Saturday, 10 December 2022

 

               आँखिमे चित्र हो मैथिली केर

                                          ( आत्मकथा )

                                                     5.

                   एकटा नाटकक अन्त : एकटा कथाक जन्म

दिन भरि हम सभ क्लासक पाछाँ व्यस्त रहैत छलहुँ | साँझमे पाँच बजेसँ सात बजे धरि समय रहैत छल घुमै लेल अथवा मनोरंजनक लेल |

घुमैले’ हम सभ बान्ह पर जाइत छलहुँ | अधिक काल चारू गोटे संगे रहैत छलहुँ |

गप कतहुसँ शुरू होइ मुदा घूरि-फीरिक’ सभ दिन ओही ठाम पहुँचि जाइ छलै | एकटा झूठ सत्यक स्थान प्राप्त क’ नेने छल |

मिश्र जी गीताक कोनो श्लोक द्वारा हमर स्थितिक विवेचन करैत छलाह आ समाधानक सूत्र कहैत छलाह |

झाजी और ठाकुरजी सेहो अपन-अपन विचार दैत छलाह | सभ गोटे हमर तथाकथित समस्याकें सोझराबय चाहैत छलाह |

निर्णय भेलै जे पन्द्रह दिन बाद दू दिनक जे छुट्टी छै तकर उपयोग करैत हम शनि दिन क्लासक बाद बस पकड़ब | एहि सँ पहिने हम एकटा चिट्ठी लीखि पठा दिऐ |

मिश्र जी हमरा रजोगुण आ तमोगुणक त्यागक  लाभ बुझबैत रहलाह |एकटा चिट्ठी हमरासँ लिखबाओल गेल |

निर्धारित दिन जेबाक लेल हमर यथोचित तैयारी  नहि देखि, हम नीक जकाँ जाइ तकर तत्काल  प्रबन्ध भेल | झाजी अपन बला आयरन कएल सुन्दर पैंट-शर्ट पहीरिक’ जाए लेल देलनि, जे हमरा फिट सेहो भ’ गेल |

ठाकुर जी अपन बला  नबका बैग देलनि | एक बेर फेर हम अपन स्थिति स्पष्ट करबाक कोशिश केलहुँ, मुदा झूठ ततेक आकर्षक भ’ गेल छलैक जे सत्य प्रभावहीन भ’ गेल छल |  क्लासक बाद, भोजनक बाद  बस स्टैंड आबि हमरा दरभंगा बला बस पकड़ा देल गेल  |

बसमे सीट भेटि गेल |

बैगसँ ‘मिथिला मिहिर’ निकाललहुँ | पढ़’ लगलहुँ |

कोनो कथा पढ़ैत-पढैत एकाएक ध्यानमे आएल, हम जाहि स्थितिक अभिनयमे बाझल छी, ईहो त’ एकटा कथा भ’ सकैत छै | हम कल्पनामे डूबि गेलहुँ |

एकटा नव विवाहित युवक पत्नीक कोनो व्यवहारसँ दुखी भेल अछि – कतेक नीक-अधलाह कल्पना करैत अछि –बहुत दिनसँ एकटा चिट्ठीक बाट तकैत अछि –चिट्ठीक बिना डेग नहि उठब’ चाहैत अछि- परीक्षाक अंतिम दिन छै,कॉलेजसँ घुरैत अछि –चाहैत अछि कोनो चिट्ठी आएल रहितै त’ आइ अवश्य विदा होइत सासुर....... |

अपने संग संवाद चलि रहल छल |

धुर, एहेन झूठ कतहु कथा भेलैए |

त’ की कथा सत्य हेबाक चाही ? कथा कोनो अखबारक समाचार थोड़े होइछै ?

त की सभटा जे कथा पढैत छी, झूठ छै ?

से नहि त की ? कनी सत्य आ बेशी झूठ |

मगर झूठ किए ? बिना झूठ के कथा नै भ’ सकै छै ?

बिना झूठक कथा माने कोनो अखबारक समाचार |

नै, अखबार ओ कहै छै जे भेलैए, जे हेबाक चाही से कथा कहतै |

कथा लोकक सम्वेदनाकें जगबैत छै |

अखबारमे एकटा तथ्य रहैत छै,कथा एकटा सत्य दिस लोकक ध्यान आकृष्ट करैत छैक | कथासँ एकटा सन्देश निकलैत छै, जकर उद्देश्य कल्याण होइ छै, सुख आ शान्ति होइ छै |

कथ्य, तथ्य आ सत्यमे की अंतर ?

की तीनू एके नै भ’ सकैत अछि ?

