Thursday 28 October 2021

एहि माटिकें प्रणाम

 

                   एहि माटिकें प्रणाम

 

बौआ हाथ जोरि करू

एहि माटि कें प्रणाम |

              ई गाँधीक देश

              ई विद्यापतिक गाम | बौआ......

सोनाक चिड़ै भारत

से दुनिया जनैए

आ तकर ह्रदय मिथिला

से के नै बुझैए

माँ जानकीक ई जन्मभूमि पावन

               आएल छथि शंकर

               लोभाएल  छथि राम | बौआ.......

काल्हि केर मिथिलाक मंडन अहीं

यौ वाचस्पति अहीं, यौ विद्यापति अहीं,

आ काल्हि केर भारतक गांधी अहीं

यौ सुभाषो  अहीं, यौ भगत सिंह अहीं

विश्वमे बढाबी, नाम अपन देशक

              आशा करैए

              ई धरती ललाम | बौआ......

 

पेट अपन कहुना त

कुकुरो भरैए

छिः छिः ओ जीवन

जे अजगर जिबैए

देश-दुनियाक लेल जीवन जे दैत  अछि

सैह दुनियामे अमर भ’ रहैए  

थूकि दैछ दुनिया स्वार्थीक नाम पर

             माटि  केर नाम

             जे करैछ बदनाम | बौआ.......

पडल अछि अहींक लेल

काज एकटा  

बनयबाले’ पवित्रतम

समाज एकटा  

सभले’ हो सुख आ समृद्धि केर भारत

                     चकमक करय

                     सभ शहर सभ गाम | बौआ.....

बौआ हाथ जोरि करू एहि माटिकें प्रणाम |

बौआ सूति-ऊठि करू एहि माटिकें प्रणाम |

बौआ बेर-बेर  करू एहि माटिकें प्रणाम |

बौआ घूरि-फीरि करू एहि माटिकें प्रणाम |



गीत संग्रह  'तोरा अङनामे' मे 1978 मे प्रकाशित ) 

तोरा अङनामे

 

                   तोरा अङनामे 

तोरा अङनामे 

     वसंत नेने  

        आएब सजना, तोरा अङनामे |

 

पीयरे ओहार बिच लाले रंग डोलिया

ताही बिच कुहुकय प्राण  कोइलिया

तोरेले’ पराती

      सुनैब सजना, तोरा अङनामे |

 

आशक पातिल प्रेमक बाती

देखि जुडायत दगधल छाती

सपने जकां कोहबर

       सजैब सजना, तोरा अङनामे |

 

सेज सजायब कल्पित उपवन

करब निछाउर तन-मन-यौवन

नीलगगन-सन

       बनैब सजना, तोरा अङनामे |

 

नोर  बहाकय थाकलि नयना

उछिलय सिनेहक गंगा-यमुना

संगे-संगे जी भरि

       नहैब सजना, तोरा अङनामे  |


(गीत संग्रह 'तोरा अङनामे' 1978 मे प्रकाशित ) 

 

Wednesday 27 October 2021

धारक ओइ पार

                                               धारक ओइ पार  ( दीर्घ कविता )

एक

हम चाहैत रही
एकटा हरियर धरती
एकटा निरोग अकाश
एकटा निर्मल सरिता
हम चाहैत रही


हम सजौने रही
सपनाक एकटा उपवन
हम केने रही
अपना मोने
अपन जिनगी जीबाक
एकटा संकल्प


मुदा पता ने किएक
अनचोकेमे एकदिन
बान्हि देल गेल
हमर  दूनू हाथ
हमर दूनू पयर
बन्न क' देल गेल
हमर दूनू आंखि
आ बन्न क' देल गेल
हमरा एकटा छहरदेबालीमे
आ कहि देल गेल हमरा---
यैह  अहाँक वर्तमान थिक
यैह अहाँक भविष्य
यैह अहाँक जिनगी थिक
यैह अहाँक स्वर्ग !

पता ने किएक
हमरा बना देल गेल
बहीर
बौक
आन्हर
आ हम सभटा
सहैत रहि  गेलहुँ
बनल असहाय
मुदा
हमरा भीतर
बैसल एकटा मनुक्ख
आइ कुहरि उठल अछि
आइ
तारमतोर
हमरा क्यो पुछि रहल अछि ----
 
यैह जीवन थीक तं ओ की छल ?
यैह सरिता थीक तं ओ की छल ?
यैह स्वर्ग थीक तं ओ की  छल ?
ओ  की  छल ?
ई की   थीक ?


