Sunday 6 March 2022

भरि नगरीमे शोर

 

                        भरि नगरीमे शोर

                              ---------जगदीश चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’

‘ममता गाबय गीत’ फ़िल्मक ई गीत ‘भरि नगरीमे शोर,बौआ मामी तोहर गोर मामा चान सन’ सौंसे मिथिलामे मिथिलाक माटि-पानि आ बसातक सुगन्धि नेने शोर करैत आएल आ जन-जनक मोनकें आनन्दित,प्रफुल्लित आ दलमल्ल्लितक’ देलक |एच.एम.वी. कम्पनी क रेकॉर्डमे एहि गीतक  संग किछु और गीत छलै :

‘अर्र बकरी घास खो / छोड़ि गठुल्ला बाहर जो / लूरू-खुरू बिनु केने बहिना पेट भरय नहि ककरो’

‘कनी बाजू अमोल बोल भौजी, कहू लेब कोन गहना’

‘मिथिला केर ई माटि उडल अछि छूबय गगनक छाती

भरि दुनियाँ केर मंगल हो आ जन-जन गाबय प्राती

चलू भैया रामे-राम हो भाइ, माता जे बिराजै मिथिले देशमे’

ई सभ गीत मिथिला-क्षेत्रमे ओहि समयक फ़िल्मी गीत सबहक प्रभावकें त’र क’ देने छल |

उत्सुकता छल बुझबाक जे ई गीत सभ के लिखने छथि |

रेकॉर्डमे गीतकारक नाम ‘रवीन्द्र’ लीखल छलै | एहिसँ जिज्ञासा बनले रहल | ई रवीन्द्र के छथि, कत’ रहैत छथि |

एक बेर दुर्गा पूजाक अवसरपर मधुबनी जिलाक यमसम गाममे नाटक देखबाक अवसर भेटल | ओत’ नाटकक सभ  दृश्यक समाप्तिपर ओही गामक निवासी आ लोकप्रिय गायक महेन्द्र झा जीक स्वरमे उपरोक्त सभ गीतक संग और बहुत रास गीत सभ सुनबाक सुअवसर प्राप्त भेल | ओहू ठाम ई जिज्ञासा बनले रहल जे ई गीत सभ के लिखने छथि |

चलू चलू बहिना :

एक दिन मधुबनीमे स्टेशन लग एक ठाम एक गोटे लग मधुप जीक ‘टटका जिलेबी’ आ ‘अपूर्व रसगुल्ला’क संग एकटा पोथी देखलहुँ ‘चलू-चलू बहिना’ |

ई पोथी हाथमे लेलहुँ | गीतकारक नाम लीखल छलै ‘रवीन्द्र नाथ ठाकुर’ | देखलिऐ जे एहि पोथीमे ओ सभ गीत छै जे सभ एच.एम.बी.क रेकॉर्डमे देखने छलहुँ आ यमसममे  महेन्द्र झाजीक मुँहसँ सुनने छलहुँ | पोथीक भूमिका पं.चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’जी लिखने छलाह | ईहो पता चलि गेल जे रवीन्द्र जी पूर्णियाँ जिलाक धमदाहा गामक निवासी छथि |

एहि पोथीमे किछु और लोकप्रिय गीत सभ छलै :

‘चलू-चलू बहिना / जहिना छी तहिना / लाल भैया नेने एला लाले-लाले कनियाँ’

‘माटिक सामा बनली,बहिनो खेल’ चलली, भैया जीब’ हो...’

‘सुन-सुन-सुन पनिभरनी गे, कनी घुरियो क’ ताक

चुप रह छौंड़ा बटोहिया रे, बड़ भेलें चलाक......’

‘गोरे इजोरियापर तारा के तिलबा, कमाल गोदना

लागे गोरे बदनपर कमाल गोदना |’

‘लाले-लाले साड़ी सेहो रे तिनपढिया

लाले रङ आङी लाले सिन्नूर...’

