँसमुख होथि, घर-दुआरि- पक्का मकान होनि, खेत-पथार होइन |

हमर सार पुछलखिन जे गनबै कत्ते त कहलखिन, से  हमर स्थिति त जनिते छी अहाँ सभ जे किछु गनबाक ओकादि नै अछि हमरा, तखन भगवाने कोनो उपाय लगेथिन त हेतै |

किछु गोटेकें हँसी लागि गेल रहनि |

हमरो हुनक कल्पना,आस्था आ विश्वासपर आश्चर्य भेल रह्य, मुदा तीस बरखक बाद जखन प्राचीसँ  भेंट भेल त बड़ी राति धरि हम सभ गोटे हुनके मूँहें हुनक पिताक सपना साकार हेबाक कथा सुनैत रहि गेलहुँ आ विश्वास भेल रह्य जे प्रतीक्षा करबाक लेल धैर्य हो आ किछु त्याग करबाक साहस हो त अस्तित्व अहाँक  सभ मांग पूर्ण क’ सकैत अछि |

पटना / 14.06.2021  

                                 

                              

             

 

 

                                       

 

 

 

                               आँखिमे चित्र हो मैथिली केर

                        ( आत्मकथा )

                              13. एकटा छलाह ननू कका

हमर तेसर आ सबसँ छोट बहिनक विवाहक बात घरमे चलैत रहै | माए एकटा कथाक प्रसंगमे चर्च केलनि- होइतै त बहुत सुंदर होइतै |’

ओ नै हएत |’ बाबू कहलथिन |

से किए ?’ हम पुछलियनि |

बाबू कहलनि जे हुनका सात हजार दजाइ छनि से त ओ करैलेतैयारे नै भेलथिन, आ हम सभ ओतबो कतसँ देबै ?

हम कनी काल गुम्म रहलहुँ |

हम लड़काकें जनैत छलियनि,ई  वएह कृष्ण कान्त जी छलाह जिनकासँ दिल्लीमे भेंट कर’ चाहैत रही,मुदा भेंट  नहि भ’ सकल छलाह   | हमर दोसर बहिनक विवाह जिनकासँ भेल छलनि हुनकर पितिऔत भाए छलथिन | हिनका माए नै छलथिन | बहुत दिन भगेलनि | पिता दोसर विवाह नै केलथिन | दूनू  भाइ पढैत छलाह | आङनमे एकटा दोसर पितिऔत छलथिन हुनके आश्रममे ई दूनू भाइ रहैत छलाह |

हुनक पत्नी हिनका सभकें अपने पुत्र जकाँ मानैत छलथिन |

हिनक पिता विराटनगर लग मोरंगमे रहैत छलथिन | ओतपटुआक खेती बहुत दिनसँ करैत आबि रहल छलथिन |हुनकासँ हमरा बेसी भेंट-घाँट नै छल किन्तु कृष्ण कान्तजीकें   नीक जकाँ जनैत छलियनि | हुनक पढाइ-लिखाइ आ बुद्धि-विचार हमरा बहुत नीक लगैत छल, तें हम मोने-मोन तय केलहुँ जे हमरा सभकें ऐ  कथापर जोर देबाक चाही |

बाबू कें कहलियनि, ‘हम एक बेर प्रयास करचाहैत छी,मुदा एक विन्दुपर विचार करपड़त |’

की ?’ बाबू पुछलनि |

हम कहलियनि जे पाइ लेथिन त ओकर हिस्सा खेत बेचि क

देबै, भाए रहैत त ओकरो हिस्सा त हेबे करितै |

बाबू किछु सोचलगलाह | फेर कहलनि जखन तोरे ई विचार छत जाह-देखहक़ |’

 

हम विदा भेलहुँ |

हमर मझिली बहिनकें सेहो ई प्रस्ताव  नीक लगलै |

पहिने लड़कासँ भेंट केलियनि |

हुनका पुछलियनि यदि अहाँक पिता हमरा ओतविवाह तय क

लेथि त अहाँकें कोनो आपत्ति त ने हएत ?’

