आँखिमे चित्र हो
मैथिली केर
(
आत्मकथा )
13.
एकटा छलाह ननू कका
हमर
तेसर आ सबसँ छोट बहिनक विवाहक बात घरमे चलैत रहै | माए एकटा
कथाक प्रसंगमे चर्च केलनि- ‘होइतै त बहुत सुंदर होइतै |’
‘ओ नै हएत |’ बाबू कहलथिन |
‘से किए ?’ हम पुछलियनि |
बाबू
कहलनि जे हुनका सात हजार द’
जाइ छनि से त ओ करैले’ तैयारे नै भेलथिन,
आ हम सभ ओतबो कत’ सँ देबै ?
हम
कनी काल गुम्म रहलहुँ |
हम
लड़काकें जनैत छलियनि,ई वएह कृष्ण कान्त जी
छलाह जिनकासँ दिल्लीमे भेंट कर’ चाहैत रही,मुदा भेंट नहि भ’ सकल छलाह | हमर दोसर बहिनक विवाह जिनकासँ भेल छलनि हुनकर पितिऔत भाए छलथिन | हिनका माए नै छलथिन | बहुत दिन भ’ गेलनि | पिता दोसर विवाह नै केलथिन | दूनू भाइ पढैत छलाह | आङनमे
एकटा दोसर पितिऔत छलथिन हुनके आश्रममे ई दूनू भाइ रहैत छलाह |
हुनक
पत्नी हिनका सभकें अपने पुत्र जकाँ मानैत छलथिन |
हिनक
पिता विराटनगर लग मोरंगमे रहैत छलथिन | ओत’ पटुआक खेती बहुत दिनसँ करैत आबि रहल छलथिन |हुनकासँ
हमरा बेसी भेंट-घाँट नै छल किन्तु कृष्ण कान्तजीकें नीक
जकाँ जनैत छलियनि | हुनक पढाइ-लिखाइ आ बुद्धि-विचार हमरा बहुत
नीक लगैत छल, तें हम मोने-मोन तय केलहुँ जे हमरा सभकें ऐ
कथापर जोर देबाक चाही |
बाबू
कें कहलियनि,
‘हम एक बेर प्रयास कर’ चाहैत छी,मुदा एक विन्दुपर विचार कर’ पड़त |’
‘की ?’ बाबू पुछलनि |
हम
कहलियनि जे पाइ लेथिन त ओकर हिस्सा खेत बेचि क’ द’
देबै, भाए रहैत त ओकरो हिस्सा त हेबे करितै |
बाबू
किछु सोच’
लगलाह | फेर कहलनि ‘जखन
तोरे ई विचार छ’ त जाह-देखहक़ |’
हम
विदा भेलहुँ |
हमर
मझिली बहिनकें सेहो ई प्रस्ताव नीक लगलै |
पहिने
लड़कासँ भेंट केलियनि |
हुनका
पुछलियनि ‘यदि अहाँक पिता हमरा ओत’ विवाह तय क’
लेथि
त अहाँकें कोनो आपत्ति त ने हएत ?’
ओ
कहलनि,
‘ननू कका (बाबूजी)क बात हम नै काटि सकैत छियनि, मुदा ओ त’ चारिए दिन पहिने गेलाहे’ गामसँ,अइ साल विवाह नै हेतै, इएह
निर्णय क’क’ गेलाहे’ |’
हम
कहलियनि,
‘हम हुनकासँ भेंट कर’ चाहैत छी एक बेर,
निर्णय त जे हेतनि, हुनके हेतनि |’
ओ
विराटनगर लग मोरंगमे रहैत छलाह | सकरी जंक्शनसँ निर्मली, निर्मलीसँ जोगबनी आ ओत’सँ तीनटा धार टपि क’ चारि-पाँच कोस पयरे जाय पड़ैत छलैक |
हुनका
गामक किछु आदमी हमरा एकांतमे कहलनि, ‘ओ पाइ नै छोड़ताह |
ओ त बीमारो पड़ैत छथि त दबाइयोमे खर्च नै करैत छथि |एत’ कयटा कथा एलनि, सात हजार
तक द’ गेलनि मुदा नाकपर माँछी नै बैस’ देलखिन,
से सोचि लिय’ |’
हम
सबहक बात सुनियो क’
विदा भ’ गेलहुँ |
मनीगाछी
स्टेशन लग लड़काक मामाक घर छलनि | हुनकासँ भेंट केलहुँ | ओहो मना केलनि | कहलनि, ‘अहाँ
बेकार हरान होइ छी | हम ओते सुंदर कथा ल’ क’ गेल छलहुँ से त सुनबे नै केलनि
