आँखिमे चित्र हो
मैथिली केर
(आत्मकथा )
8.स्वयंसँ साक्षात्कार
सिंह साहेबक बात सत्य सिद्ध भेल | मिश्र जी कें कोनो क्षति नै भेलनि |
एक मासक बाद रिजल्ट निकललै | सभकें अपन-अपन तपक अनुसार परीक्षा-फल
प्राप्त भेलनि |
ठाकुर जी (अशोक कुमार ठाकुर) प्रथम श्रेणी मे प्रथम स्थान पौलनि |
झाजी आ मिश्र जीक संग हमहूँ द्वितीय श्रेणीमे उतीर्ण भेलहुँ | हमरा लगभग
छप्पन प्रतिशत अंक प्राप्त भेल | अंतिम
वर्षक परिणाम एहिसँ अधलाह नहि हो, से ध्यानमे राखि दोसर वर्षमे पढ़ाइ-लिखाइ प्रारंभ
भेल |
आब मात्र एकटा लक्ष्यपर ध्यान केन्द्रित केलहुँ | आब गामो जाएब कम क’
देलहुँ |गामसँ मासे-मासे आवश्यकतानुसार पाइ मनीआर्डर द्वारा प्राप्त भ’ जाइ छल
|किछु मास पछिला सालक छात्रवृतिक पाइ सेहो संग देलक | मुदा ओ पर्याप्त नहि छल, तें
गामसँ सेहो मनीआर्डरक प्रतीक्षा रहैत छल |
गाममे पाइक व्यवस्था कोना होइत छलै,से हम नहि बुझि पबैत छलहुँ |पिता नै
चाहैत छलाह जे घरक समस्यासँ हम अवगत होइ | गाममे छलहुँ त देखने छलहुँ जे समय-समयपर
भार-चङेरा, ब्राह्मण-भोजन चलैत रहैत छलै | मुदा, ओकर व्यवस्था कोना होइत छलै, ताहि
तथ्यसँ अनभिज्ञ रहैत छलहुँ |
एक बेर गामसँ मनीआर्डर एबामे बहुत देरी भ’ गेल | मिश्रजीसँ तत्काल किछु
पैंच ल’ क’ काज चला लेलहुँ आ फेर गाम चिट्ठी लिखलहुँ | तकर बादो बहुत देरी भेलै,
तखन चिन्ता भेल, पैंच सधाबक छल आ दोसर मासक खर्च लेल सेहो आवश्यकता छल | गाम
पहुँचलहुँ |
पता चलल जे बाबू दू कट्ठा खेत भरना ध’ क’ पाइक व्यवस्थामे लागल छलाह,
मुदा नै भ’ रहल छलनि |
एहि बेर बाबूकें बहुत असहाय देखलियनि | एक ठाम पाँच कट्ठामे गहुम लागल
छलनि | गहूम दू मासमे कटितै, अहीपर साल भरिक खर्च निर्भर करतैक | ई कोना भरना लगा
देल जाए | एकरा भरना राख’ चाहथि, त तुरत पाइक व्यवस्था भ’ सकै छनि, मुदा दू मासक
बाद फेर सात आदमीक लेल भोजनक व्यवस्थाक प्रश्न छै | पता लागल जे लगभग अधिक खेत भरना लागल छनि, किछु टाका पाँच
प्रतिशत मासिक सूदिपर नेने छथिन माने साठि प्रतिशत सालाना ब्याजपर | हित-अपेक्षितक
दू टा गहना सेहो बंधक राखि क’ काज कएल गेल छै |
बाबू साँझमे लगमे बैसाक’ कहलनि : हम आब हिम्मत हारि चुकल छी, हमर विचार
जे आब बियाह क’ लैह, दोसर कोनो रस्ता नै देखाइए |
हम चिन्तित भ’ गेलहुँ | हमरा की करबाक चाही ? बाबू त पहिने बजैत छलाह जे पढ़ि-लिखिक’ अपना मोने वियाह करता, मुदा
हुनका सोझाँ सात आदमीक परिवार छलनि, हमर पढ़ाइक खर्च छलनि |
मूड़न,उपनयन,श्राद्ध आ बरखीक भोज देखिक’ ई नहि पता चलैत छलै जे गाम-घरमे
कोनो आर्थिक समस्या छै, आर्थिक स्थितिक पता पढाइक खर्च जुटयबाकाल चलैत छलै | भोजक समय सर-कुटुम्ब सभक सेहो सहयोग
प्राप्त हेबाक परम्परा छलै, मुदा समुचित शिक्षाक लेल ई परम्परा नै छलै | समुचित
शिक्षा अनिवार्य नहि मानल जाइत छलै |
