आँखिमे चित्र हो
मैथिली केर
( आत्मकथा )
5.
एकटा नाटकक अन्त :
एकटा कथाक जन्म
दिन भरि हम सभ क्लासक पाछाँ व्यस्त रहैत छलहुँ | साँझमे पाँच बजेसँ सात
बजे धरि समय रहैत छल घुमै लेल अथवा मनोरंजनक लेल |
घुमैले’ हम सभ बान्ह पर जाइत छलहुँ | अधिक काल चारू गोटे संगे रहैत छलहुँ
|
गप कतहुसँ शुरू होइ मुदा घूरि-फीरिक’ सभ दिन ओही ठाम पहुँचि जाइ छलै |
एकटा झूठ सत्यक स्थान प्राप्त क’ नेने छल |
मिश्र जी गीताक कोनो श्लोक द्वारा हमर स्थितिक विवेचन करैत छलाह आ
समाधानक सूत्र कहैत छलाह |
झाजी और ठाकुरजी सेहो अपन-अपन विचार दैत छलाह | सभ गोटे हमर तथाकथित
समस्याकें सोझराबय चाहैत छलाह |
निर्णय भेलै जे पन्द्रह दिन बाद दू दिनक जे छुट्टी छै तकर उपयोग करैत हम
शनि दिन क्लासक बाद बस पकड़ब | एहि सँ पहिने हम एकटा चिट्ठी लीखि पठा दिऐ |
मिश्र जी हमरा रजोगुण आ तमोगुणक त्यागक
लाभ बुझबैत रहलाह |एकटा चिट्ठी हमरासँ लिखबाओल गेल |
निर्धारित दिन जेबाक लेल हमर यथोचित तैयारी नहि देखि, हम नीक जकाँ जाइ तकर तत्काल प्रबन्ध भेल | झाजी अपन बला आयरन कएल सुन्दर
पैंट-शर्ट पहीरिक’ जाए लेल देलनि, जे हमरा फिट सेहो भ’ गेल |
ठाकुर जी अपन बला नबका बैग देलनि
| एक बेर फेर हम अपन स्थिति स्पष्ट करबाक कोशिश केलहुँ, मुदा झूठ ततेक आकर्षक भ’
गेल छलैक जे सत्य प्रभावहीन भ’ गेल छल |
क्लासक बाद, भोजनक बाद बस स्टैंड
आबि हमरा दरभंगा बला बस पकड़ा देल गेल |
बसमे सीट भेटि गेल |
बैगसँ ‘मिथिला मिहिर’ निकाललहुँ | पढ़’ लगलहुँ |
कोनो कथा पढ़ैत-पढैत एकाएक ध्यानमे आएल, हम जाहि स्थितिक अभिनयमे बाझल छी,
ईहो त’ एकटा कथा भ’ सकैत छै | हम कल्पनामे डूबि गेलहुँ |
एकटा नव विवाहित युवक पत्नीक कोनो व्यवहारसँ दुखी भेल अछि – कतेक
नीक-अधलाह कल्पना करैत अछि –बहुत दिनसँ एकटा चिट्ठीक बाट तकैत अछि –चिट्ठीक बिना
डेग नहि उठब’ चाहैत अछि- परीक्षाक अंतिम दिन छै,कॉलेजसँ घुरैत अछि –चाहैत अछि कोनो
चिट्ठी आएल रहितै त’ आइ अवश्य विदा होइत सासुर....... |
अपने संग संवाद चलि रहल छल |
धुर, एहेन झूठ कतहु कथा भेलैए |
त’ की कथा सत्य हेबाक चाही ? कथा कोनो अखबारक समाचार थोड़े होइछै ?
त की सभटा जे कथा पढैत छी, झूठ छै ?
से नहि त की ? कनी सत्य आ बेशी झूठ |
मगर झूठ किए ? बिना झूठ के कथा नै भ’ सकै छै ?
बिना झूठक कथा माने कोनो अखबारक समाचार |
नै, अखबार ओ कहै छै जे भेलैए, जे हेबाक चाही से कथा कहतै |
कथा लोकक सम्वेदनाकें जगबैत छै |
अखबारमे एकटा तथ्य रहैत छै,कथा एकटा सत्य दिस लोकक ध्यान आकृष्ट करैत छैक
| कथासँ एकटा सन्देश निकलैत छै, जकर उद्देश्य कल्याण होइ छै, सुख आ शान्ति होइ छै |
कथ्य, तथ्य आ सत्यमे की अंतर ?
की तीनू एके नै भ’ सकैत अछि ?
