ई जुनि बूझू झूठ कहैछी
ई जुनि बूझू झूठ कहै छी।
कहिया दर्शन हैत अहाँ सँ,
आंगुर पर हम दिन गनै छी ।
ई जुनि बूझू झूठ कहै छी ।।
सासुर अयबाक होइत'छि इच्छा ।
मुदा चलैत'छि एखन परीक्षा
।
बितत कोना ई मिलन-प्रतीक्षा
कखनो-कखनो खूब सोचै छी ।
ई जुनि बूझू झूठ कहै छी ।।
हैत परीक्षा - फल जँ ने बढ़ियाँ ।
लोक कहत जे अभागलि-कनियाँ ।
चुटकी लेत हमरा भरि दुनियाँ,
मोन मारि तेँ एखन पढ़ै छी ।
ई जुनि बूझू झूठ कहै छी ।।
जुनि बूझब जे अहाँ केँ बिसरलौं ।
ककरहु माया - जाल मे फँसलौं ।
हम तऽ अहाँ केर हाथ पकड़लौं,
अहीं केर प्रेम-गगन मे उड़ै छी ।
ई जुनि बूझू झूठ कहै छी ।।
बीतत परीक्षा
शीघ्रे आयब ।
तखन अपन हम कुशल सुनायब ।
अहाँ कथू ले' ने गाल फुलायब,
चिट्ठी एखन बस एतबे लिखै छी |
ई जुनि बूझू झूठ कहै छी ।।
( १९७८ मे प्रकाशित गीत संग्रह 'तोरा अँगना मे'क गीत क्र.१३ )
संगहि “गीतक फुलवारी” फुलवारी मे सेहो प्रकाशित ।
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