किछु कथा सुखान्त होइत अछि, किएक त जीवनक लक्ष्य होइत अछि सुख-शान्ति, अन्त नीक त सभटा नीक | किछु कथाक अन्त दुखमे होइत अछि...एकटा प्रश्न छोड़ि जाइत अछि...एहि दुखसँ उबरबाक प्रश्न |

हमरा नीक लगैत अछि सुखान्त कथा | हमर कथा सेहो एहने हेबाक चाही | लिखलाक बाद मोन  हल्लुक लागय |

हम अपन कथाक अन्त तकैत छी .....हम सिनेहसँ किरण दिस तकैत छी.....तकिते रहैत छी .....बड़ी काल धरि....नीक लगैत अछि एना ताकब ....बहुत दिनक बाद |

बस रुकल | हमर कल्पनाक उड़ान बन्द भेल | आबि गेल छलहुँ लहेरियासराय |

लहेरियासरायसँ दरभंगा, दरभंगासँ सकरी –पंडौल होइत कैटोला चौक धरि पहुँचैत-पहुँचैत कथा मोनमे जन्म ल’ नेने छल आ कागत पर उतरबाक लेल लालटेमक इजोत, कागत आ पेनक प्रतीक्षा करय लागल |

सबेरे स्नान क’ क’ सायकिल लेलहुँ, विदा भेलहुँ भवानीपुर | संगे छलाह आशा भाइ आ भगवान बाबू |

 ईहो स्थान एकटा कथाक कारणें आकर्षित केने अछि | उगना नाटकमे एकर वर्णन अछि | महाकवि विद्यापति राजा शिव सिंह ओत’ जा रहल छलाह, संगमे छलनि खबास उगना | एतहि एलाक बाद बड्ड जोर पियास लगलनि |

उगना कनिए कालमे जल आनिक’ देलकनि पीबाक लेल |

पीलनि त गंगाजलक आभास भेलनि | पुछलखिन कत’  सँ जल अनलें त जे जबाब भेटनि, ताहिसँ संतुष्ट नहि होइत छलाह | लगमे कतहु जलाशय हेबाक सम्भावना नहि बुझाइत छलनि | कोनो अलौकिक शक्तिक आभास भेलनि | ध्यान केलनि त’ महादेव सोझाँ आबि गेलखिन | उगनामे महादेवक दर्शन भेलनि |पएर  पकड़ि लेलखिन | महादेव किछु पल लेल दर्शन दैत कहलखिन जे ई रहस्य जहिए ककरो लग प्रकट करब, हम अलोपित भ’ जाएब |

कथा कहैत अछि जे महादेव विद्यापतिक गीतसँ एतेक प्रभावित भेलाह जे हुनका संग रहबाक लेल धरतीपर एलाह आ हुनकर खबास बनिक’ किछु  दिन धरि  रहलाह |

काव्य-कर्मकें प्रतिष्ठा देब’ बला ई अदभुत कथा अछि |

एहि कथाक कारण ई स्थान मिथिलाक प्रमुख धार्मिक स्थलक रूपमे लोकक आस्थाक केन्द्रमे रहल अछि | भव्य मन्दिर आ जलाशय लोककें आकृष्ट करैत छैक  |

शिव रात्रिमे एहि ठामक दृश्य मनोहर रहैत अछि, ओना रवि दिनक’ सेहो सालो  भरि दर्शक आ शिव-भक्त लोकनि अबैत रहैत छथि | हमहूँ सभ कतेक रविक’ एत’ आएल छलहुँ | ढोली जेबासँ पहिने नियमित रूपसँ रवि दिनक’ अबैत छलहुँ |   

पूजाक बाद मुरही-कचरी कीनि कतहु बैसिक’ गप-शप करैत खाइत आ फेर साइकिलसँ घर घुरैत आनन्दक अनुभव करैत छलहुँ | से बहुत दिनक बाद  आइयो भेल |

आइयो विद्यापति आ उगनाक कथापर विचार करैत आनन्द अबैत अछि | पुराण सभमे भगवानक विभिन्न अवतारक कथाक वर्णन अछि | कहल गेल अछि जे धरतीपर जखन-जखन अन्याय-आतंक-अत्याचार बहुत बढ़ि जाइत अछि त धर्मक स्थापनाक लेल भगवान विभिन्न रूपमे प्रकट होइत छथि |

कोनो महाकवि अपन विशिष्ट रचना द्वारा सामूहिक चेतनाक आविष्कार करैत छथि | यैह चेतना जन-मनमे नव संकल्प-शक्ति आ संस्कार भरैत अछि जे अपेक्षित सामाजिक, आर्थिक आ राजनीतिक आन्दोलनक सूत्रपात करैत अछि जे अन्याय-आतंक आ अत्याचारक अन्त करैत अछि | एहि चेतनाकें भगवानक रूपमे देखल  जा सकैत अछि |