जखन कि कन्यागत सात हजार देब’ ले’ तैयार
छलथिन | अहाँ खेत बेचि क’ की पाइ देबनि,
की बरियातीक सम्मान करबै आ की विदाइ देबनि ! अहाँ घुरि जाउ, एसगर
जाइ छी, अहाँ एखन विद्यार्थी छी , रस्तामे तीन टा धार छै , चारि कोस पयरे जाए पड़ैछै
| बेकार हरान हएब | ओना अइ साल त विवाह
हेबे नै करतै, ओ इएह तय क’क’ एखन गेलाहे’ |’
हम
तैयो चल गेलहुँ |
पहिने
अपन बहिनो कें भेंट केलियनि | ओ नेपाल सरकारक स्वास्थ्य
विभागमे काज करैत छलाह | एकटा फूसक घरमे ननू ककासँ अलग जेठ भाएक संग रहैत छलाह |
ओ
सभ कहलनि- ‘ननू ककाकें अहाँ अपने कहियनु |’
ननू
कका ओत’
पहुँचलापर हुनका प्रणाम क’क’ अपन अभिप्राय कहलियनि |ओ सभटा बात ध्यानपूर्वक सुनि
क’ कहलनि जे एकर जबाब हम परसू साँझमे देब |
हुनके
सबहक ओत’
रहलहुँ | हुनके अनुसार दू दिन एहि विषयपर कोनो
बात नै केलहुँ | तेसर दिन नियत समयपर जखन पूजा क’क’ उठलाह त पुछलियनि | ओ कहलनि
जे हम तय केलहुँ जे विवाह अहींक ओत’ हेतै मुदा हमर एकटा बड़का
शर्त अछि तकर पालन करबाक वचन दिय’ |
हम
कहलियनि,
‘अपने स्पष्ट करियौ | हम जे तय क’क’ आयल छी से कहिए देने छी | अहाँक
मांग हमर सामर्थ्य सीमा धरि हयत त हम अवश्य पूर्ण करब |’
ओ
कहलनि,
‘हमर मांग अहाँक सामर्थ्य सीमाक अनुकूले अछि मुदा हमरा भरोस नै अछि
जे अहाँ पूर्ण करब, तें
अहाँ हमरा वचन दिय’ जे अवश्य पूर्ण करब |’
हम
कनेक भयभीत होइत कहलियनि-‘ठीक छै, हम अवश्य पूर्ण करब |’
ओ
तखन कहलनि,
‘हमर शर्त ई अछि जे विवाह ताहि रूपें हुअए जे विवाहसँ द्विरागमन
धरिक खर्चले’ अहाँकें ने एको धुर खेत बेच’ पड़य ने भरना राख’ पडय,
ने ककरोसँ कर्ज लेब’
पड़य,
इएह हमर शर्त अछि, अहाँ वचन देलहुँ अछि,आब अहाँकें एकर पालन
कर’ पड़त |’
हमरा
अपना कानपर विश्वास नै भ’
रहल छल |
ख़ुशीसँ
हमरा कना
गेल |
हम
सोचै छलहुँ हिनका द’
लोक सभ की की कहने छल आ ई की कहि रहल छथि | एकदम
साधारण बगएमे रह’वला लोकक भीतर एहेन श्रेष्ट पुरुष विद्यमान
भ’ सकैत छथि, एकर हम कल्पना नै क’
सकैत छलहुँ |
हमरा
गुम्म देखि ओ कहलनि,
‘अहाँकें खेत बेचबा क’, कर्जाक त’रमे द’ क’, अहाँक ओत’ कुटमैती करब ? राम-राम |’
फेर
ओ अपन जीवन,दिन-चर्या, मनोरथ सबहक चर्च विस्तारसँ केलनि |
कहलनि हमर एकेटा मनोरथ छल जे नीक लोकक संग होइन, से हमरा नै भेटैत छल, पाइवला त बहुत अबैत छलाह मुदा
कतहु हमर मोन नै मानलक, तें गाममे कहलियै जे अइ साल नै करब |
ओत’ एक बीघामे पटुआक खेती करैत छलाह आ संगहि पंडित-पुरोहितक काज सेहो करैत
छलाह |
कहलनि
जे पाइ त दुनू भाइले’
एते छनि जे मनुक्ख जकाँ खर्च करताह त कोनो चीजक अभाव नै हेतनि आ
हमरो क्रिया-कर्मले’ सोच’ नै पड़तनि,
जखन एते पाइसँ नै काज चलतनि आ अपन पुरुषार्थसँ नै हेतनि त अहाँकें
कंगाल बनाक’ हेतनि ?
