की ई आलोचना प्रायोजित अछि ?
(पोथी
आ आलोचनापर पाठकीय प्रतिक्रिया )
नवारम्भसं प्रकाशित डा.कमल मोहन ‘चुन्नू’ जीक पोथीक
नाम अछि ‘आबि रहल एक हाहि’ |
पोथी हमरा भेटल छल |
उत्सुकता भेल | जहिया हाथमे आएल, ओही राति आरम्भसं पढ़ब
आरम्भ केलहुं |
किछु पढलाक बाद आगाँ पढबाक उत्साह नहि रहल |
पढ़ब लंबित रहि गेल |
काल्हि जखन आशीष अनचिन्हारजीक आलोचना पढ़लहुँ त हमरा लेल ई पोथी अत्यन्त महत्वपूर्ण
भ’ गेल | पहिने त पोथीक प्रचारक लेल ई प्रायोजित आलोचना लागल, बादमे आश्चर्य सेहो
भेल जे भूमिकाक फोटोकॉपी मंगाय आशीषजी एतेक शीघ्र
विस्तृत आलोचना लीखि लेलनि, मुदा हमरा लग पोथी रहैत हम भूमिको नहि पढ़ि
सकलहुं |
एकर दोख हम अपन अवस्थाजन्य अक्षमताकें द’ सकैत छी |
आइ पहिल बेर हमरा ई अनुभव भेल जे पोथीकें चर्चित बनयबामे ओकर
भूमिकाक आलोचनाक की भूमिका होइत छैक |
यैह कारण अछि जे हम पोथीकें ठीकसं पढ़बाक लेल आकर्षित भेलहुँ | दोसर कारण इहो भ’
सकैत अछि जे दोसरक आलोचनामे सुखक अनुभव करबाक संस्कार हमरहु मोनमे विद्यमान हो |
भूमिकाक आलोचनाक मिलान भूमिकाक आलेखसं करैत गेलहुँ,
एहि तरहें सम्पूर्ण भूमिका पढब आसान भ’ भेल | तकर बाद पोथीक रचना सभ सेहो पढबामे नीक लागल |
आब हम सभटा रचना आ आलोचना पढ़िक’ किछु कहबाक
स्थितिमे आएल छी |
आलोचनाकें धारदार बनेबाक लेल किछु शब्दक उपयोग हमरा अनसोहांत लागल अछि ( छुल-छुल मूतै बला प्रसंग ) |
एहि तरहक शब्द सबहक उपयोगसं सेहो एकटा अस्वस्थ
परम्पराक जन्म भ’ सकैत अछि, तें एहिसं बचबाक प्रयास हमरा आवश्यक लगैत अछि | आलोचनाक सीमाक अतिक्रमण नहि हो,से ध्यान राखब चाही | एकटा
स्वस्थ परम्पराक रक्षाक लेल एकटा अस्वस्थ परम्पराकें जन्म देब कोना उचित कहल जाएत
?
हमरा आलोचनाक सीमा निर्धारित करबाक अधिकार नहि अछि,
मुदा एक सामान्य पाठकक रूपमे हमरा लगैत अछि जे आलोचना कबाछु नहि बनबाक चाही |
हम देखलहुं अछि जे पोथीमे रचनाक माध्यमसं गाम-घर, राज्य, देश आ दुनियामे घटैत बहुत रास
सामाजिक,आर्थिक,राजनीतिक घटना सबहक प्रति अपन विचार आ प्रतिक्रिया व्यक्त कएल गेल अछि |
प्रतिक्रिया व्यक्त करब साहित्यकारक हाथमे छनि,
व्यक्त करबाक माध्यम शब्द छै, शब्दक उपयोग विभिन्न विधामे करबाक स्वतंत्रता
साहित्यकारकें छनि | एहि स्वतंत्रताक संग ओहि विधाक विधानक पालन करबाक कर्तव्य
सेहो साहित्यकारक छनि | एहि कर्त्तव्यक
पालन नहि भेलासं अस्वस्थ परम्पराक जन्म होइत अछि |
साहित्यकार यदि चाहथि जे कर्तव्य पालनक जिम्मेदारी
मात्र आन लोक लेल छै, ओ स्वतन्त्र रहताह, त ई उचित नहि कहल जा सकैत अछि |
आइ जे किछु साहित्यमे व्यक्त कएल जा रहल अछि, से
पहिनहुं कोनो-ने-कोनो रूपमे व्यक्त कएल जा चुकल अछि |
चिन्तक लोकनि कहैत छथि जे देवता आ दानवक संग्राम
अनवरत चलैत आबि रहल अछि | रामायण,महाभारत