ओ कहलनि, ‘ननू कका (बाबूजी)क बात हम नै काटि सकैत छियनि, मुदा ओ तचारिए दिन पहिने गेलाहेगामसँ,अइ साल विवाह नै हेतै, इएह निर्णय कगेलाहे’ |’

हम कहलियनि, ‘हम हुनकासँ भेंट करचाहैत छी एक बेर, निर्णय त जे हेतनि, हुनके  हेतनि |’

ओ विराटनगर लग मोरंगमे रहैत छलाह | सकरी जंक्शनसँ निर्मली, निर्मलीसँ जोगबनी आ ओतसँ तीनटा धार टपि क चारि-पाँच कोस पयरे जाय पड़ैत छलैक |

हुनका गामक किछु आदमी हमरा एकांतमे कहलनि, ‘ओ पाइ नै छोड़ताह | ओ त बीमारो पड़ैत छथि त दबाइयोमे खर्च नै करैत छथि |एतकयटा कथा एलनि, सात हजार तक दगेलनि मुदा नाकपर माँछी नै बैसदेलखिन, से सोचि लिय’ |’

 

हम सबहक बात सुनियो कविदा भगेलहुँ |

 

मनीगाछी स्टेशन लग लड़काक मामाक घर छलनि | हुनकासँ भेंट केलहुँ | ओहो मना केलनि | कहलनि, ‘अहाँ बेकार हरान होइ छी | हम ओते सुंदर कथा लक’  गेल छलहुँ से त सुनबे नै केलनि जखन कि कन्यागत सात हजार देबलेतैयार छलथिन | अहाँ खेत बेचि ककी पाइ देबनि, की बरियातीक सम्मान करबै आ की विदाइ देबनि ! अहाँ घुरि जाउ, एसगर जाइ छी, अहाँ एखन विद्यार्थी छी , रस्तामे तीन टा धार छै , चारि कोस पयरे जाए पड़ैछै | बेकार हरान हएब | ओना अइ साल त विवाह हेबे नै करतै, ओ इएह तय  एखन गेलाहे’ |’

 

हम तैयो चल गेलहुँ |

 

पहिने अपन बहिनो कें भेंट केलियनि | ओ नेपाल सरकारक स्वास्थ्य विभागमे काज करैत छलाह | एकटा फूसक घरमे ननू  ककासँ अलग जेठ भाएक संग रहैत छलाह |

ओ सभ कहलनि- ननू ककाकें अहाँ अपने कहियनु |’   

 

ननू कका ओतपहुँचलापर हुनका प्रणाम कअपन अभिप्राय कहलियनि |ओ सभटा बात ध्यानपूर्वक सुनि ककहलनि जे एकर जबाब हम परसू साँझमे देब |

हुनके सबहक ओतरहलहुँ | हुनके अनुसार दू दिन एहि विषयपर कोनो बात नै केलहुँ | तेसर दिन नियत समयपर जखन पूजा कउठलाह त पुछलियनि | ओ कहलनि जे हम तय केलहुँ जे विवाह अहींक ओतहेतै मुदा हमर एकटा बड़का शर्त अछि तकर पालन करबाक वचन दिय’ |

 

हम कहलियनि, ‘अपने स्पष्ट करियौ | हम जे तय कआयल छी से कहिए देने छी | अहाँक मांग हमर सामर्थ्य सीमा धरि हयत त हम अवश्य पूर्ण  करब |’

ओ कहलनि, ‘हमर मांग अहाँक सामर्थ्य सीमाक अनुकूले अछि मुदा हमरा भरोस नै अछि जे अहाँ पूर्ण  करब, तें अहाँ हमरा वचन दियजे अवश्य पूर्ण  करब |’

 

हम कनेक भयभीत होइत कहलियनि-ठीक छै, हम अवश्य पूर्ण  करब |’

 

ओ तखन कहलनि, ‘हमर शर्त ई अछि जे विवाह ताहि रूपें हुअए जे विवाहसँ द्विरागमन धरिक खर्चलेअहाँकें ने एको धुर खेत बेचपड़य  ने भरना राखपडय, ने ककरोसँ कर्ज लेब पड़य, इएह हमर शर्त अछि, अहाँ वचन देलहुँ अछि,आब अहाँकें एकर पालन करपड़त |’

 

हमरा अपना कानपर विश्वास नै भरहल छल |

ख़ुशीसँ हमरा  कना  गेल |

हम सोचै छलहुँ हिनका दलोक सभ की की कहने छल आ ई की कहि रहल छथि | एकदम साधारण बगएमे रहवला लोकक भीतर एहेन श्रेष्ट पुरुष विद्यमान भसकैत छथि, एकर हम कल्पना नै कसकैत छलहुँ |