ओ
अपने दिन तकलनि |
करीब डेढ मास आगाँक दिन |
दूटा
छोट-छोट चिट्ठी लिखलनि,
एकटा पुत्रक नामे आ दोसर अपन जेठ भाएक नामे |
पुत्रकें
लिखलथिन-हम हिनका ओत’
आदर्श विवाह तय क’ लेलियनि |फलाँ तारीख क’ नीक
दिन छै | आशा अछि अहाँकें हमर
निर्णय पसंद हएत | शेष भेंट भेला पर | हम
चारि दिन पहिने एबाक कोशिश करब |
जेठ
भाएकें लिखलथिन—हिनका ओत’ हम
आदर्श विवाह तय क’ लेलियनि |फलाँ
तारीख क’ नीक दिन छै | ओही दिन विवाह
हेतै | हम एबे करब | यदि कोनो कारणसँ
ओइ दिन धरि नै पहुँचि पाबी त हम अहाँकें ई अधिकार दै छी जे अहाँ जा क’ विवाहक काज संपन्न करा देबनि जाहिसँ विवाहमे कोनो बाधा नै होइन |
दूनू
चिट्ठी हमरा हाथमे द’
देलनि |
चलै
काल पुनः शर्तक स्मरण करौलनि |
हम
कहलियनि ‘मात्र एते आजादी दिय’ जे प्रसन्नतापूर्वक जे क’
सकी से करी |’
कहलनि
–नै,ककरोसँ कर्ज ल’क’ वा खेत-पथार भरना राखिक’ वा बेचिक’ नै, ने त हमरा आत्माकें चोट पहुँचत |
हुनक
चरण स्पर्श करैत विदा भेलहुँ |
हम
बहिनो आ हुनक जेठ भाएकें कहलियनि त हुनको सभकें आश्चर्य भेलनि आ प्रसन्नता सेहो | ओ लोकनि सुझाव देलनि जे जखन एतेक उदारता देखौलनिहें त विदाइ आदिक ध्यान
राखब जरुरी हएत |
मोनमे
ततेक आनन्द भरल छल जे होइत छल जे कतेक जल्दी गाम पहुँचि जाइ आ सभकें ई समाद कहि
दियै |
रस्तामे
हुनकर कहल रामचरितमानसक इ दोहा बेर-बेर मोन पड़ैत रहल :
‘
तात स्वर्ग अपवर्ग सुख, धरिय तुला एक अंग
तूल न ताही सकल मिली, जो सुख लव सत्संग |’
हम
शिशवा पहुँचलहुँ आ दूनू गोटेकें पत्र द’ देलियनि | बात तुरंत भरि टोलमे पसरि गेलै आ सभ लोक हमरासँ तरह-तरहक सवाल कर’ लगलाह |
किनको
विश्वास नै होइन | सभ क्यो अपना-अपना ढंगसँ चिट्ठीक अर्थ लगब’ लगलाह |
हम
भोजन क’क’ थोड़े काल पड़लहुँ कि कियो जगा देलक |
देखलहुँ
लड़काक मामा ( जे जाइत काल मनीगाछीमे भेटल छलाह )पहुँचल छलाह |हुनको कोना-ने-कोना खबरि भ’ गेलनि |
ओ साइकिलसँ एलाह |तारमतोर हमरासँ सवाल कर’ लगलाह :
‘अहाँ अबैत काल हमर भेंट किए ने केलहुँ?’
‘अहाँ हुनका की सभ कहलियनि ?’
‘ओ अहाँकें और की कहलनि ?’
‘हमरा त कहलनि जे अइ साल करबे नै करब तखन कोना अहाँकें गछि लेलनि ?’
‘भाएकें किए लिखलखिनहें जे हम नै आबि सकी त अहाँ जा क’ विवाह करा’ देबै ?’
