Tuesday, 24 January 2012

हम – अहाँ



हम अहाँ

गजल



चालनि मे नित पानि भरै छी हम अहाँ ।
कतेक बरख सँ संग रहै छी हम - अहाँ ।।

अपन अपन दुनिञा मे हम सभ हेरा गेलहुँ
एक दोसर केँ कहाँ चिन्है छी हम - अहाँ ।

कते जतन सँ सींचै छी नवगछुली केँ
सभ दिन सपना नव देखै छी हम - अहाँ ।

भिनसर, दुपहर, साँझ, राति केर नाटक ई
हँसि कऽ कानी, कानि हँसै छी हम अहाँ ।

माथक मोटा हल्लुक कहियो भेल कहाँ
रोज मरै छी, रोज जिबै छी हम - अहाँ ।

काल्हुक दिन होयत शुभ दिन हमरो सभ ले
यैह सोचि सभ राति सुतै छी हम अहाँ ।

नोर आँखि केर, एक दोसरक पोछब हम
चलू आइ संकल्प करै छी हम अहाँ ।



“विदेह” – अंक ९७ – ०१ जनवरी २०१२ - मे प्रकाशित ।

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