किछु कथा सुखान्त होइत अछि, किएक त जीवनक लक्ष्य होइत अछि सुख-शान्ति,
अन्त नीक त सभटा नीक | किछु कथाक अन्त दुखमे होइत अछि...एकटा प्रश्न छोड़ि जाइत
अछि...एहि दुखसँ उबरबाक प्रश्न |
हमरा नीक लगैत अछि सुखान्त कथा | हमर कथा सेहो एहने हेबाक चाही | लिखलाक
बाद मोन हल्लुक लागय |
हम अपन कथाक अन्त तकैत छी .....हम सिनेहसँ किरण दिस तकैत छी.....तकिते
रहैत छी .....बड़ी काल धरि....नीक लगैत अछि एना ताकब ....बहुत दिनक बाद |
बस रुकल | हमर कल्पनाक उड़ान बन्द भेल | आबि गेल छलहुँ लहेरियासराय |
लहेरियासरायसँ दरभंगा, दरभंगासँ सकरी –पंडौल होइत कैटोला चौक धरि
पहुँचैत-पहुँचैत कथा मोनमे जन्म ल’ नेने छल आ कागत पर उतरबाक लेल लालटेमक इजोत,
कागत आ पेनक प्रतीक्षा करय लागल |
सबेरे स्नान क’ क’ सायकिल लेलहुँ, विदा भेलहुँ भवानीपुर | संगे छलाह आशा भाइ
आ भगवान बाबू |
ईहो स्थान एकटा कथाक कारणें आकर्षित केने अछि |
उगना नाटकमे एकर वर्णन अछि | महाकवि विद्यापति राजा शिव सिंह ओत’ जा रहल छलाह,
संगमे छलनि खबास उगना | एतहि एलाक बाद बड्ड जोर पियास लगलनि |
उगना कनिए कालमे जल आनिक’ देलकनि पीबाक लेल |
पीलनि त गंगाजलक आभास भेलनि | पुछलखिन कत’ सँ जल अनलें त जे जबाब भेटनि, ताहिसँ संतुष्ट
नहि होइत छलाह | लगमे कतहु जलाशय हेबाक सम्भावना नहि बुझाइत छलनि | कोनो अलौकिक
शक्तिक आभास भेलनि | ध्यान केलनि त’ महादेव सोझाँ आबि गेलखिन | उगनामे महादेवक
दर्शन भेलनि |पएर पकड़ि लेलखिन | महादेव
किछु पल लेल दर्शन दैत कहलखिन जे ई रहस्य जहिए ककरो लग प्रकट करब, हम अलोपित भ’
जाएब |
कथा कहैत अछि जे महादेव विद्यापतिक गीतसँ एतेक प्रभावित भेलाह जे हुनका
संग रहबाक लेल धरतीपर एलाह आ हुनकर खबास बनिक’ किछु दिन धरि रहलाह |
काव्य-कर्मकें प्रतिष्ठा देब’ बला ई अदभुत कथा अछि |
एहि कथाक कारण ई स्थान मिथिलाक प्रमुख धार्मिक स्थलक रूपमे लोकक आस्थाक
केन्द्रमे रहल अछि | भव्य मन्दिर आ जलाशय लोककें आकृष्ट करैत छैक |
शिव रात्रिमे एहि ठामक दृश्य मनोहर रहैत अछि, ओना रवि दिनक’ सेहो
सालो भरि दर्शक आ शिव-भक्त लोकनि अबैत
रहैत छथि | हमहूँ सभ कतेक रविक’ एत’ आएल छलहुँ | ढोली जेबासँ पहिने नियमित रूपसँ
रवि दिनक’ अबैत छलहुँ |
पूजाक बाद मुरही-कचरी कीनि कतहु बैसिक’ गप-शप करैत खाइत आ फेर साइकिलसँ
घर घुरैत आनन्दक अनुभव करैत छलहुँ | से बहुत दिनक बाद आइयो भेल |
आइयो विद्यापति आ उगनाक कथापर विचार करैत आनन्द अबैत अछि | पुराण सभमे
भगवानक विभिन्न अवतारक कथाक वर्णन अछि | कहल गेल अछि जे धरतीपर जखन-जखन
अन्याय-आतंक-अत्याचार बहुत बढ़ि जाइत अछि त धर्मक स्थापनाक लेल भगवान विभिन्न रूपमे
प्रकट होइत छथि |
कोनो महाकवि अपन विशिष्ट रचना द्वारा सामूहिक चेतनाक आविष्कार करैत छथि |
यैह चेतना जन-मनमे नव संकल्प-शक्ति आ संस्कार भरैत अछि जे अपेक्षित सामाजिक,
आर्थिक आ राजनीतिक आन्दोलनक सूत्रपात करैत अछि जे अन्याय-आतंक आ अत्याचारक अन्त
करैत अछि | एहि चेतनाकें भगवानक रूपमे देखल जा सकैत अछि |
महाकवि विद्यापतिक समयमे समाजमे जे असमानता अथवा विद्रूपता छलै, तकरा