  दू

हम बिसरि जाए चाहलहुँ
अपन देखल सपना
हम बिसरि जाए चाहलहुँ
ओ धरती
ओ उपवन
ओ सरिता
मुदा
बिसरि नहि सकलहुँ
बिसरि नहि पबैत छी
पता नहि किएक !


हम तोडि देम' चाहैत छी
हाथक एहि बन्हन कें
पैरक एहि बेडी कें
फोलि लेम' चाहैत छी
आँखिक एहि पट्टी कें
आ ढाहि देम' चाहैत छी
चारुकातक देबाल कें ----


अहाँ विश्वास क' सकैत छी ?
अहाँ  हमरा लग आबि सकैत छी ?
अहाँकें हमरे सप्पत
अहाँ बिजलोका  बनि क' आउ
देखू
हमरा भीतर उठैत
बिहाडि आ झटटक कें
पानि आ पाथर कें

एहि अन्हडमे
एहि ठनकामे
जरि क'
सुड्डाह भेल मज्जर
टूटल ठारि
गाछ सं फराक भेल
सूखल नवकलश
अपन आत्मकथा कहैत अछि
अपन मनोव्यथा कहैत अछि.



तीन

अपन प्राण रक्षाक लेल
अनिवार्य आवश्यकताक पूर्तिक लेल
बेकल भेल
बौआ रहल छी
एम्हर सं ओम्हर
ओम्हर सं एम्हर
किन्तु
कतहु ने भेटैत अछि
ओ वस्तु
हमरा जकर खगता अछि
जकरा ले' ममता अछि
घर सं छटपटाइत
आंगन अबैत छी
आंगन सं अपस्यांत भेल
अबैत छी दरबज्जा पर
दरबज्जा सं औनाइत टोल
टोल सं भरि गाम
आ गाम सं लिलोह भेल
किछु काल ले'
ठाढ़ भ' जाइत छी
एकटा चौबटिया पर |

कतहु नहि भेटैत अछि
ओ वस्तु
जे तकैत छी हम
ककरा लग जा क'
करू नेहोरा
सभ तं अहिना
काइट रहल अछि अहुछिया
सभ तं अहिना
बौआए रहल अछि
एम्हर सं ओम्हर
ठाढ़ अछि
माथ झुकौने
कोनो कोनटा लग
कोनो आंगनक मुँहथरि लग
कोनो दरबज्जा पर
कोनो दोकान पर
कोनो मंदिरमे
अथवा
कोनो चौबटिया पर
सभहक पीठ-पांजर एक भेल छैक
धँसल छैक आँखि
कपार पर छै पसेना
आ ठोर पर फुफरी
के अनका दिस ताकत

सभ
एक हाथें पेट धयने
दोसर  हाथें टोइया - टापर दैत
बढ़ल जा रहल अछि
घिसियबैत
अपन जीबित लहासकें
कतहु कोनहुँ अन्हारमे |

जठरानलक दर्दसँ
आहत भेल हम
थूस्स द' बैसि जाइत छी
चिचिआए लगैत छी
जतेक नाम मोन अछि
सभकेँ बजबैत छी
मुदा
कहाँ ककरहु अयबाक
आहटियो सुनैत छी
आइ
कतय गेल समाज
कतय गेल गाम
कतय गेल टोल
की करैत अछि परिवार
की बजैत अछि घर
आ की सोचैत अछि ओ
जे
काल्हि हमरा जन्म पर
पमरिया नचौने रहय ?


