Saturday 10 December 2022

 

                                          आँखिमे चित्र हो मैथिली केर

                                                 (आत्मकथा )    

                      7.  गुरुर्विष्णुः

परीक्षा शुरू भेलै | हॉलमे भ’ रहल छलै | बड़का टा हॉल, उनचास टा परीक्षार्थी, सभकें एक-एक टा कुर्सी-टेबुल, सबहक बीच पर्याप्त दूरी | मंचपर सिंह साहेब, हुनका सोझाँ एक-एक छात्रक गतिविधि एकदम साफ़,कतहु कोनो गड़बड़ीक आशंका नहि, परीक्षा-हॉलमे एकदम शान्ति |

सिंह साहेब सुनिश्चित केलनि जे सभटा ठीक चलि रहल अछि आ अखबार पढ़’ लगलाह |

किछु काल बीतल हेतै कि शान्ति भंग भेलै |

‘क्या बात है ?’

‘हम बाहर जाना चाहते हैं |’

‘कहाँ ?’

‘हॉस्टल’

“क्यों?’

‘किताब लाने के लिए’

‘क्यों?’

‘देखकर लिखने के लिए’

‘क्या बकते हो ?’

‘सही कह रहा हूँ |’ 

गेट आउट .......’

‘हम वृक्ष के सूखे पत्ते नहीं हैं कि हवा के एक झोंके में गिर जाएंगे...’

हॉल गनगना गेलै |

प्राचार्य महोदय दौगल एलाह, हुनका संग किछु और प्रोफेसर हल्ला सुनिक’ दौगल एलाह |

मंच पर ठाढ़ छलाह सिंह साहेब, नीचाँमे ठाढ़ छलाह मिश्र जी, हमर रूम-मेट मिश्र जी |

‘क्या नाम है तुम्हारा ?’

‘मुझे नारायण कहते हैं,सर |’

‘क्या बात हुई  नारायण ?’

‘सर,मैं तो यही चाहता हूँ कि सभी को समान सुविधा मिलनी चाहिए |’

‘थोड़ा और स्पष्ट करो |’

सर,इससे ज्यादा मै कह भी नहीं सकता हूँ |’

प्राचार्य महोदय श्रीवास्तवजी दिस ताकि किछु कहलखिन, खोज शुरू भेल | एक-एक क’ सभ छात्रक शर्ट, पैंट, मौजा, जूता सबहक तलाशी भेल, एक ठाम जा क’ सभ गोटे रुकि गेलाह | ओ छात्र लजा गेल  छल |एकटा  पन्ना ओकर मौजामे भेटलै | जाहि प्रश्नक उत्तर ओहिमे छलै, तकर मिलान भेलै, ओकरा समझा-बुझाक’ ओ उत्तर कटबा देल गेलै,दोसर कॉपी देल गेलै आ फेर एहेन गलती नै करबाक चेतौनी  देल गेलै | मिश्रजीसँ पूछल गेलनि जे हुनका हिसाबसँ और की दंड देल जाइ |

मिश्रजी कहलखिन ‘मुझे किसी को दंड देने या दिलाने में कोई दिलचस्पी नहीं है,मैं अपने साथी को दंड क्यों दिलाना चाहूँगा,मैं तो सिर्फ यह चाहता था कि सबको समान सुविधा मिले |

सभ छात्र चुपचाप ई दृश्य देखि रहल छल | सबहक कलम रुकि गेल छलै | सभ प्राध्यापक चुप छलाह | एकटा अज्ञात भय व्याप्त छलै वातावरणमे |

‘सभी को पन्द्रह मिनट अतिरिक्त समय दिया जाएगा |’ प्राचार्य महोदय बजलाह | ओ मिश्रजी लग एलाह |

‘ठीक है नारायण अब लिखना शुरू करो |’

‘हम अब क्या परीक्षा देंगे सर, हम नहीं लिख पाएंगे |’

‘तुमको अतिरिक्त आधा घंटा समय मिलेगा |’

‘नहीं सर, मैं बिल्कुल असंतुलित हो गया हूँ, मैं क्या परीक्षा दूंगा |’