महाकवि विद्यापतिक समयमे समाजमे जे असमानता अथवा विद्रूपता छलै, तकरा मधुर गीतक माध्यमसँ लोकक समक्ष आनि लोककें जागृत कएल गेल जे एकटा सांस्कृतिक आंदोलनक रूपमे देश-विदेश सभ ठाम प्रतिष्ठित भेल अछि |

विद्यापति आ उगनाक कथाकें जखन एहि दृष्टिसँ  देखैत छी त कथाकारक प्रति असीम श्रद्धा होइत अछि |

ई शोधक विषय भ’ सकैत अछि जे टेलिफ़ोन-मोबाइलक आविष्कारमे ‘के पतिया लय जायत रे मोरा प्रियतम पास....’ अथवा एहने कोनो रचनाक की आ कतेक योगदान अछि, अनमेल विवाहकें रोकबामे ‘पिया मोर बालक......’ गीतक हस्तक्षेपक की प्रभाव पड़ल |

 

साँझमे बैगसँ कापी आ पेन निकालि लालटेम ल’ क’ बैसि गेलहुँ | 

सबेरमे मोन प्रसन्न लगैत छल | कागतपर कथाक जन्म भ’ चुकल छलै | आनंदक अनुभव करैत गामसँ प्रस्थान केलहुँ ढोलीक लेल |

हमर मोन प्रसन्न छल, से देखि हमर शुभेच्छु संगी सभ सेहो प्रसन्न भेलाह |

हमर कथा पढ़िक’ मिश्रजीकें नीक लगलनि आ आगू किछु पुछबाक आवश्यकता नहि रहि गेलनि | कह्लनि कथा आकाशवाणीकें पठा दियौ | तीनू गोटेक यैह  सुझाव छलनि |

फेयर क’ क’ कथाकें आकाशवाणी,पटनाकें मैथिली कार्यक्रम ‘भारती’ लेल पठा  देलहुँ  |

एक मासक भीतरे आकाशवाणीसँ सूचना भेटल जे कथा ‘भारती’मे प्रसारण हेतु स्वीकृत कएल गेल अछि, अतिरिक्त सूचना बादमे भेटत | नीक लागल | फेर किछु दिनक बाद प्रसारणक तिथि, समय आ पारिश्रमिक-राशिक सूचना भेटल | आनंदित भेलहुँ | संगी सबहक सुझाव जे हम अपनहि जा क’ कथाक पाठ करी, कल्पना ई जे कथाक नायिका सेहो सुनतीह त आनन्दित हेतीह |

प्रसारणक समय  5.30  छलै | हम करीब 11  बजे आकाशवाणी पहुँचलहुँ |  गुंजनजीक आवाज त सुनने छलहुँ, भेंट आइ पहिल बेर भेल छल, से नीक लागल | अपन एबाक उद्देश्य कहलियनि |सम्पादित  कथा देख’ देलनि | देखलिऐ, किछु ठाम अंगरेजीक शब्द छलै, तकरा बदला मैथिली शब्द राखल गेल छलै, किछु और सुधार कयल गेल  छलै | हम आगाँ  ध्यानमे रखबाक संकल्प केलहुँ |

कथा-पाठ  लेल 10 मिनट निर्धारित छलै | हमरा पढ़’ कहलनि |

कहलनि, हड़बड़ी करबाक काज नै छै, एक-आध मिनट बेसी लागि जाइ त कोनो बात नै | कार्यक्रम साढ़े पाँच सँ शुरू होइत छलै, हमरा पाँच बजे आबि जाय कहलनि |

हम पाँच बजे गेलहुँ, त कथा प्रेमलता मिश्र ‘प्रेम’क हाथमे देखलियनि | प्रेमलता जी सेहो ‘भारती’ मे रहैत छलीह | गुंजन जी आ प्रेमलताजीक  स्वर सुनने रही,मुदा सोझाँ देखबाक-सुनबाक ई पहिल अवसर छल, से आनंदित भेलहुँ | कथा पर दुनू गोटेक  टिप्पणी नीक लागल | एकटा नव विवाहित नवयुवकक मनःस्थितिक चित्रण छलै कथामे |

मिश्र जी कहैत छलाह जे ई जिनगी दू टा जिनगीक बीच ओहिना अछि जेना सिनेमाक बीचमे इन्टरवल होइ छै | हम कथाक नाम ‘इन्टरवल’ रखने रही, तकरा स्थान पर ‘धारक ओइ पार’ कयल गेल रहै, से हमरा कथाक अनुरूप ठीक लागल आ एहिसँ शीर्षक चुनबाक लेल नव दृष्टि भेटल | नीक अनुभवक संग घुरल रही पटनासँ |

