छागर कटैत रहलै
छागर कटैत रहलै
कनैत कलपैत रहलै
भगवती प्रसन्न भ’
गेलीह
लोक सभ बुझैत रहलै
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परम्पराक मंचपर हत्याक खेल
बाघकेर बलि कहियो ने देल गेल
ढोल-पिपही बजैत रहलै
आ नटुआ नचैत रहलै
भगवती प्रसन्न भ’ गेलीह
लोक सभ बुझैत रहलै |
सत्य आ अहिंसाक ज्ञान मौन भेल
भरि गाँ तमाशा देखैछ ठाढ़ भेल
लिधुर जे बहैत रहलै
बखरा लगैत रहलै
भगवती प्रसन्न भ’ गेलीह
लोक सभ बुझैत रहलै |
कहलनि जे बुद्ध, महावीर आबिक’
सुतलोमे सदिखन रहू जागिक’
हिंसा जे होइत रहलै
विपदा अनैत रहलै
भगवतीक आँखिकेर नोर
क्यो नहि देखैत रहलै|
माउसकें
प्रसाद मानि लेल
हर्षमे विषाद सानि देल
धरती फटैत रहलै
ट्रेन पलटैत रहलै
नभमे ई व्याप्त चीत्कार
काल बनि अबैत रहलै |
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