Sunday, 5 February 2012

ई जुनि बूझू झूठ कहैछी


ई जुनि बूझू झूठ कहैछी






ई जुनि बूझू  झूठ  कहै छी।
कहिया  दर्शन  हैत  अहाँ  सँ,
आंगुर पर हम दिन गनै छी ।
ई जुनि बूझू  झूठ कहै छी ।।

सासुर अयबाक होइत'छि इच्छा ।
मुदा चलैत'छि  एखन  परीक्षा ।

बितत कोना ई मिलन-प्रतीक्षा
कखनो-कखनो खूब सोचै छी ।
ई जुनि बूझू  झूठ कहै छी ।।

हैत परीक्षा - फल जँ ने    बढ़ियाँ ।
लोक कहत जे  अभागलि-कनियाँ

चुटकी लेत हमरा भरि दुनियाँ,
मोन मारि तेँ एखन पढ़ै छी ।
ई जुनि बूझू  झूठ कहै छी ।।

जुनि बूझब जे अहाँ केँ बिसरलौं  ।
ककरहु माया - जाल मे फँसलौं  ।

हम तऽ अहाँ केर हाथ पकड़लौं,
अहीं केर प्रेम-गगन मे उड़ै छी 
ई जुनि  बूझू  झूठ  कहै छी ।।

बीतत   परीक्षा  शीघ्रे       आयब
तखन अपन हम कुशल सुनायब

अहाँ  कथू ले'  ने गाल फुलायब,
चिट्ठी एखन बस एतबे लिखै छी |
ई  जुनि  बूझू  झूठ  कहै छी ।।



( १९७८ मे प्रकाशित गीत संग्रह 'तोरा अँगना मे'क गीत क्र.१३ )
संगहि “गीतक फुलवारी” फुलवारी मे सेहो प्रकाशित ।


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