हमरा गुम्म देखि ओ कहलनि, ‘अहाँकें खेत बेचबा क’, कर्जाक तरमे द’, अहाँक ओतकुटमैती करब ? राम-राम |’

फेर ओ अपन जीवन,दिन-चर्या, मनोरथ सबहक चर्च विस्तारसँ केलनि | कहलनि हमर एकेटा मनोरथ छल जे नीक लोकक संग होइन, से हमरा नै भेटैत छल, पाइवला त बहुत अबैत छलाह मुदा कतहु हमर मोन नै मानलक, तें गाममे कहलियै जे अइ साल नै करब |

ओतएक बीघामे पटुआक खेती करैत छलाह आ संगहि पंडित-पुरोहितक काज सेहो करैत छलाह |

कहलनि जे पाइ त दुनू भाइलेएते छनि जे मनुक्ख जकाँ खर्च करताह त कोनो चीजक अभाव नै हेतनि आ हमरो क्रिया-कर्मलेसोचनै पड़तनि, जखन एते पाइसँ नै काज चलतनि आ अपन पुरुषार्थसँ नै हेतनि त अहाँकें कंगाल बनाक हेतनि ?

 

ओ अपने दिन तकलनि | करीब डेढ मास आगाँक दिन |

दूटा छोट-छोट चिट्ठी लिखलनि, एकटा पुत्रक नामे आ दोसर अपन जेठ भाएक नामे |

पुत्रकें लिखलथिन-हम हिनका ओत आदर्श विवाह तय कलेलियनि |फलाँ तारीख कनीक दिन  छै | आशा अछि अहाँकें हमर निर्णय पसंद हएत | शेष भेंट भेला पर | हम चारि दिन पहिने एबाक कोशिश करब |

 

जेठ भाएकें लिखलथिनहिनका ओतहम  आदर्श विवाह तय कलेलियनि |फलाँ तारीख कनीक दिन छै | ओही दिन विवाह हेतै | हम एबे करब | यदि कोनो कारणसँ ओइ दिन धरि नै पहुँचि पाबी त हम अहाँकें ई अधिकार दै छी जे अहाँ जा कविवाहक काज संपन्न करा देबनि जाहिसँ विवाहमे कोनो बाधा नै होइन |

दूनू चिट्ठी हमरा हाथमे ददेलनि |

 

चलै काल पुनः शर्तक स्मरण करौलनि |

हम कहलियनि मात्र एते आजादी दियजे प्रसन्नतापूर्वक जे कसकी से करी |’

कहलनि नै,ककरोसँ कर्ज लवा खेत-पथार भरना राखिकवा बेचिकनै, ने त हमरा आत्माकें चोट पहुँचत |

हुनक चरण स्पर्श करैत विदा भेलहुँ |

 

हम बहिनो आ हुनक जेठ भाएकें कहलियनि त हुनको सभकें आश्चर्य भेलनि आ प्रसन्नता सेहो | ओ लोकनि सुझाव देलनि जे जखन एतेक उदारता देखौलनिहें त विदाइ आदिक ध्यान राखब जरुरी हएत |

मोनमे ततेक आनन्द भरल छल जे होइत छल जे कतेक जल्दी गाम पहुँचि जाइ आ सभकें ई समाद कहि दियै |

रस्तामे हुनकर कहल रामचरितमानसक इ दोहा बेर-बेर मोन पड़ैत रहल :

तात स्वर्ग अपवर्ग सुख, धरिय तुला एक अंग

 तूल न ताही सकल मिली, जो सुख लव सत्संग |’

 

हम शिशवा पहुँचलहुँ आ दूनू गोटेकें पत्र ददेलियनि | बात तुरंत भरि टोलमे पसरि गेलै आ सभ लोक हमरासँ तरह-तरहक सवाल करलगलाह |

किनको विश्वास नै होइन | सभ क्यो अपना-अपना ढंगसँ चिट्ठीक अर्थ लगबलगलाह |

हम भोजन कथोड़े काल पड़लहुँ कि कियो जगा देलक |

देखलहुँ लड़काक मामा ( जे जाइत काल मनीगाछीमे भेटल छलाह )पहुँचल छलाह |हुनको कोना-ने-कोना खबरि भगेलनि |

  साइकिलसँ एलाह |तारमतोर हमरासँ सवाल करलगलाह :

अहाँ अबैत काल हमर भेंट किए ने केलहुँ?’

अहाँ हुनका की सभ कहलियनि ?’

ओ अहाँकें और की कहलनि ?’