‘ऐसा नहीं कहते, साल बर्बाद नहीं करना है, चलो तुम जितनी देर चाहो लिखो, मगर परीक्षा मत छोड़ो |’

मिश्रजीक पीठ थपथपबैत प्राचार्य महोदय निकलि गेलाह | फेर मिश्रजी सेहो बैसलाह, सभ शुरू केलक लिखनाइ |

परीक्षा हॉलसँ निकलैत काल  सभ छात्रक  ठोरपर मिश्रजीक नाम छलै |

‘मिश्रजी को ऐसे नहीं बोलना चाहिए |’

‘अब इनका निकलना तो मुश्किल है |’

‘प्रोफेसर से ऐसे बात करना बहुत मँहगा पड़ेगा |’

‘हाँ भाई, प्रैक्टिकल तो इन्हीं लोगों के हाथ में रहता है, ये लोग पास होने देंगे ?’

हम वस्तुस्तितिकें  बुझबाक प्रयास करैत रहलहुँ | मिश्रजी जखन एलाह तखन बुझलियै जे एकटा स्टाफ-सदस्य  आबिक’ चुपचाप ओकरा एकटा कागज़ द’क’ चलि गेलै,सिंह साहेब नै देखलखिन, मिश्र जी देखि लेलखिन आ अपना ढंगसँ एकर विरोध केलखिन |

एकटा अनुभवी प्राध्यापकक समक्ष फर्स्ट इयरक एकटा छात्रक  एना विरोध प्रगट करब ककरो पचि नै रहल छलै | ककरोमे एतेक साहस नै छलै, जतेक मिश्र जी देखौने छलाह | हमहूँ देखने रहितौं त एना विरोध प्रगट नै क’ सकैत छलहुँ |कियो नै क’ सकैत छल |

हम सोचि नै पबैत छलहुँ जे मिश्रजीकें की कहियनि | मिश्र जी सेहो कॉलेजसँ एलाक बाद मौन भ’ गेल छलाह |

साँझमे हॉस्टलमे एकटा ‘सर’  एलाह | रुमक सोझाँ आबि ठाढ़ भेलाह |

‘कौन है नारायण ?’

‘प्रणाम सर |’ मिश्र जी सोझाँ एलाह | सर  तेना देखलखिन जेना पहिल बेर देखि रहल होथिन |

‘जो कुछ सुना है, क्या यह सत्य है ?’

हम चुप्प छलहुँ | मिश्र जी सेहो चुप्प छलाह |

‘मै नहीं था, अगर मैं रहता, तो आज या तो तुम रहते इस संस्था में या मैं रहता, मैं तो वर्दाश्त नहीं कर पाता |’

कियो किछु नै बाजल |

सर विदा भेलाह, पाछाँ बहुत छात्र सेहो चलल | हम सेहो ओहि मध्य रही | मिश्र जी रूमेमे रहि गेलाह |

छात्र सभ उत्सुक छल जान’ लेल जे कोन दण्ड मिश्र जीकें देल जेतनि |किछु गोटे सिंह साहेबक प्रति अपन आदर प्रदर्शित क’ रहल छल : सर बहुत बुरा हुआ, सिंह साहेब के साथ मिश्र जी को ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए |

किछु गोटे चुप्प छल | हमहूँ चुप छलहुँ | हम किछु दूर संगे जाक’ घुरि एलहुँ | मिश्र जी गुम्म छलाह |

किछु कालक बाद हॉस्टल मे हल्ला भ’ गेलै जे महाविद्यालयक समस्त स्टाफक  मीटिंग भेलैए जाहिमे मिश्रजी पर अनुशासनिक कारर्बाइ करबाक निर्णय लेल गेलैए | ईहो हल्ला भेलै जे सर  स्वयं ई बात कहलखिनहें |

किछु गोटे हमरा रूममे आबिक’ ई बात कहि गेल | किछु गोटे मिश्रजीकें सेहो सलाह देब’ एलनि : अब आपके लिए यहाँ रहना अच्छा नहीं होगा |

एक गोटे एलनि : मिश्र जी, आप तो जा रहे हैं, अपनी बॉटनी की किताब मुझे दे दीजिए, इसकी क्या जरूरत होगी आपको !

