Tuesday, 6 March 2012

पाथर कें भगवान बुझै छी / मैथिली गीत

                  पाथर कें भगवान बुझै छी              



पाथर केँ  भगवान बुझै छी,  धन्य अहाँ !
भगवानक अपमान करै छी, धन्य अहाँ !!



ब्रह्म थिका ओ जे आतुर छथि
सुन्दर सृष्टि रचै ले'
आओर मनुक्खक जीवन मे
आनन्दक वृष्टि करै ले'

की हुनकर सम्मान करैछी ? धन्य अहाँ !
भगवानक अपमान करै छी, धन्य अहाँ !!



जनिक  पसेना सँ धरती सँ, 
उपजय गहुम आ धान 
गछी - बिरछी मे लुबुधैए, 
जामुन - आम – लताम । 

की ओइ विष्णुक ध्यान करै छी ? धन्य अहाँ !
भगवानक  अपमान  करै  छी,    धन्य अहाँ !!



जे देश - समाजक खातिर,
छथि करइत विष – पान । 
आ अखण्ड भारत केर जिनका सँ, 
भेटल वरदान 

शिव छथि, नहि अनुमान करैछी, धन्य अहाँ !
भगवानक अपमान  करै  छी,  धन्य अहाँ !!





( प्रकाशित : समय -साल / मई-जून २०११ )



पत्रिका नञि किनै छी / मैथिली गीत


पत्रिका नै किनै छी


पत्रिका  नञि  किनै   छी 



पत्रिका  नञि  किनै   छी 
अखबार   नञि  पढ़ै  छी 
बुझिए  क हम  की करबै,
समाचार  नञि  सुनै छी ।।



दूर   कियो   भोंपू   सँ, 
बेर  -  बेर    चिकरैए 
सत्य   अहिंसाक  मन्त्र,
हमरे - टा    सिखबैए ।

कथनी   आ  करनी   मे,
सरोकार  नञि देखै छी ।।



फुइट   गेल   तमघैल,
छुतहर   ने   फूटल ।
फूल  उपटि गेल, मुदा 
काँट   गेल  चतरल ।

दूर,   बहुत  दूर  धरि,
अन्हार -  टा देखै छी ।।



बगुलाक  आँखि देखल,
कौआक  पाँखि देखल 
साँपक गरा मे अँटकल,
बेंगोक   देह   देखल 

भादोक  बेंग  सँ   हम, 
अधिकार नञि मँगै छी ।।



सभतरि  देवाल   पाइक,
सभतरि   सवाल  पाइक 
सभ  ठाम  पाइक बरखा,
सभ ठाम अकाल पाइक 

पाइक     बियाधि    केर,
कोनो उपचार नञि देखै छी ।।





( प्रकाशित : समय -साल / मइ - जून २०११ )





पटनाक मजा लीयऽ / मैथिली गीत

पटनाक मजा लीय                                   



जुलुस केर मजा लीयऽ ।
     रैली केर मजा लीयऽ ।
                            जँ   लागि   गेल   लाठी,
               इस्स - इस्स केर मजा लीयऽ ।।





पटनाक  मजा लीयऽ ।
दिल्लीक मजा लीयऽ ।
बेकार छी अहाँ तँ,
बम्बइक मजा लीयऽ ।।


बजबाक मजा लीयऽ ।
खयबाक मजा लीयऽ ।
लाचार छी अहाँ तँ,
देखबाक मजा लीय ।।



चलि  दीय तेम्हर,
डेग  उठय जेम्हर ।
बस चढ़ू,  ट्रेन चढ़ू,
पकड़ू     इस्टीमर ।


रिक्शाक  मजा  लीयऽ ।
टमटम केर मजा लीयऽ ।
अछि खाली जँ जेबी
पैदल केर मजा लीय ।।



चलू - चलू ओम्हरे,
भीड़  देखू जेम्हरे ।
हउए  देखू  जुलूस,
आबि रहल एम्हरे ।

जुलुस केर मजा लीयऽ ।
पुलिस केर मजा लीयऽ ।
जँ   लागि   गेल   लाठी,
इस्स-इस्स केर मजा लीयऽ ।।



छथि  मामा एमेले,
तँ भेँट      आउ 
मोनक  भरम  केँ,
मेटौनहि     जाउ ।


बाबूक  नाम  लीयऽ ।
कक्काक नाम लीयऽ ।
इमप्लायमेंट एक्सचेंज मे,
धक्काक  मजा  लिय ।।




( रचना : १९७५ : शशिकान्तजी- सुधाकांतजी द्वारा कतेको मंच पर प्रस्तुत भेल )