टोलमे दू-चारि परिवार छोड़िक’ सभ परिवारक मोटा-मोटी यैह स्थिति छलै,तें
हमरा बयसक किछु गोटे पढाइ छोड़ि चुकल छलाह
आ रोजी-रोटीक जोगारमे लागि गेल छलाह |
भरिसक एहने स्थितिमे हमर पिता सेहो हाइ स्कूलमे पढाइ छोड़िक’ नोकरीक लेल कलकत्ताक बाट पकड़ने छल हेताह
| मुदा ओ अपनासँ नीक जीवनक सपना देखि रहल छलाह आ ताहि लेल हमर पढाइ नहि छोड़ब’
चाहैत छलाह | तखन यैह एकमात्र समाधान देखाइत छलनि जे हमर विवाह करा देथि |
ओहि समय बैंक द्वारा शिक्षा ऋण नहि देल जाइत छलै, तें गरीब परिवारक
विद्यार्थीक पढाइक खर्चक लेल विवाह कराएब
एकमात्र लोकप्रिय समाधान छलै | बहुत कन्यागत ई सोचिक’ एहेन कन्यादान करैत छलाह जे
लड़का पढ़ि-लिखिक’ नीक नोकरी कर’ लगतै त’ कन्याक जीवन सुखमय भ’ जेतनि | अधिक
कन्यागतक मनोकामना पूर्ण होइत छलनि | जिनकर मनोकामना पूर्ण नहि होइत छलनि, हुनका
देखिक’ दोसर कन्यागत सभ एहेन निर्णय
लेबासँ डेराइत छलाह |
हमरा पिताक सलाह मानबाक अतिरिक्त कोनो दोसर उपाय नहि सूझल |
तय भ’ गेलै जे हमर विवाह हैत |
तत्काल बहुत अधिक ब्याजपर किछु पाइ
ल’क’ हम ढोली विदा भ’ गेलहुँ | रस्तामे चिन्तन चलि रहल छल | ओहि समय कोनो
लड़का अपन विवाहक सम्बन्धमे अपने नहि किछु बजैत छल | बाबू-बाबा,कक्का-मामा यैह सभ
बजैत छलखिन | लड़का आज्ञाक पालन करैत छल |
हमरा ई सुविधा छल जे हम अपन विचार प्रगट क’ सकैत छी | हम सोचलहुँ, जखन विवाह करब
आब निश्चित भ’ गेल अछि त किएक ने एकर प्रयास करी जे एहेन ठाम हो जतय लड़कीक विषयमे
हमरो बूझल हो |
हम मोन पाड़’ लगलहुँ एहेन लड़की जकरा देखने होइऐक | समय-समय पर कतहु कोनो
गाम जाइत छलहुँ |एक ठाम देखने रही एकटा लड़की, नौमामे पढ़ि रहल छलीह, देखबामे नीक छलीह | मुदा कहियो
ने हुनकासँ गप भेल छल ने हुनका घरक कोनो आन लोकसँ सम्पर्क छल |तकर कोनो आवश्यकता
सेहो नहि बुझाएल छल मुदा, हमरा विषयमे हुनका सभकें बूझल हेतनि,से सोचैत रही |
ओहि समय यैह अवस्था लड़कीक विवाहक लेल उपयुक्त मानल जाइत छलै | तें हम
सोचलहुँ, यदि हुनका सभकें पता चलनि जे हमर विवाह
होम’ जा रहल अछि, त अवश्य ओ सभ हमरा ओत’ प्रस्ताव ल’ क’ जा सकैत छथि |
बेटाबलाक दिससँ पहल करबाक चलन नै छलै | बेटाबला गम्भीर
रहैत छलाह, एहिसँ बेशी लाभ हेबाक आशा रहैत छलनि | हमरा होइत छल जे लड़का दिससँ सेहो
पहल करबाकें कोनो अनुचित नै मानल जेबाक
चाही |
कन्यागतकें लड़का आ ओकर परिवारक विषयमे जे किछु पता लगाबक रहैत छनि से सभटा स्पष्ट सुचित करबैत लड़कीक पिताक नामसँ
एकटा पत्र लिखि हम पठा देलियनि |
हुनका लिखलियनि जे जौं अपने हमरा परिवारमे अपन कन्याक विवाह करेबाक हेतु
उत्सुक होइ, त एक मासक भीतर हमरा अथवा हमर पिताजीसँ सम्पर्क करी | ईहो लिखि
देलियनि जे एक मास धरि जौं अपनेक कोनो
सूचना नहि प्राप्त हैत त हम मानि लेब जे अपनेकें ई कथा पसन्द नहि अछि |