हमरा त कहलनि जे अइ साल करबे नै करब तखन कोना अहाँकें गछि लेलनि ?’

भाएकें किए लिखलखिनहें जे हम नै आबि सकी त अहाँ जा कविवाह करादेबै ?’

हम सविनय हुनक प्रश्नक उत्तर दैत गेलियनि मुदा ओ हमर उत्तर सुननै चाहैत छलाह | हुनक तामस बढल जा रहल छलनि |

हमरा ओ रामलीलाक परशुराम जकाँ लगैत छलाह |

हम चुप्प भगेलहुँ |

ओ बजलाह हुनकर माथा ख़राब भगेलनिहें |’

क्यो किछु नै बजलै |

ओ भागिनकें बजा ककहलथिन, ‘तोरा बापक माथा ख़राब भगेलनि | हमरा संग चलह आ साफ-साफ़ कहुन जे हम एतविवाह नै करब |’

ओ कहलखिन –‘मामा,इ त जाए काल हमरासँ पूछि नेने छलाह जे ननूकका यदि स्वीकार कलेथि त अहाँकें कोनो एतराज त ने हएत, हम हिनका कहने छलियनि जे ननूककाक बात हम नै काटि सकै छी |एहेन स्थितिमे हम ओतजा ककहियनि जे हम एतविवाह नै करब, अइसँ त हिनको अपमान हेतनि आ ननू ककाक सेहो | हम एहेन काज नै कसकैत छी |’

हम कहलियनि –‘ यदि अहाँ इ सोचैत होइ जे अहाँक पिताक निर्णय सही नै छनि आ अहाँक इच्छाक विरुद्ध अछि ई निर्णय त ओते दूर जेबाक कोन काज, ई त हमरे कहलासँ भजाएत |

अहाँक इच्छाक विरुद्ध विवाहक कोनो अर्थ नै छै |’

मुदा ओ मामाजीक सुझावकें साफ अस्वीकार करैत कहलथिन-

मामा, हम नै जाएब, अहाँ जाए चाही त जाउ, अहाँक कहलासँ यदि ननू कका हमरा दोसर आदेश देताह त हम ओकरे पालन करब |’

मामाजी कहलथिन –‘तोरो माथा ख़राब भगेलह |’

 

मामाजी स्वयं मोरंग जेबाक निर्णय सुनबैत साइकिल लविदा भगेलाह |

 

एम्हर हमरा किछु लोक कहलगलाह-विद्यार्थी, अहाँ किए हल्ला कदेलियै ? बुझै नै छियै ? आब ई की जा ककहथिन की ने आ भेलो काज गड़बड़ा सकैए |’

हमर उत्साह ठंढा भगेल |

फेर ई विचार मोनमे आएल जे नहिये हेतै त की हेतै, दोसर ठाम प्रयास करब |

मामाजीक बात मोन पड़ैत छल त निराश होइत छलहुँ आ ननू ककाक बात मोन पड़ैत छल त प्रसन्न भजाइत छलहुँ |अही उहापोहक स्थितिमे ओतसँ अपन गाम आबि गेलहुँ |

 

गाममे आबिकफेर वएह केलियै |

लोक जे पुछलक  तकरा  मोरंगसँ शिशवा धरिक बात साफ-साफ कहि देलियै | एतहु लोक हँसलागल –‘तोरा हल्ला करबाक कोन काज छलह ? आब हुनकर मामा जेथिन त ओ बात बदलियो  सकैत छथि |’

हमर पड़ोसी पुछलनि जे जतलड़काक पितासँ गप भेलतत और कियो रहै ?                                       हम कहलियनि –‘ओतत और  कियो नै रहै |’

लोक बाजय—‘अही दुआरे ने चारि आदमीक बीच बात कयल जाइ छै जे कोनो हेर-फेर होइ त चारि आदमी पूछि सकै छनि, मुदा जखन कियो रहबे नै करै त काल्हि कहतजे हम नै कहने रहियनि त की कलेबहक ?’

हमरा एकर जबाब किछु नै फुरय |

मुदा, हमरा मोनमे ई विश्वास रहय जे ओ निर्णय बदलवला लोक नै छथि |

माए पुछ्लनि, ‘तोरा मोनमे भरोस छ’?’