 

पटनासँ घुरैत काल सोचैत रही जे कथामे की रहै -सन्देहक एकटा धार छलै, जकरा ओइ पार तथ्य छलै, से सुन्दर छलै, कल्याणकारी छलै | मुदा छलै त एकटा कल्पना आ कल्पना मात्र | हमर त विवाहो नै भेल अछि  | अपनहि मोन उतारा देलक, रोगीक दुःख दूर करबाक लेल कोनो जरुरी छै जे डॉक्टरकें बिमारीक अनुभव होइ ?

त की जतेक कथा पढैत छी, से कल्पनाक कमाल मात्र थिक ? सीता आ रामक कथा – रामक चरण रजसँ अहिल्याक उद्धारक कथा, आइ रामक राजतिलकक निर्णय आ काल्हि चौदह बरखक लेल वनबासक कथा, सीता-हरण आ रावणक मृत्युक पश्तात रामक  अयोध्या आगमन आ राज्याभिषेक –एहिमे कतेक सत्य आ कतेक कल्पनाक उड़ान से के कहि सकत | मुदा कथा विभिन्न परिस्थितिमे स्वस्थ जीवन जीवाक लेल मार्ग-दर्शनक रूपमे एकटा उपकरण बनिक सोझाँ अबैत अछि |

हमरा ‘कन्यादान’क बुच्ची दाइक कथा मोन पड़ैत  अछि |

बुच्ची दाइक वियाहक कथा –सी सी मिश्रक कथा – अनमेल विवाहक परिणाम –एकटा सामाजिक समस्या –समस्याक निदान देखबैत ‘द्विरागमन’ –की एना सम्भव छै.......मुदा, हम ई सभ किएक सोच’ लगलहुँ - हमरा जीवनमे बुच्ची दाइ नहि आबि सकैत छथि- हमरा सावधान रहबाक  अछि ...एकदम सावधान .... हमरा लगैत अछि जे जीवनक आनन्द लेल जीविकोपार्जनक व्यवस्था आ साहित्यसँ प्रेम दूनू जरूरी अछि आ साहित्यसँ प्रेमक लेल आवश्यक अछि जे पत्नी सेहो पढ़लि-लिखलि होथि .... आ से किएक ने भ’ सकैत अछि ...एकटा कल्पनामे विचरण करैत ढोली पहुँचलहुँ |

होस्टल पहुँचि आनन्दित भेलहुँ | हमर प्रिय संगी सभ सुनने छलाह कार्यक्रम | सबहक कल्पना ई जे कनियाँ सेहो सुनने हेतीह त कते आनन्दित भेल  हेतीह |

आब चर्चाक केन्द्र ई कथा बन’ लागल | हम कागज़ पर दू टा टुकड़ीमे लिखलहुँ  जे एहि नाटककें एतहि समाप्त कर’ चाहैत छी आ ठाकुरजी आ झाजीक कोठलीमे एक-एक टा टुकड़ी  नीचाँ द’ क’ रातिमे खसा देलहुँ आ  मिश्रजीकें मौखिक रूपसँ कहि देलियनि, मुदा कियो मान’ लेल तैयार नहि भेलाह | हमरा कखनो क’ हुअ’ लागल की पता इहो सभ बुझियोक’ नहि बुझबाक नाटक क’ रहल छथि |

तिला संक्रान्तिक बाद हमर पिता गामसँ किछु सनेश नेने एलाह त  कोनो तरहें मिश्रजी हुनका पूछिक’ सत्यकें स्वीकार करबाक स्थितिमे अबैत एक दिन कहलनि, हम सभ गोटे एहि सृष्टिमे कोनो-ने-कोनो भूमिकामे रहैत जीवन भरि अभिनय करैत रहैत छी, कखनो बालक-बालिकाक रूपमे, कखनो माता-पिताक रूपमे अथवा छात्र-गुरु,पोता-दादा, मित्र-शत्रु अथवा आन कोनो संबन्धमे,

ई संसार एकटा रंगमंच अछि  आ हम सभ अभिनेता,

अभिनेता मंचसँ दूर भ’ जाइत अछि,मुदा अभिनयक स्मृति शेष रहि जाइत अछि ; अभिनेता बदलि जाइत अछि,

 रंगमंचपर अभिनय चलैत रहैत अछि..........

( क्रमशः )  सम्पर्क : 8789616115

 

आगाँक कथा  : 30.10.2022 क’                      

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