आ आनो धर्म ग्रन्थ द्वारा विभिन्न रूपमे सम्वेदना प्रगट कएल गेल अछि | पछिला सय दू
सय बरखमे सेहो हजारो साहित्यिक कृति द्वारा भिन्न-भिन्न तरहें प्रतिक्रिया आ सम्वेदना
व्यक्त कएल गेल अछि आ एखनो कएल जा रहल अछि |
प्रतिक्रिया आ सम्वेदना व्यक्त करबाक अनेक माध्यम
अछि, मुख्य दूटा माध्यम अछि-गद्य आ पद्य | गद्यमे निबन्ध, कथा,लघुकथा,बीहनि कथा,
उपन्यास,नाटक,संस्मरण,जीवनी, आत्मकथा आदि
मुख्य अछि, तहिना पद्यमे कविता,दोहा,मुक्तक,हाइकू,गीत,गजल,खण्ड काव्य,महाकाव्य आदि
मुख्य अछि | सभ विधाक अपन-अपन विशेषता छै |
अही विशेषताक कारण ओइ विधाक अस्तित्व छैक |
गजल विधा सेहो अपन किछु खास विशेषताक कारण अस्तित्वमे अछि, काफिया
आ बहर अनिवार्य अंग अछि गजलक | रदीफ़ अनिवार्य नहि अछि |
रदीफ़ हो त केहेन हो,काफिया आ बहरक आयोजन कोना हो,
से किछु अवधिक अभ्याससं सीखल जा सकैत अछि | सौभाग्यक बात अछि जे एहि सम्बन्धमे पर्याप्त जानकारी नेट पर उपलब्ध अछि जे गजलक व्याकरणक गहन अध्ययनक बाद सबहक उपयोग लेल
प्रस्तुत कएल गेल अछि |
ओना अपन अनुभवसं हम जनैत छी जे सुनि-सुनिक’,
पढ़ि-पढ़िक’ बहुत गोटे रदीफ़ आ कफियाक विषयमे किछु-किछु जान’ लगैत छथि आ लिखनाइ शुरू
क’ दैत छथि |
रदीफ़ चुनबामे त कष्ट नै होइत छनि, कारण समान शब्द
अथवा शब्द-समूहक आवृति पहिल शेरक दुनू पांतीक अन्तमे आ बादक प्रत्येक शेरक दोसर
पांतीक अन्तमे होइत छैक |
सभ शेरमे काफियाक मिलान ठीक रखबामे गजलक व्याकरणक जानकारी आ अभ्यासक आवश्यकता होइत छैक | एत’
अबैत-अबैत बहुत लोक थाकि जाइत छथि आ बहर
संतुलित रखबाक बेरमे असंतुलित भ’ जाइत छथि अथवा ओतबेकें पूर्ण मानबापर आ मनयबापर अड़ि जाइत छथि |
दुष्यन्त कुमार जीक एकटा शेरक एक पांती छनि :
‘यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ’
व्याकरणक ज्ञान आ निरंतर अभ्यास एकर एकमात्र समाधान
अछि |
जे सभ कहैत छथि जे हम विचारकें प्रधानता दैत छी,ओहो
सभ रदीफ़ आ काफियाक पालन त अवश्य करय
चाहैत छथि कारण तखने रचना ‘गजल जकाँ’ लाग’ लगैत छै, मुदा रचनाकें गजल बनबामे बहरक
खगता रहिए जाइत छैक |
अहू संकलनमे देखलहुँ अछि जे रदीफ़ आ काफियाक निर्वाह करबाक
प्रयास कएल गेल अछि |
किछु गजलमे सभ शेरमे काफियाक निर्वाह करैत काल
गंभीरताक अथवा धैर्यक अभाव दृष्टिगोचर होइत अछि |
बहरक पालन लेल सेहो प्रयास भेल अछि, मुदा समयक अभावक कारण ओकरा प्रति गम्भीरता नहि राखल गेल
अछि | जत’ ओहि लेल उपयुक्त शब्द तकबामे किछु समय आवश्यक छलै, ओत’ समय देबाक बदला रचनाकार
आगू बढि गेल छथि किछु और बात कह्बाक लेल |
एक बैसकीमे एकटा गजल लीखिक’ उठब यदि लक्ष्य हो त
गजलक संग न्याय नहि क’ सकबाक संभावना अधिक
भ’ जाइत छैक |
पोथीक भूमिका कहैत अछि जे गजलक वैधानिकता आ
वैचारिकतापर आश्रित दूटा सम्प्रदायमे एक सम्प्रदाय विचारक स्वास्थ्यक बिना परवाह