चारि 
मङनीमे कोनो वस्तु 
कतहु भेटब असंभव अछि 
सैह सोचि
 आबि गेल छी हम बजार 
अपन मोनक भीतर 
कनैत 
चिचिआइत 
एकटा चिल्हकाकें 
चुप करबाक लेल 

बडकी टा बजार 
चहल-पहल वातावरण 
अस्त-व्यस्त लोक 
के अछि बनियाँँ 
गहिंकी के अछि
 बूझब कठिन अछि 

देखैत छी जहां-तहां 
लीखल मोट आखरमे
 एतहि सस्त मूल्य पर 
सभ वस्तु भेटैत अछि 
एकदम शुद्ध रूपमे 

हम 
अपन जेबी  तकैत 
साकांक्ष भ' जाइत छी 
घुसिया जाइत छी 
ओही पतियानीमे 
जतय 
हमरा सन
 लाखो लोक 
पहिनहि सं ठाढ़ अछि 

अरे रे रे ई की ?
बहुत रास मूँह त
 चिन्हारे जकाँ लगैत अछि 
पता ने (मोन नहि अछि )
जीवनक कोन पल मे 
किनका सं कखन 
भेल रह्य परिचय 

हम सोचि नहि पबैत छी
 हमर गामे बनि गेल अछि बजार
कि यैह बजार थिक हमर गाम 
की यैह बजार थिक हमर घर 
की यैह बजार थिक
 हमर जन्म पर 
पमरिया नचौनिहार 
हमर शुभ चिन्तक !


हे  यौ 
कने सुनू त 
अहींकें पुछैत छी 
अहाँ एतय कोना ?

अहाँ त कहैत रही 
हमरा गाममे 
ओ सभ वस्तु भेटैत अछि 
जकर स्वर्गहुमे अभाव छैक 
हमरा गामक लोककें 
नहि जाय पडैत छैक बजार 
जं से कहने रही 
त की 
झुट्ठे ?
हमरा ठकबाक लेल ?
धिया-पूता जानिक'
परतारबाक  लेल ?
आ जँँ
सत्ते  कहने रही
 त हमरा बातक जबाब दिय' 
अहाँ आ बजार
 दुनू एकठाँँ कोना ?

27.10.21

5.
हम एहि मरुभूमि बाटे 
एसगरे जा रहल छी 
पता ने कखन 
के कतय छूटि गेलाह 
तथापि 
संगमे ओ वस्तु अछि 
जाहिसं 
बदलल जाइत अछि मनुक्ख 
भ' रहल अछि 
मोने-मोन 
प्रसन्नताक अनुभव 
देखैत छी 
बासनक बाहरी स्तरपर 
साटल 
मनोहर 
अति मनोहर 
एकटा ग्रामीण दृश्य 
हरियर-कचोर बाध 
लहलहाइत जजात 
आ ककरहु प्रतीक्षामे बैसलि 
रोटी आ नॉन नेने 
खेत केर आरिपर 
घोघ तनने 
दुरगमनिया कनियाँ  सन 
कोनो आकृति |

हम पैसि जाय चाहैत छी 
डिब्बा केर भीतरमे 
देख' चाहैत छी 
ओ वस्तु 
जे भूखकें मेटा सकए 
पियासकें मिझा सकए 
जे हरक लागनि पकड़बा ले'
लोककें करैत होइ ठाढ़ 
जे खरिहानसं कोठी धरि 
दैत होइक आकर्षण 
जे सरिपहुं आधार थीक 
मनुक्खक 
सम्पूर्ण क्रियाशीलताक 
जे संजीवनी बनैत अछि 
मनुश्यताक रक्षाक लेल 

बहुत उत्सुकतासं 
एकांतमे बैसिक' 
हटबैत छिएक ढाकन 
एआएक हमरा 
दांती लागि जाइत अछि 
बाहर शुद्धताक प्रमाण-पत्रक विज्ञापन 
आ भीतर मिलावट 
मिश्रण एना 
जेना प्रेमसं बनाओल हो 


मिश्रणमे  वस्तु 
अथवा
वस्तुमे मिश्रण 
ई किएक ?
ई कोना ?
ई ककरा ले' ?
ई ककरा द्वारा ?
ई कहिया धरि ?
हमर विधायक दृष्टि 
भ' जाइत अछि विकलांग 
हमर डबडबायल आँखि
आँखिक आगाँ 
दूर....
बहुत दूर धरि 
पसरल अन्हार 
हमरा झिकझोरि दैत अछि 
हमरा सोझाँ 
ठाढ़ भ' जाइत अछि 
आरामकुर्सी 
वातानुकूलित भवन 
रंग-बिरंगक वायुयान 
आ 
एक हेंज 
चिल्होरि सन मनुक्ख !

