पाथर कें भगवान बुझै छी
पाथर केँ भगवान बुझै छी, धन्य
अहाँ !
भगवानक
अपमान करै छी, धन्य
अहाँ !!
ब्रह्म थिका ओ जे आतुर छथि
सुन्दर सृष्टि
रचै ले' ।
आओर
मनुक्खक जीवन मे
आनन्दक
वृष्टि करै ले' ।
की हुनकर
सम्मान करैछी ? धन्य
अहाँ !
भगवानक
अपमान करै छी, धन्य
अहाँ !!
जनिक पसेना सँ
धरती सँ,
उपजय
गहुम आ धान ।
गछी - बिरछी
मे लुबुधैए,
जामुन - आम
– लताम ।
की ओइ
विष्णुक ध्यान करै छी ? धन्य
अहाँ !
भगवानक अपमान करै छी, धन्य
अहाँ !!
ओ, जे देश - समाजक खातिर,
छथि करइत
विष – पान ।
आ अखण्ड
भारत केर जिनका सँ,
भेटल
वरदान ।
शिव छथि, नहि अनुमान करैछी, धन्य अहाँ !
भगवानक
अपमान करै छी, धन्य
अहाँ !!
( प्रकाशित : समय -साल / मई-जून २०११ )
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