हम
सविनय हुनक प्रश्नक उत्तर दैत गेलियनि मुदा ओ हमर उत्तर सुन’ नै चाहैत छलाह | हुनक तामस बढल जा रहल छलनि |
हमरा
ओ रामलीलाक परशुराम जकाँ लगैत छलाह |
हम
चुप्प भ’
गेलहुँ |
ओ
बजलाह ‘हुनकर माथा ख़राब भ’ गेलनिहें |’
क्यो
किछु नै बजलै |
ओ
भागिनकें बजा क’
कहलथिन, ‘तोरा बापक माथा ख़राब भ’ गेलनि | हमरा संग चलह आ साफ-साफ़ कहुन जे हम एत’
विवाह नै करब |’
ओ
कहलखिन –‘मामा,इ त जाए काल हमरासँ पूछि नेने छलाह जे ननूकका
यदि स्वीकार क’ लेथि त अहाँकें कोनो एतराज त ने हएत, हम हिनका कहने
छलियनि जे ननूककाक बात हम नै काटि सकै छी |एहेन स्थितिमे हम
ओत’ जा क’ कहियनि जे हम एत’ विवाह नै करब, अइसँ त हिनको अपमान हेतनि आ ननू ककाक
सेहो | हम एहेन काज नै क’ सकैत छी |’
हम
कहलियनि –‘
यदि अहाँ इ सोचैत होइ जे अहाँक पिताक निर्णय सही नै छनि आ अहाँक
इच्छाक विरुद्ध अछि ई निर्णय त ओते दूर जेबाक कोन काज, ई त
हमरे कहलासँ भ’ जाएत |
अहाँक
इच्छाक विरुद्ध विवाहक कोनो अर्थ नै छै |’
मुदा
ओ मामाजीक सुझावकें साफ अस्वीकार करैत कहलथिन-
‘मामा, हम नै जाएब, अहाँ जाए चाही त जाउ, अहाँक कहलासँ यदि ननू कका हमरा दोसर आदेश देताह त हम ओकरे पालन करब |’
मामाजी
कहलथिन –‘तोरो माथा ख़राब भ’ गेलह |’
मामाजी
स्वयं मोरंग जेबाक निर्णय सुनबैत साइकिल ल’क’ विदा भ’ गेलाह |
एम्हर
हमरा किछु लोक कह’
लगलाह-‘विद्यार्थी, अहाँ
किए हल्ला क’ देलियै ? बुझै नै छियै ?
आब ई की जा क’ कहथिन की ने आ भेलो काज गड़बड़ा
सकैए |’
हमर
उत्साह ठंढा भ’
गेल |
फेर
ई विचार मोनमे आएल जे नहिये हेतै त की हेतै, दोसर ठाम प्रयास
करब |
मामाजीक
बात मोन पड़ैत छल त निराश होइत छलहुँ आ ननू ककाक बात मोन पड़ैत छल त प्रसन्न भ’ जाइत छलहुँ |अही उहापोहक स्थितिमे ओत’सँ अपन गाम आबि गेलहुँ |
गाममे
आबिक’
फेर वएह केलियै |
लोक
जे पुछलक
तकरा मोरंगसँ शिशवा धरिक बात साफ-साफ
कहि देलियै | एतहु लोक हँस’ लागल –‘तोरा हल्ला करबाक कोन काज छलह ? आब हुनकर मामा जेथिन
त ओ बात बदलियो सकैत छथि |’
हमर
पड़ोसी पुछलनि जे जत’
लड़काक पितासँ गप भेल’ तत’ और कियो रहै ? हम
कहलियनि –‘ओत’ त और कियो नै रहै |’
लोक
बाजय—‘अही दुआरे ने चारि आदमीक बीच बात कयल जाइ छै जे कोनो हेर-फेर होइ त चारि
आदमी पूछि सकै छनि, मुदा जखन कियो रहबे नै करै त काल्हि कहत’
जे हम नै कहने रहियनि त की क’ लेबहक ?’
हमरा
एकर जबाब किछु नै फुरय |
मुदा, हमरा मोनमे ई विश्वास रहय जे ओ निर्णय बदल’वला लोक
नै छथि |
माए
पुछ्लनि,
‘तोरा मोनमे भरोस छ’?’