मधुर गीतक माध्यमसँ लोकक समक्ष आनि लोककें जागृत कएल गेल जे एकटा सांस्कृतिक
आंदोलनक रूपमे देश-विदेश सभ ठाम प्रतिष्ठित भेल अछि |
विद्यापति आ उगनाक कथाकें जखन एहि दृष्टिसँ देखैत छी त कथाकारक प्रति असीम श्रद्धा होइत
अछि |
ई शोधक विषय भ’ सकैत अछि जे टेलिफ़ोन-मोबाइलक आविष्कारमे ‘के पतिया लय
जायत रे मोरा प्रियतम पास....’ अथवा एहने कोनो रचनाक की आ कतेक योगदान अछि, अनमेल
विवाहकें रोकबामे ‘पिया मोर बालक......’ गीतक हस्तक्षेपक की प्रभाव पड़ल |
साँझमे बैगसँ कापी आ पेन निकालि लालटेम ल’ क’ बैसि गेलहुँ |
सबेरमे मोन प्रसन्न लगैत छल | कागतपर कथाक जन्म भ’ चुकल छलै | आनंदक
अनुभव करैत गामसँ प्रस्थान केलहुँ ढोलीक लेल |
हमर मोन प्रसन्न छल, से देखि हमर शुभेच्छु संगी सभ सेहो प्रसन्न भेलाह |
हमर कथा पढ़िक’ मिश्रजीकें नीक लगलनि आ आगू किछु पुछबाक आवश्यकता नहि रहि
गेलनि | कह्लनि कथा आकाशवाणीकें पठा दियौ | तीनू गोटेक यैह सुझाव छलनि |
फेयर क’ क’ कथाकें आकाशवाणी,पटनाकें मैथिली कार्यक्रम ‘भारती’ लेल पठा देलहुँ
|
एक मासक भीतरे आकाशवाणीसँ सूचना भेटल जे कथा ‘भारती’मे प्रसारण हेतु
स्वीकृत कएल गेल अछि, अतिरिक्त सूचना बादमे भेटत | नीक लागल | फेर किछु दिनक बाद
प्रसारणक तिथि, समय आ पारिश्रमिक-राशिक सूचना भेटल | आनंदित भेलहुँ | संगी सबहक
सुझाव जे हम अपनहि जा क’ कथाक पाठ करी, कल्पना ई जे कथाक नायिका सेहो सुनतीह त आनन्दित
हेतीह |
प्रसारणक समय 5.30 छलै | हम करीब 11 बजे
आकाशवाणी पहुँचलहुँ | गुंजनजीक आवाज त
सुनने छलहुँ, भेंट आइ पहिल बेर भेल छल, से नीक लागल | अपन एबाक उद्देश्य कहलियनि
|सम्पादित कथा देख’ देलनि | देखलिऐ, किछु
ठाम अंगरेजीक शब्द छलै, तकरा बदला मैथिली शब्द राखल गेल छलै, किछु और सुधार कयल
गेल छलै | हम आगाँ ध्यानमे रखबाक संकल्प केलहुँ |
कथा-पाठ लेल 10 मिनट निर्धारित
छलै | हमरा पढ़’ कहलनि |
कहलनि, हड़बड़ी करबाक काज नै छै, एक-आध मिनट बेसी लागि जाइ त कोनो बात नै |
कार्यक्रम साढ़े पाँच सँ शुरू होइत छलै, हमरा पाँच बजे आबि जाय कहलनि |
हम पाँच बजे गेलहुँ, त कथा प्रेमलता मिश्र ‘प्रेम’क हाथमे देखलियनि |
प्रेमलता जी सेहो ‘भारती’ मे रहैत छलीह | गुंजन जी आ प्रेमलताजीक स्वर सुनने रही,मुदा सोझाँ देखबाक-सुनबाक ई
पहिल अवसर छल, से आनंदित भेलहुँ | कथा पर दुनू गोटेक टिप्पणी नीक लागल | एकटा नव विवाहित नवयुवकक
मनःस्थितिक चित्रण छलै कथामे |
मिश्र जी कहैत छलाह जे ई जिनगी दू टा जिनगीक बीच ओहिना अछि जेना सिनेमाक
बीचमे इन्टरवल होइ छै | हम कथाक नाम ‘इन्टरवल’ रखने रही, तकरा स्थान पर ‘धारक ओइ
पार’ कयल गेल रहै, से हमरा कथाक अनुरूप ठीक लागल आ एहिसँ शीर्षक चुनबाक लेल नव
दृष्टि भेटल | नीक अनुभवक संग घुरल रही पटनासँ |
पटनासँ घुरैत काल सोचैत रही जे कथामे की रहै -सन्देहक एकटा धार छलै, जकरा
ओइ पार तथ्य छलै, से सुन्दर छलै, कल्याणकारी छलै | मुदा छलै त एकटा कल्पना आ
कल्पना मात्र | हमर त विवाहो नै भेल अछि |
अपनहि मोन उतारा देलक, रोगीक दुःख दूर करबाक लेल कोनो जरुरी छै जे डॉक्टरकें
बिमारीक अनुभव होइ ?