हम कहलियनि हँ |’

ओ कहलनि –‘तखन हेबे करतै, तखन चिंता नै करह |’

 

माए-बाबूकें हुनकासँ भेल सभटा बात जखन सुनौलियनि तखन हमरा पिताकें सेहो भरोस भेलनि, ओना हमरा पिताकें पढाइ-लिखाइक अतिरिक्त आन कोनो काजमे हमरा सफल हेबाक संभावना क्षीण बुझाइत छलनि |

 

विना पाइ के एहेन ठाम विवाह ठीक हएब घरमे एकटा तेहेन आनन्दक वातावरण बना देलकै जे सभकें ख़ुशीसँ होइ जे की करी की ने | तय भेलै जे विवाहसँ पहिने  घड़ी, ट्रांजिस्टर, एकटा औंठी, पाँचो टूक कपड़ा आ जूता लड़काकें ददेल जाए, तें ई सभ पहिने कीनि कराखि लेल जाए |

बाबू प्रसन्न मोनसँ कोनो खेत भरना रखबाक विचार केलनि |

हम रोकि देलियनि |

हम कहलियनि-ओ हमरा सोझाँ ठाढ़ छथि | कहै छथि हमरा आत्माकें चोट पहुँचत |हमरा हुनक शर्तक पालन करबाक अछि |’

तखन कोना हेतै ?’ बाबू पुछ्लनि |

हम कहलियनि हमरा सासुरसँ आबदिय’|’

हमर विवाह एक साल पहिने भेल छल | द्विरागमन नै भेल छल |हमर ध्यान कनियाँक गहनापर गेल |

हम सासुकें विस्तारपूर्वक सभ बात कहि देलियनि |ओ कहलनि-गहना-गुड़िया एहने समयलेरहै छै, ओहो त हिनके छनि |भरना राखि कएखन काज चलि जेतनि | बादमे नोकरी हेतनि त छोड़ा लिहथि |’

सएह केलिऐ |

सभटा सामान कीनि कघरमे राखि लेल गेल |

वरियातीक खर्चक व्यवस्था लेसेहो निश्चिन्त भगेलहुँ |

हम हुनका एकटा चिट्ठी लिखि कपठा देलियनि |

हुनका गामपर जे-जे प्रतिक्रिया भेलै, से सभटा लिखैत इहो लीखि  देलियनि जे मामाजी गेल हेताह, ओ किछु सुझाव देने हेताह | ओना हमरा पूरा विश्वास अछि, मुदा यदि अपनेकें लागय जे गलतीसँ निर्णय लिया गेल अछि त अपने एखनो स्वतंत्र छी निर्णय बदलबाक लेल, हमर एतबे अनुरोध जे यदि कोनो कारणसँ अपनेकें परिवर्तन आवश्यक बुझाए त जल्दीए हमरा सूचित करबाक कष्ट करब जाहिसँ हमरा अन्यत्र कतौ प्रयास करबाक लेल समय भेटि सकय |

 

चिट्ठीक जबाब नै आएल |

ओतचिट्ठी बहुत-बहुत दिन पर पहुचैत छलै |फोनक सुविधा त छलैहे नै |

जे दिन तय रहै ओइसँ चारि दिन पहिने सबेरे-सबेरे एक व्यक्ति  साइकिलसँ एलाह आ कहलनि –‘ननू कका काल्हि गाम एलाहे,अहाँकें बजबैत छथि |’

ओ रुकलाह नै |

हम तुरंते तैयार भेलहुँ | कीनल सभ सामान बैगमे लेलहुँ |

रिक्शासँ विदा भेलहुँ |

 

दरबज्जापर एकदम प्रसन्न मुद्रामे भेटलाह |

प्रणाम केलियनि |

एकदम प्रसन्न रहू |’ ख़ुशीसँ बजलाह |

हम पुछलियनि-हमर चिट्ठी भेटल रहय ?’

हँ |’ ओ कहलनि |

हम उताराक बाट तकैत छलहुँ |’

किए ? हमरा बातपर भरोस नै छल ?’ ओ हँसैत पुछलनि |

भरोस त छल, मुदा कखनो-कखनो ई होइत छल जे मामाजीक कारण अपनेकें निर्णय बदलबाक लेल बाध्य ने हुअ पड़ल हुअए |’

ओ कहलनि-गेल रहथि | कहलनि, अहाँक माथा खराब भगेल अछि |कहलियनि अहाँ निश्चिन्त रहू,सेहो हएत त अहाँकें कोनो कष्ट नै देब | हमरा समझाबलगलाह | पुछलियनि, अहाँ हमरासँ जेठ छी कि छोट, कहलनि से त छोटे छी |