हम
कहलियनि ‘
हँ |’
ओ
कहलनि –‘तखन हेबे करतै, तखन चिंता नै करह |’
माए-बाबूकें
हुनकासँ भेल सभटा बात जखन सुनौलियनि तखन हमरा पिताकें सेहो भरोस भेलनि, ओना हमरा पिताकें पढाइ-लिखाइक अतिरिक्त आन कोनो काजमे हमरा सफल हेबाक
संभावना क्षीण बुझाइत छलनि |
विना
पाइ के एहेन ठाम विवाह ठीक हएब घरमे एकटा तेहेन आनन्दक वातावरण बना देलकै जे सभकें
ख़ुशीसँ होइ जे की करी की ने | तय भेलै जे विवाहसँ पहिने
घड़ी, ट्रांजिस्टर, एकटा
औंठी, पाँचो टूक कपड़ा आ जूता लड़काकें द’ देल जाए, तें ई सभ पहिने कीनि क’ राखि लेल जाए |
बाबू
प्रसन्न मोनसँ कोनो खेत भरना रखबाक विचार केलनि |
हम
रोकि देलियनि |
हम
कहलियनि-‘ओ हमरा सोझाँ ठाढ़ छथि | कहै छथि हमरा आत्माकें चोट
पहुँचत |हमरा हुनक शर्तक पालन करबाक अछि |’
‘तखन कोना हेतै ?’ बाबू पुछ्लनि |
हम
कहलियनि ‘हमरा सासुरसँ आब’ दिय’|’
हमर
विवाह एक साल पहिने भेल छल | द्विरागमन नै भेल छल |हमर ध्यान कनियाँक गहनापर गेल |
हम
सासुकें विस्तारपूर्वक सभ बात कहि देलियनि |ओ कहलनि-‘गहना-गुड़िया एहने समयले’ रहै छै, ओहो त हिनके छनि |भरना राखि क’ एखन काज चलि जेतनि | बादमे नोकरी हेतनि त छोड़ा लिहथि
|’
सएह
केलिऐ |
सभटा
सामान कीनि क’
घरमे राखि लेल गेल |
वरियातीक
खर्चक व्यवस्था ले’
सेहो निश्चिन्त भ’ गेलहुँ |
हम
हुनका एकटा चिट्ठी लिखि क’
पठा देलियनि |
हुनका
गामपर जे-जे प्रतिक्रिया भेलै, से सभटा लिखैत इहो लीखि
देलियनि जे मामाजी गेल हेताह, ओ किछु सुझाव
देने हेताह | ओना हमरा पूरा विश्वास अछि, मुदा यदि अपनेकें लागय जे गलतीसँ निर्णय लिया गेल अछि त अपने एखनो
स्वतंत्र छी निर्णय बदलबाक लेल, हमर एतबे अनुरोध जे यदि कोनो
कारणसँ अपनेकें
परिवर्तन आवश्यक बुझाए त जल्दीए हमरा सूचित करबाक कष्ट करब जाहिसँ हमरा अन्यत्र
कतौ प्रयास करबाक लेल समय भेटि सकय |
चिट्ठीक
जबाब नै आएल |
ओत’ चिट्ठी बहुत-बहुत दिन पर पहुचैत छलै |फोनक सुविधा त
छलैहे नै |
जे
दिन तय रहै ओइसँ चारि दिन पहिने सबेरे-सबेरे एक व्यक्ति साइकिलसँ एलाह आ कहलनि –‘ननू कका काल्हि गाम एलाहे,अहाँकें बजबैत छथि |’
ओ
रुकलाह नै |
हम
तुरंते तैयार भेलहुँ |
कीनल सभ सामान बैगमे लेलहुँ |
रिक्शासँ
विदा भेलहुँ |
दरबज्जापर
एकदम प्रसन्न मुद्रामे भेटलाह |
प्रणाम
केलियनि |
‘एकदम प्रसन्न रहू |’ ख़ुशीसँ बजलाह |
हम
पुछलियनि-‘हमर चिट्ठी भेटल रहय ?’