त की जतेक कथा पढैत छी, से कल्पनाक कमाल मात्र थिक ? सीता आ रामक कथा –
रामक चरण रजसँ अहिल्याक उद्धारक कथा, आइ रामक राजतिलकक निर्णय आ काल्हि चौदह बरखक
लेल वनबासक कथा, सीता-हरण आ रावणक मृत्युक पश्तात रामक अयोध्या आगमन आ राज्याभिषेक –एहिमे कतेक सत्य आ
कतेक कल्पनाक उड़ान से के कहि सकत | मुदा कथा विभिन्न परिस्थितिमे स्वस्थ जीवन
जीवाक लेल मार्ग-दर्शनक रूपमे एकटा उपकरण बनिक सोझाँ अबैत अछि |
हमरा ‘कन्यादान’क बुच्ची दाइक कथा मोन पड़ैत अछि |
बुच्ची दाइक वियाहक कथा –सी सी मिश्रक कथा – अनमेल विवाहक परिणाम –एकटा
सामाजिक समस्या –समस्याक निदान देखबैत ‘द्विरागमन’ –की एना सम्भव छै.......मुदा,
हम ई सभ किएक सोच’ लगलहुँ - हमरा जीवनमे बुच्ची दाइ नहि आबि सकैत छथि- हमरा सावधान
रहबाक अछि ...एकदम सावधान .... हमरा लगैत
अछि जे जीवनक आनन्द लेल जीविकोपार्जनक व्यवस्था आ साहित्यसँ प्रेम दूनू जरूरी अछि
आ साहित्यसँ प्रेमक लेल आवश्यक अछि जे पत्नी सेहो पढ़लि-लिखलि होथि .... आ से किएक
ने भ’ सकैत अछि ...एकटा कल्पनामे विचरण करैत ढोली पहुँचलहुँ |
होस्टल पहुँचि आनन्दित भेलहुँ | हमर प्रिय संगी सभ सुनने छलाह कार्यक्रम
| सबहक कल्पना ई जे कनियाँ सेहो सुनने हेतीह त कते आनन्दित भेल हेतीह |
आब चर्चाक केन्द्र ई कथा बन’ लागल | हम कागज़ पर दू टा टुकड़ीमे
लिखलहुँ जे एहि नाटककें एतहि समाप्त कर’
चाहैत छी आ ठाकुरजी आ झाजीक कोठलीमे एक-एक टा टुकड़ी नीचाँ द’ क’ रातिमे खसा देलहुँ आ मिश्रजीकें मौखिक रूपसँ कहि देलियनि, मुदा कियो
मान’ लेल तैयार नहि भेलाह | हमरा कखनो क’ हुअ’ लागल की पता इहो सभ बुझियोक’ नहि
बुझबाक नाटक क’ रहल छथि |
तिला संक्रान्तिक बाद हमर पिता गामसँ किछु सनेश नेने एलाह त कोनो तरहें मिश्रजी हुनका पूछिक’ सत्यकें
स्वीकार करबाक स्थितिमे अबैत एक दिन कहलनि, हम सभ गोटे एहि सृष्टिमे कोनो-ने-कोनो
भूमिकामे रहैत जीवन भरि अभिनय करैत रहैत छी, कखनो बालक-बालिकाक रूपमे, कखनो
माता-पिताक रूपमे अथवा छात्र-गुरु,पोता-दादा, मित्र-शत्रु अथवा आन कोनो संबन्धमे,
ई संसार एकटा रंगमंच अछि आ हम सभ
अभिनेता,
अभिनेता मंचसँ दूर भ’ जाइत अछि,मुदा अभिनयक स्मृति शेष रहि जाइत अछि ;
अभिनेता बदलि जाइत अछि,
रंगमंचपर अभिनय चलैत रहैत
अछि..........
( क्रमशः ) सम्पर्क : 8789616115
आगाँक कथा : 30.10.2022 क’
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