एक मासक बाद एहि कथाक विषयमे हमर सोचब बन्द भ’ गेल |
बादमे हम गाम गेलहुँ त पता लागल जे ओतहु दू टा कन्यागत आएल छलाह | एकटा
प्रस्ताव आकर्षित केलक | लड़की दसमामे पढैत छलीह | ओहि प्रस्तावक जे अगुआ छलाह, से
हमर गामक हमर एकटा संगीक मित्र छलथिन | ओ
हमरा मधुबनीमे भेटलाह |
ओ हमर पिताक निर्णयमे किछु संशोधन आ हमरासँ अपन प्रस्ताव आ सलाहपर स्वीकृति मंगलनि | हम
स्वीकार क’ लेलियनि | गामपर एलहुँ त बाबूक सोझाँ हम कन्यागतक आजुक प्रस्तावपर अपन
सहमतिक सूचना देलियनि | संयोगसँ मामा सेहो ओहि दिन आएल छलाह | बाबू हमर स्वीकृतिक
समर्थन क’ देलनि | हमरा नीक लागल | मामा सेहो प्रसन्न भेलाह |
दोसर दिन हमरा ढोली घुरबाक रहय | प्रस्तावक अनुसार हमर गामक संगी आ हुनक
मित्र सेहो हमरा संगे लहेरियासराय तक एलाह | कन्यागतक डेरापर हमरा नेने गेलाह |
ओत’ कन्याक माँ-बाबूजी नै छलखिन | हमरा
कहल गेल जे साँझ धरि आबि जेथिन | लड़की हमरा सोझाँ एलीह | पढाइ-लिखाइ द’ किछु पुछलियनि
| नीक लागल | हम कहि देलियनि जे हम प्रसन्न छी |
साँझ धरि घरक अभिभावक नहि एलखिन | हमरा चिन्ता भेल | हमरा रातिमे रहबाक
अनुरोध केलनि हमर संगीक मित्र | रातिमे ओत’ रहब हमरा अनुचित लागल |
ओहि समयमे लड़कीकें लड़का द्वारा देखल जाएब सेहो चलनमे नहि छलै, विवाहसँ
पहिने लड़की ओत’ रहबाक लेल त कियो सोचियो नहि सकैत छल,हमरहु विवेक हमरा अनुमति नहि
द’ रहल छल | मुदा, ओ रुकबाक लेल जिद्द कर’ लगलाह |
हम कोनो लाथें घरक बाहर सड़कपर आबि रिक्शापर बैसि गेलहुँ, हमर एकटा
सम्बन्धीक आवास छलनि ओहि ठामसँ किछु दूर, ओतहि चल गेलहुँ | राति भरि ओतहि रहि भोरे
हुनका डेरा पर गेलहुँ | अपन बैग लेलहुँ जे
राति ओतहि रहि गेल रहय |
हमरा कहल गेल जे घरक अभिभावक लोकनि बेशी रातिक’ एलाह | हम कहलियनि जे हमर
स्वीकृति अछि, हम एखन चलैत छी, चिट्ठीसँ अथवा व्यक्तिगत रुपें हमरासँ अथवा हमर
पिताजीसँ सम्पर्क कएल जा सकैत अछि |
रस्ता भरि हम काल्हिक अपन आ हुनका सबहक कर्मक समीक्षा करैत गेलहुँ |
स्वयंसँ सेहो लड़ैत गेलहुँ |
हम एना किए केलिऐ ?
ओ हमरा रहबाक लेल जिद्द किए करैत छलाह ?
हम राति रहिए जैतिऐ त की भ’ जैतै ?
हमरा कथीक डर भेल ?
हम लघुशंकाक लाथें सड़क पर आबि रिक्सासँ निकलि गेलहुँ, हम स्पष्ट हुनका
किए नहि कहलियनि जे हम रातिमे नै रहब ?
हमरा विषयमे ओ सभ की सोचने हेताह ?
हम हुनका सभकें नीक लगलियनि की नहि, से किए ने पुछलियनि ?
हम एहि निष्कर्षपर पहुँचलहुँ जे ईहो हमरा लेल एकटा परीक्षा छल जाहिमे हमर
असफलता सुनिश्चित भ’ गेल अछि |
किछुए मासक बाद पता चलल, हमर गामक संगीक
मित्र जे हमरा लड़की देखब’ अनने छलाह, हुनके सौभाग्य भेलनि ओहिठाम ललका धोती आ पाग
पहिरबाक |
( क्रमशः )
आगाँक कथा अगिला रवि दिन
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