त कहलियनि जे हम अहाँकें समझाएब कि अहाँ हमरा समझाबआएल छी | रहू, भोजन करू,हमरा ख़ुशीमे शामिल होउ | कहलनि जे हमर बात नै मानब त हम वरियातियोमे नै जाएब |हम कहलियनि जे हमरा ख़ुशीमे अहाँकें दुःख हुअए त दुखी मोनसँ वरियाती जेबो नै करू | भगला ओतसँ, ओ नै जेताह वरियाती | हम एतहु लोक सभकें कहि देलियनिहें, जे ख़ुशी मोनसँ चलि सकथि सएह वरियाती चलथि ने त नै जाथि | जे मनुक्ख जकाँ भोजन करथि से चलथि, जिनका राक्षस जकाँ भोजन करबाक होइन से नै जाथि |’

 

भरल दलान लोक आ एतेक स्पष्ट रुपें बात करब-हमरा लेल एकदम अप्रत्याशित छल | ओ हमरा कहलनि-पंद्रह आदमी रहब |अहाँ तरकारी दूटासँ बेशी नै करब, दू तौला दही पौरबा लिय’,मात्र एकटा मिठाइ राखब, और किछु नै करबाक अछि | परेशान हेबाक काज नै करब, जएह रहत ताहीमे यश-यश भजाएत |’

हम कहलियनि –‘ अपनेक शर्तक पालन करैत हम सभ आनन्ददपूर्वक किछु चीजक व्यवस्था  अनने छी से ग्रहण करबाक आज्ञा दीयनु

हम बैगमे राखल सामान सभ निकाललहुँ त ओ नाराज होइत कहलनि-ई आदर्श भेलै ? जखन एते चीज अहाँसँ लैए लेताह तखन कोन आदर्श ?’

 

हम कतेक तरहें विश्वास दियौलियनि जे एहिमे हमर परिवारक आनन्द आ उल्लास अछि, एहि लेल ने खेत भरना राखपड़ल अछि ने ककरोसँ कर्ज लेबपड़ल अछि |

ओ बालककें बजाककहलथिन –‘ई विद्यार्थी जे किछु लअनने छथि तकरा हिनक आशीर्वाद आ भगवानक प्रसाद बूझि सहर्ष ग्रहण कलिय’|’

हम बलजोरी हुनका सभ सामान ददेलियनि |

 

तेहेन हर्ष आ उल्लासक वातावरण ओ बनौने रहलखिन जे विवाहसँ द्विरागमन धरि आनन्दपूर्वक सभटा काज संपन्न भगेलै| दुसबाक कोन कथा, साधारण-सँ-साधारण वस्तुक प्रशंसा तेना करैत छलथिन जे सबहक मोन हर्षसँ भरि जाइत छलैक |

हुनक पुत्र सेहो हुनके लीखपर चलैत कहियो कोनो समस्या नै उत्पन्न होमदेलथिन | ओ मित्र जकाँ सदैब रहलाह | हमरा पिताकें अपने पिताक समान प्रेम आ आदर दैत रहलथिन |

हमर पिता अपन अंतिम दू बरख हमरा लग छलाह परन्तु ओइसँ पहिने किछु साल दिल्लीमे हिनके संग आनंदपूर्वक स्वास्थ्य-लाभ प्राप्त केलनि |  दिल्लीमे  हमर अनुज लोकनि सेहो हिनक सानिध्य आ स्नेह  प्राप्त कचुकल छथि |

तीस बरखक बाद 2003  मे ननू कका ओछाइन धनेने छलाह |

2 मार्च कभेंट करगेलियनि | कहलियनि –‘आशीर्वाद दियौ, 7 मार्च ककन्यादान छै |’

कहलनि-सहर्ष आशीर्वाद दै छी, निर्विघ्न सभ काज पूर्ण हएत |’

ननू कका अंतिम समयमे सेहो अपन बात पर अडिग रहलाह |

विवाह भेलै, चतुर्थी भेलै, जमाएकें विदा केलियनि |

ओकर प्रात ननू कका देह त्यागि देलनि |

ननू कका ऐ संसारसँ विदा भगेलाह,

मुदा

हमरा मोनसँ कहियो

नहि विदा भसकैत छथि ननू कका |.........

(क्रमशः )  


आगाँक कथाक प्रस्तुतिक सूचना बादमे