‘हँ |’ ओ कहलनि |
‘हम उताराक बाट तकैत छलहुँ |’
‘किए ? हमरा बातपर भरोस नै छल ?’ ओ हँसैत पुछलनि |
‘भरोस त छल, मुदा कखनो-कखनो ई होइत छल जे मामाजीक
कारण अपनेकें निर्णय बदलबाक लेल बाध्य ने हुअ पड़ल हुअए |’
ओ
कहलनि-‘
गेल रहथि | कहलनि, अहाँक
माथा खराब भ’गेल अछि |कहलियनि अहाँ
निश्चिन्त रहू,सेहो हएत त अहाँकें कोनो कष्ट नै देब |
हमरा समझाब’ लगलाह | पुछलियनि,
अहाँ हमरासँ जेठ
छी कि छोट,
कहलनि से त छोटे छी |
त
कहलियनि जे हम अहाँकें समझाएब कि अहाँ हमरा समझाब’ आएल छी |
रहू, भोजन करू,हमरा
ख़ुशीमे शामिल होउ | कहलनि जे हमर बात नै मानब त हम
वरियातियोमे नै जाएब |हम कहलियनि जे हमरा ख़ुशीमे अहाँकें
दुःख हुअए त दुखी मोनसँ वरियाती जेबो नै करू | भगला ओत’सँ, ओ नै जेताह वरियाती | हम
एतहु लोक सभकें कहि देलियनिहें, जे ख़ुशी मोनसँ चलि सकथि सएह
वरियाती चलथि ने त नै जाथि | जे मनुक्ख जकाँ भोजन करथि से
चलथि, जिनका राक्षस जकाँ भोजन करबाक होइन से नै जाथि |’
भरल
दलान लोक आ एतेक स्पष्ट रुपें बात करब-हमरा लेल एकदम अप्रत्याशित छल | ओ हमरा कहलनि-‘पंद्रह आदमी रहब |अहाँ तरकारी दूटासँ बेशी नै करब, दू तौला दही पौरबा
लिय’,मात्र एकटा मिठाइ राखब, और किछु
नै करबाक अछि | परेशान हेबाक काज नै करब, जएह रहत ताहीमे यश-यश भ’ जाएत |’
हम
कहलियनि –‘
अपनेक शर्तक पालन करैत हम सभ आनन्ददपूर्वक किछु चीजक व्यवस्था क’क’ अनने छी से ग्रहण करबाक आज्ञा दीयनु ’
हम
बैगमे राखल सामान सभ निकाललहुँ त ओ नाराज होइत कहलनि-‘ई आदर्श भेलै ? जखन एते चीज अहाँसँ लैए लेताह तखन
कोन आदर्श ?’
हम
कतेक तरहें विश्वास दियौलियनि जे एहिमे हमर परिवारक आनन्द आ उल्लास अछि, एहि लेल ने खेत भरना राख’ पड़ल अछि ने ककरोसँ कर्ज
लेब’ पड़ल अछि |
ओ
बालककें बजाक’
कहलथिन –‘ई विद्यार्थी जे किछु ल’ अनने छथि तकरा हिनक आशीर्वाद आ भगवानक प्रसाद बूझि सहर्ष ग्रहण क’ लिय’|’
हम
बलजोरी हुनका सभ सामान द’
देलियनि |
तेहेन
हर्ष आ उल्लासक वातावरण ओ बनौने रहलखिन जे विवाहसँ द्विरागमन धरि आनन्दपूर्वक सभटा
काज संपन्न भ’
गेलै| दुसबाक कोन कथा, साधारण-सँ-साधारण
वस्तुक प्रशंसा तेना करैत छलथिन जे सबहक मोन हर्षसँ भरि जाइत छलैक |
हुनक
पुत्र सेहो हुनके लीखपर चलैत कहियो कोनो समस्या नै उत्पन्न होम’ देलथिन | ओ मित्र जकाँ सदैब रहलाह | हमरा पिताकें अपने पिताक समान प्रेम आ आदर दैत रहलथिन |
हमर
पिता अपन अंतिम दू बरख हमरा लग छलाह परन्तु ओइसँ पहिने किछु साल दिल्लीमे हिनके
संग आनंदपूर्वक स्वास्थ्य-लाभ
प्राप्त केलनि | दिल्लीमे हमर अनुज लोकनि सेहो हिनक सानिध्य आ स्नेह प्राप्त क’ चुकल छथि |
तीस
बरखक बाद 2003
मे ननू कका ओछाइन ध’
नेने छलाह |
2 मार्च क’ भेंट कर’ गेलियनि |
कहलियनि –‘आशीर्वाद दियौ, 7 मार्च क’ कन्यादान छै |’
कहलनि-‘सहर्ष आशीर्वाद दै छी, निर्विघ्न सभ काज पूर्ण हएत |’
ननू
कका अंतिम समयमे सेहो अपन बात पर अडिग रहलाह |
विवाह
भेलै,
चतुर्थी भेलै, जमाएकें विदा केलियनि |
ओकर
प्रात ननू कका देह त्यागि देलनि |
ननू
कका ऐ संसारसँ विदा भ’
गेलाह,
मुदा
हमरा
मोनसँ कहियो
नहि
विदा भ’
सकैत छथि ननू कका |.........
(क्रमशः )
आगाँक कथाक
प्रस्तुतिक सूचना बादमे
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