जहिना छी तहिना :

महेन्द्रजीक मूँहें किछु और गीत सभ सुनने रही से सभ ऐ पोथीमे नै छलै |

महेन्द्रजी किछु लोकोक्ति सबहक पहिल पाँती पढ़ि कहैत छलाह जे ई पाँती त सभ गोटे सुनने हैब, एहिसँ आगाँक पाँती हमरासँ सूनू | जेना :

‘बापक दुलारि बेटी दूरि गेली’

‘बिढ़नी बिन्ह्लक, तुम्मा फुलौलक, फेर कन्हुआइ छौ तोरेपर’

‘चकै के चकदुम मकै के लाबा’

‘करिया झुम्मरि खेलै छी’

‘दालि ददरी मरीच ददरी’

एक दिन दरभंगा टावर चौकपर रवीन्द्र जीक एकटा पोथी ‘जहिना छी तहिना’ भेटल, ओही पोथीमे एहि तरहक गीत सभ छलै जकर पहिल पाँती मिथिलाक गाम-गाममे लोकोक्तिक रूपमे व्यवहारमे छल | ओहि पाँती सभकें नव जीवन प्रदान करैत रवीन्द्रजी नव-नव प्रयोग करैत अपन विलक्षण प्रतिभाक परिचय देने छलाह |

ई गीत सभ लोक सभकेँ अप्पन गीत, अपन गाम-घरक, अपन आँखि-पाँखिक, अपन खेत-पथारक,पोखरि-इनारक,पावनि-तिहारक गीत लगैत छलैक आ होइत रहै छलै जे सुनिते रही |

बहुत दिनक बाद रहिकामे विद्यापति पर्वक विलक्षण आयोजनक अवसरपर आदरणीय रवीन्द्रजीसँ किछु कविता आ महेन्द्रजीक संग बहुत रास गीत सभ सुनबाक सुअवसर भेटल | उत्साह, आनन्द, प्रेम, करुणा, हास्य आ  व्यंग्यक बहुत रास विषय नेने बहुत गीत सभ लोककें आनन्द विभोर क’ देबाक सामर्थ्य रखैत छल :

‘की थिक मिथिला के छथि मैथिल’

‘जेम्हरे देखू तेम्हर, ठाकुर ओझा मिसर...’

‘तोरा अपने हाथें विधिना गढ़लनि अछि मोन लगाक’....’

‘अहाँकें लगैए किए लाज हे यै कनियाँ...’

‘बड़ा छणमे छनाक भेलै दाइ गे, गेलै पेटी के कुंजी हेराइ गे’

‘पिरिए पिराननाथ सादर परनाम’

‘यार दिलदार यार- की रे भजार यार  .....’

‘कियो लिखि दे दू पाँती सिपहियाके नाम’

‘अहाँ ई करू, ओ करू, जे करू....’

‘चारि पाँती सुनू रामकेर नामसँ....’

‘कोन गामसँ चललें रे भरिया..’

‘हजमा रे काट-काट बौआ केर केश....’

‘हे यौ बर बाबू यौ हैत ने बियाह बौआ घर घूरि जाउ.....’

‘हवा जे चल मिथिलामे चल ....’

‘हम मिथिले के जलसँ भरब गगरी..’

‘बटोही भैया, चलिते जाउ बटोही...’

‘कतेक दिन रहबै यौ मोरंगमे..’

‘चिट्ठी के तार बुझू, बुढिया बेमार बुझू ...’

‘हमरा देशक गरीबी छुतहरी गे तों उढरियो त जो...’

पोथीक पथार :

देखिते-देखिते रवीन्द्र जी रंग-विरंगक गीत सबहक पोथीक पथार लगा देलनि |

स्वतंत्रता अमर हो हमर, सुगीत, प्रगीत, अति गीत, रवीन्द्र पदावली आदि पोथीक बहुत रास गीत बहुत लोकप्रियता अर्जित केलक |

गीतक अतिरिक्त कविता आ आनो विधाक पोथी सभ प्रस्तुत कए रवीन्द्रजी मैथिली साहित्यक भण्डार भरबामे महत्वपूर्ण योगदान देलनि |

चित्र-विचित्र, नर-गंगा,पंचकन्या,एक राति, श्रीमान गोनू झा,लेखनी एक, रंग अनेक

आदि पोथी हमहूँ पढने छी |किछु और पोथी सभ छनि जे हमरा नहि पढ़ल अछि |

नव-नव प्रयोग :

रवीन्द्रजी गीतमे नव-नव प्रयोग करैत आएल छथि |

एकर उदाहरण अछि निम्नलिखित किछु गीत :

‘लटर – पटर दुनू टाङ करय, जे ने ई नबका भाङ करय...’