केने गजलक व्याकरण-विधानकें अक्षुण्ण रखबाक समर्थक अछि, दोसर सम्प्रदाय गजलक
माध्यमसं अपन बात-विचार कहबाक समर्थक अछि |
एहि उक्तिक सोझ अर्थ ई अछि जे किछु गोटे गजलक व्याकरणकें पूर्णतः मानैत अपन बात कहैत छथि,मुदा
बात दमगर नै रहि जाइत छनि ; दोसर दिस किछु गोटे गजलक व्याकरणकें आंशिक रुपें मानैत
दमगर बात कहैत छथि |
मतलब गजलक
व्याकरणकें आंशिक रूपें मानैत कएल गेल रचनाकें गजल कहबाक आ ओकर स्वीकृति पयबाक
आग्रह अछि | एकरा और सरल करी त ई कहल गेल अछि जे रदीफ़ रहित अथवा रदीफ़ सहित सभ
शेरमे शुद्ध अथवा अशुद्ध काफिया बला रचनाकें गजल मानू |
एत’ प्रश्न ई उठैत छैक जे दूटा अनिवार्य अंगमे
एकटाकें मानू, दोसरकें नै मानू, एकटा राखू,दोसर नै राखू, एहेन रचनाकें गजल कहबाक
जिद्दे किएक ?
विचारणीय बात ई अछि जे कोनो विधामे रचना करैत काल ओहि
विधाक व्याकरणक प्रति गम्भीरताक अभाव ओहि विधाकें कोना स्वस्थ राखि सकैत अछि ?
पोथीक एक पृष्ठपर जाहि रचनाकार सबहक प्रति आभार
प्रगट कएल गेल अछि, ओहो सभ कतहु-ने-कतहु एहि अनियमितताक लेल दोखी मानल जा सकैत छथि
|
हम अपन दोखक चर्च करब आवश्यक बुझैत छी | हम एकटा
गजलक प्रथम शेरक दुनू पांतीमे गजल लेखनमे परस्पर विरोधी दू तरहक विचारकें व्यक्त
केने छी :
एक पांतीमे एकटा विचार अछि किछु रचनाकारक जे बहरक
झंझटसं मुक्ति चाहैत छथि, दोसर पांतीमे गजलक विचार अछि, जे अपन बरबादी नै देखय
चाहैत अछि | हम कतहु अपने गजल कहैत काल ई बात कहि दैत छी, मुदा क्यो पढैत छथि त भ्रम
होइत छनि जे हमहूँ गजलमे बहरक पालन करबाक विरोध करैत छी | ओ शेर अछि :
बहरक झंझटिसं हमरा आजाद करू
हम गजल छी, हमरा नै बरबाद करू
ई शेर स्थापित सरल वार्णिक बहरमे रचल गजलक अछि |
विभिन्न प्रकारक बहरक जानकारी आवश्यक अछि गजल लेखनक
लेल |
ओना हमहूँ एखन सीखिए रहल छी, एखनहु गलती करैत छी आ
मानैत छी जे गलती भेल अछि, ओहिमे सुधारक प्रयास करैत छी | विचारमे हम स्वच्छ दुनियाँ चाहैत छी त अपन रचनामे सेहो
स्वच्छता सुनिश्चित करबामे कोताही किएक ? यदि हमर रचना गजल कहयबाक योग्यता नहि
रखैत अछि त ओकरा गजल कहबाक जिद्द्क की प्रयोजन ? गीत कहब,कविता कहब |
किछु गोटेक मत ई भ’ सकैत छनि जे रचनाकार आगू-आगू चलताह आ
व्याकरण पाछू-पाछू अथवा इहो कहल जा सकैत अछि जे साहित्यमे सेहो लोकतन्त्र हेबाक
चाही आ बेशी लोक जेना चाहैत छथि तकरे आधार अथवा तकरे सही मानल जाए, तखन जे
साहित्यिक अराजकताक स्थिति उत्पन्न हएत तकर की करब ?
आम जीवनमे हत्या अथवा शीलहरणकें अपराध मानल जाइत
अछि | गजलमे बहरक अनिवार्यताकें नष्ट करबाक जोर-जबरदस्तीक क्रियाकें गजल विधाक शीलहरणक
प्रयास नहि त आर की कहल जा सकैत अछि ?
जगदीश
चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’/ पटना / 7.12.2021
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