हम बिसरि जाइत छी बजार 
दोकानपर
 पतियानीमे 
लोक सबहक अपरतीभ मुंह 
बिसरि जाइत छी 
चहल-पहल 
अस्त-व्यस्त वातावरण 
थरथरा रहल छी 
छटपटा रहल छी 
घुरमा लागि जाइत अछि 
बन्न भ' जाइत अछि 
धमनीमे रुधिर-प्रवाह 
धमनीसं निकल' लगैछ आगि 
एके पलमे 
भ' जाइत छी छाउर 
एकदम निर्जीव 
बिना हड्डीक मनुक्ख 
बिना शोणितक मनुक्ख 
बिना आँखिक मनुक्ख 
बिना हाथ-पयरक मनुक्ख 

निर्जीव बनि 
फेका जाइत छी 
ईंटा आ पाथर जकाँ 
ढेपा आ रोड़ी जकाँ 
खंती आ कोदारि जकाँ 

आ पडल रहि जाइत छी 
कोनो खेतक आरि लग 
कोनो खरिहानक मेह लग 
कोनो बाडीक कोनमे 
कोनो बबूरक बोनमे 
कतहु बड़का खाधिमे 

भाइ रे !
हमरा दुख  नहि होइतय 
जं 
अपैत हाथ बला लोक 
रहितय अनठीया 
हमरा नहि होइत तामस 
जं अपनहु शोणित 
निरैठ नहि रहबाक भय 
नहि भेल रहितय 

हम नहि करितहु  चिन्ता 
जं 
भेल रहितय समाप्त 
सभटा संभावना 
निरैठ हाथक 
पवित्र शोणितक 
आ स्वस्थ सम्बन्धक |































Tuesday 26 October 2021

बाल गीत


बाल गीत



हमरहि खातिर सुरुज उगइ छथि
हमरहि खातिर चान
हमरहि खातिर कोटि तरेगन
हमरहि ले’ आसमान |

हमरहि खातिर साँझ पडइए
राति सं होइए प्रात
हमरहि खातिर रौद अबैए
हमरहि लेल बसात

हमरहि खातिर गाछ फडइए
जामुन, आम, लताम |


पानि तपैए, भाफ बनैए
भाफ उडइए, मेघ बनैए
सेहो हमरे ले’ ऊपरसं
धरती पर रिमझिम बरसैए

हमरहि खातिर धरती मैया
देथि गहूम आ धान |

हमरहि खातिर फूल फुलाइछ
उज्जर- पीयर- लाल
कतहु असीमित सागर अछि तं
पर्वत कतहु विशाल

सभटा हमरहि लेल बनाक’
नुका गेला भगवान |

Tuesday 5 October 2021

छागर कटैत रहलै

 

                  छागर कटैत रहलै

 

 

छागर कटैत रहलै

कनैत कलपैत रहलै

                       भगवती प्रसन्न भ’ गेलीह

                       लोक सभ बुझैत रहलै |

 

परम्पराक मंचपर हत्याक खेल

बाघकेर बलि कहियो ने देल गेल

 

ढोल-पिपही बजैत रहलै

आ नटुआ नचैत रहलै

                         भगवती प्रसन्न भ’ गेलीह

                         लोक सभ बुझैत रहलै |

 

सत्य आ अहिंसाक ज्ञान मौन भेल

भरि गाँ तमाशा देखैछ ठाढ़ भेल

 

लिधुर जे बहैत रहलै

बखरा लगैत रहलै

                         भगवती प्रसन्न भ’ गेलीह

                         लोक सभ बुझैत रहलै |

 

कहलनि जे बुद्ध, महावीर आबिक’

सुतलोमे सदिखन रहू जागिक’

 

हिंसा जे होइत रहलै

विपदा अनैत  रहलै

                            भगवतीक आँखिकेर नोर

                            क्यो नहि देखैत रहलै|

 

माउसकें  प्रसाद मानि लेल

हर्षमे विषाद सानि देल

 

धरती फटैत रहलै

ट्रेन पलटैत  रहलै

             नभमे ई व्याप्त चीत्कार

             काल  बनि अबैत रहलै |

                                     

 

 

हमरा चिन्ता कथी के

 

                         गीत 

बुच्ची बढती, लिखती-पढ़ती,

हमरा चिंता कथीके ?