‘चलू, भोजन क’क’ अबै छी |’बड़ी कालक बाद  हमरा मुँहसँ निकलल | जेना-तेना हम सभ भोजनमे सम्मिलित भेलहुँ | ओतहु किछु गोटे यैह सुझाव देलकनि |

मिश्र जी मौन छलाह | हमहूँ मौन छलहुँ | किछु फुरा नै रहल छल जे हम की सलाह दीयनि आ हमर सलाह हुनका लेल कतेक उपयोगी हेतनि सेहो स्पष्ट नहि छल |

थोड़े काल पड़ल रहलाक बाद मिश्र जी एकाएक उठलाह, अपन किताब आ कपड़ा आदि सभ सामान समेटलनि आ हमरा कहलनि ‘ कहल-सुनल माफ  करब ठाकुरजी, हम जा रहल छी |’

‘कत ?’ हमरा लागल आब हमरा किछु बाज’ पड़त, किछु करब अनिवार्य लागल |

‘कोनो दोसर बाट पकड़’ पड़त |’

‘से किए ?’

‘सुनै नै छिऐ ? आब हमरा या त’ कॉलेजसँ  निकालि देत या पास नै कर’ देत, तैसँ नीक हमहीं छोड़ि दी |’

‘त एखन रातिमे किए ? सोचि-बिचारिक’ काल्हि निर्णय लेब, दोसर विषयक परीक्षा त एक सप्ताहक बाद छै ने ?’

‘नै,हम सोचि लेलहुँ, हमरा जाए दिय’ |’

‘की अहाँ सोचैत छी जे अहाँसँ  कोनो अपराध भेल अछि ? हमरा त नै

लगैए जे अहाँ अपराधी छी | आ अहाँ अपराधी नै छी त दण्ड अहाँ किए भोगब ?’

‘मुदा, सुनलिऐ नै सर  की कहैत छलाह, सभ प्रतिष्ठाक प्रश्न बना लेलकैए, हमरा पास नै कर’ देत |’

‘त हमर एकटा बात मानि लिय’, एखन जाएब त’सभ कहत डरसँ भागि गेलाह, जेबे करब त काल्हि सरसँ भेंट क’क’ जाउ ?’

‘की हमरा माफ़ी मांग’ कहै छी ?से हम नै कए सकै छी’

‘नै, माफी कथीक ? अहाँक गलती एतबे ने जे तेज आवाजमे सिंह साहेबसँ गप केलहुँ, मुदा एहि लेल जँ सर एतेक नाराज छथि त हुनका कहबनि जे राखू अपन कॉलेज, अहीं सभ रहू, हमहीं जा रहल छी |’

हमर ई प्रस्ताव मिश्रजी मानि लेलनि |

बान्हल बेडिंग खोलि आरामसँ पड़लाह मिश्र जी, हमरा लागल जेना हमरा  बूते अनायास एकटा नीक काज भ’ गेल अछि |

सबेरे स्नान-जलखै क’ क’ दुनू गोटे विदा भेलहुँ ओही सर  ओत’| बहुत गोटे कें भेलै जे मिश्र जी आइ कॉलेज छोड़ि देताह |

हम सभ हुनक  डेरा पहुँचलहुँ त पता लागल जे ओ कतहु कोनो काजे निकलल छथि |

पता लागल जे कनिएँ दूर पर छनि सिंह साहेबक डेरा |

‘चलू, सिंह साहेब ओत’ चलै छी |’ हमरा मुँहसँ निकलल |

‘नै, हम ओत’ नै जाएब, हम माफी सेहो नै मांगि सकै छी |’

‘अहाँ किछु नै कहबनि, हमहीं कहबनि जे फलाँ सर ई बजलखिनहें, तें अहाँ कॉलेजसँ जा रहल छी |’

हम सभ पहुँचलहुँ त सिंह साहेब स्नान कर’ जाइ छलाह | हमरा सभकें बैस’ कहलनि आ पाँच मिनट बाद स्नान क’क’ लगमे एलाह | मैडम तीन ठाम प्लेटमे कचौड़ी,तरकारी आ जिलेबी राखि गेलीह |

सिंह साहेब हमरा दिस तकलनि |

‘सर, मिश्रजी रात ही कॉलेज छोड़कर जा रहे थे, मैंने कहा कि कल सर से भेंट करके प्रस्थान करना ठीक होगा, हमलोग एक ही रूम में रहते हैं |’ हमरा मुँहसँ निकलल |

‘इसमें कॉलेज से जाने की बात कहाँ से आ गयी ?’