‘कोंचा लेटाइ छनि, केश फहराइ छनि, मोछो गेलनि कलकत्ते...’

‘ आकि हम झूठ कहै छी / नै यौ / आकि हम गप्प हँकै छी / नै यौ .....’

‘ बाबा डंडोत बच्चा जय सियाराम ....’

‘सभटा कर्म के कमाल सभटा विधि के विधान.....’

‘यार दिलदार यार ! की रे भजार यार !....’

 

युगल गायनक परम्परा :

बिना कोनो साज-बाज के पुरुखक स्वरमे आकर्षक युगल गायनक परम्परा रवीन्द्रजी द्वारा स्थापित भेल आ रवीन्द्र-महेंद्रक जोड़ी सम्पूर्ण भारतमे विभिन्न क्षेत्रमे,गाम-गाम आ  विभिन्न शहर सभमे सेहो लोकप्रियताक शीर्षपर पहुँचल |

यैह लोकनि अपन मनमोहक प्रस्तुतिक बलपर बहुत गोटेक सहयोग पाबि मैथिली फिल्म ‘ममता गाबय गीत’क बाँचल काज पूर्ण करबाय लोकक समक्ष प्रस्तुत करबामे सफल भेलाह |

विद्यापति पर्वक लोकप्रियता बढयबामे, सांस्कृतिक कार्यक्रम सभमे लोकक भीड़ जुटयबामे रवीन्द्र-महेन्द्रक जोड़ीक उल्लेखनीय योगदान रहल अछि |

गीतक अतिरिक्त ‘पंचकन्या’क किछु अंशक पाठ एहि जोड़ीक मूँहसँ सुनबाक अवसर हमरो प्राप्त भेल अछि आ ओहि आनन्दक वर्णन हम नहि क’ सकैत छी |

सीवानमे गरमीक समय विद्यापति स्मृति  पर्वक अवसरपर दुनू गोटे आएल छलाह, दुनू गोटे जखन गाबय लगलाह : ‘हवा रे चल मिथिलामे चल, जतय अनन्त वसन्त हँसैए सुरभित आठहु पल,हवा रे चल मिथिलामे चल |’

हुनक एहि आकर्षक प्रस्तुतिक परिणाम रहै जे लोककें लगलै जेना गरमी भागि गेल होइ आ शीतल बसात चल’ लागल होइ | लोक एतेक आनन्दित अनुभव करैत रहय जे बड़ी राति धरि  बैसले रहल, श्रोता नहि थाकल,डटल रह्ल, जखन ई दूनू गोटे चाह्लनि तखने कार्यक्रम समाप्त भेल |

एकटा भोजपुरी गीतकार छलाह परशुराम शास्त्री,ओहो सुनैत छलाह, हुनका नै रहल गेलनि, ओ मंचपर चल गेलाह आ रवीन्द्रजीक जीभरि प्रशंसा केलनि |     

स्कूल, कॉलेज, बैंक, शासकीय विभागक बहुत अधिकारी-कर्मचारी आ स्थानीय साहित्यकार आ आनो लोक सभ श्रोतामे छलाह | बहुत गोटे एहि कार्यक्रमक स्थायी प्रशंसक भेलाह आ फेर कहिया हेतै से पुछैत रहैत छलाह |

ओही स्मृतिमे अपन किछु पाँती प्रस्तुत क’ रहल छी :

मोन पड़ैए  आनन्दक बरखा होइ छल

जखन रवीन्द्र-महेन्द्र मंचपर अबै छला

बह’ लगै छल  शीतल  हाबा  गरमीमे

‘चल मिथिलामे चल’जखन ओ गबै छला

जिनका ‘रवीन्द्र-महेन्द्र’कें सुनबाक सौभाग्य भेटल छनि, तिनका ई अतिशयोक्ति नहि लगतनि :

जहिना दिन आ राति सूर्य आ चन्द्र बिना

तहिना गीतक मंच  रवीन्द्र-महेन्द्र  बिना |

जगदीश चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’

पटना / 31.01.2022

 

 

 

 

 

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