भाग्य अपन अपनेसं गढ़ती

हमरा चिंता कथीके ?

             

              रेप-दहेज़क दानवकेर

              उत्पात मचल अछि भारतमे,

              महिषासुरले’ दुर्गा बनती

              हमरा चिंता कथीके ?

 

ज्ञान और विज्ञानक सम्पति

अर्जित करती जीवनमे,

नव सुरुज आ चान बनेती

हमरा चिंता कथीके ?

 

             लोकक मोल बुझै छै एखनो

             लोक बहुत छै दुनियामे,

             संगी अप्पन अपने चुनती

             हमरा चिंता कथीके ?

 

 अपनहि श्रमसं बाट बनेती

एहि बबूरकेर जंगलमे

‘किरण’, ‘सुनीता’, ‘मीरा’ बनती

हमरा चिंता कथीके ?

 

 

तेहेन बात नै कहू / मैथिली गीत

तेहेन बात नै कहू

ओहिना तं मोन  धह-धह जरिते रहैत अछि
फाटि  जाए करेज तेहेन          बात नै कहू |


मोनक इ घर फूसक, चिनगी उडैछ छण-छण
जरि जैत सगर गाम, एखन बसात नै बनू |


बांटल ई  चर-चाँचर कतेक आरि -धूरसं
अहाँ  कांट सं भरल एखन बाट नै बनू |


इतिहास केर घैल अछि नोर सं भरल
तै ले' अहाँ पुरैनिक एखन पात नै बनू |


संगी हमर बनी तं बरु साँझे बनि रहू
कुहेस सं भरल एखन प्रात नै बनू |



( प्रकाशित : समय-साल / मइ -जून २०११ )

चिट्ठी लीखि रहल छी

         चिट्ठी लीखि रहल छी 

कोना कहू जे कोन हालमे जीबि रहल छी
हम पहाड़ पर बैसल चिट्ठी लीखि रहल छी |

पर्वत केर कायासं निकलय
कोयला कारी-कारी
घूम घुमौआ रस्ता पर अछि
चलइत मोटर गाड़ी

आगां निहुरि-निहुरि क' च'लब सीखि रहल छी
हम पहाड़ पर बैसल चिट्ठी लीखि रहल छी |

       मोन  पडइए एत' आबि क'
                     सीवानक संसार
कविता गीत गजल केर खातिर
                    जहाँ-तहाँ बैसार

एत' तपस्वी केर भोग हम भोगि रहल छी
हम पहाड़ पर बैसल चिट्ठी लीखि रहल छी |

बिजली  रानी संग रहै छथि
तें त अछि किछु मौज
साधू केर कुटी-सन लागय
अनमन दीपक लौज
एतहि आबि क' इस्टेसन दिस ताकि रहल छी
हम पहाड़ पर बैसल चिट्ठी लीखि रहल छी |

सभ्यता आ संस्कृति

                                सभ्यता आ संस्कृति 

हम कहलियनि हमरा नोकरी भेटि गेल

बाबूजी प्रसन्न भ' गेलाह

हम कहलियनि हम अपन विवाह ठीक क' लेलहुँ

बाबूजी  नाराज भ' गेलाह 

हम कहलियनि विवाहमे दस लाख भेटत

बाबूजी प्रसन्न भ' गेलाह

हम कहलियनि कनियाँक नाम पर बैकमे जमा रहत 

 बाबूजी  नाराज भ' गेलाह 

 हम कहलियनि कनियाँ सेहो नोकरी करैत छथि 

 बाबूजी प्रसन्न भ' गेलाह

 हम कहलियनि कनियाँ सेहो संगे आबि गेल छथि 

 बाबूजी सन्न रहि  गेलाह !

डिबिया

                                   डिबिया

बंगला अछि

गाडी अछि

टी वी अछि

फ्रीज़र अछि

ए सी अछि

रंग-विरंगक मोबाइल अछि

लाकर अछि

एफ ड़ी अछि

             कतेक धनीक छी हम सभ,

मुदा

जीबि नहि सकैत छी बिना घूसक,

क’ नहि सकैत छी

बेटाक विवाह

बिना दहेजक

रहि नहि सकैत छी

बिना ककरो  दुःख देने

                कतेक गरीब छी हम सभ !