‘सर, कल शाम में एक सर जी हॉस्टल पहुँचे थे, कुछ लड़के बता रहे थे कि वे   कह रहे थे, पास नहीं करने देंगे |’

‘और मैं तुम्हें कहता हूँ कि कोई तुम्हें फेल नहीं करा सकता है, नारायण, मेरी ओर देखो,मैं देखने में काला हूँ, दिल का काला नहीं हूँ |’

मिश्र जी मोम जकाँ पिघलि  गेलाह : सर मैंने आपके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया, आपका तो कसूर था नहीं |

‘तुम्हारा भी कसूर नहीं था, मैं तुम्हारी पीड़ा समझ सकता हूँ |तुम अगर कॉलेज से चले गए तो जिन्दगी भर मेरी आत्मा मुझे कोसती रहेगी कि मेरे  चलते एक लड़के की जिन्दगी खराब हुई |मैं ऐसा होने नहीं दूंगा |’

मिश्र जीक आँखिमे नोर, सिंह साहेबक आँखिमे नोर | ई दृश्य देखि हमरो कना गेल |

‘लो खाओ और मुझे वचन दो कि जाने की बात कभी नहीं करोगे |’

सिंह साहेब अपने हाथसँ प्लेट मिश्रजीक आगाँ बढ़ा देलखिन |

आइ ओ दृश्य मोन पड़ल त बशीर बद्र साहेबक एकटा शेर मोन पड़ि आएल :

‘पत्थर मुझे कहते हैं मेरे चाहने वाले

मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नहीं देखा’

खाइत-खाइत सिंह साहेब गीताक एकटा श्लोक मिश्रजीकें लक्ष्य क’क’ कहलखिन | गीताक बहुत श्लोक मिश्र जी कें याद छलनि | सिंह साहेब कें ई जानि क’ अतिरिक्त ख़ुशी भेलनि | फेर किछु काल धरि गीताक रसधार बहल |

हम मिश्र जी कें हुनका लग नेने गेलियनि, एहि लेल सिंह साहेब हमरा आशीर्वाद देलनि आ दू-तीन दिन मिश्रजीक संग  अपना  ओत’ आबक लेल कहलनि |

हम सभ सिंह साहेबक चरण स्पर्श क’क’ हुनका ओत’सँ विदा भेलहुँ |

हॉस्टल पहुँचिते एकटा छात्र पुछलकनि ‘कब जा रहे हैं मिश्र जी ?’

मिश्र जी मुस्कुराइत पुछलखिन ‘और तुम कब जा रहे हो ?’

आरामसँ कुर्सीपर बैसैत मिश्र जी बजलाह, ‘मुझे तो अभी आराम करना है, जिसको जहाँ जाना हो, जाए |’

बहुत गोटेकें मिश्र जी कें प्रफुल्लित देखि आश्चर्य भ’ रहल छलै |

हम ठाकुर जी आ झा जी कें ई बात कहलियनि त हिनको  सभकें नीक लगलनि |

एहि घटनामे हमर भूमिका बहुत थोड़ छल, मुदा हमरा जे अनुभव भेल से हमरा लेल महत्वपूर्ण सिद्ध भेल | हमरा समस्याक समाधानक एकटा नीक आ सरल सूत्र हाथ लागि गेल छल जकर उपयोग हम जीवनमे कय बेर केलहुँ आ सभ बेर परिणाम शुभ रहल |……

(  क्रमशः )

आगाँक कथा रवि दिन अर्थात 6.11 क’

                        

 

 

 

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