Sunday, 6 March 2022

भरि नगरीमे शोर

 

                        भरि नगरीमे शोर

                              ---------जगदीश चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’

‘ममता गाबय गीत’ फ़िल्मक ई गीत ‘भरि नगरीमे शोर,बौआ मामी तोहर गोर मामा चान सन’ सौंसे मिथिलामे मिथिलाक माटि-पानि आ बसातक सुगन्धि नेने शोर करैत आएल आ जन-जनक मोनकें आनन्दित,प्रफुल्लित आ दलमल्ल्लितक’ देलक |एच.एम.वी. कम्पनी क रेकॉर्डमे एहि गीतक  संग किछु और गीत छलै :

‘अर्र बकरी घास खो / छोड़ि गठुल्ला बाहर जो / लूरू-खुरू बिनु केने बहिना पेट भरय नहि ककरो’

‘कनी बाजू अमोल बोल भौजी, कहू लेब कोन गहना’

‘मिथिला केर ई माटि उडल अछि छूबय गगनक छाती

भरि दुनियाँ केर मंगल हो आ जन-जन गाबय प्राती

चलू भैया रामे-राम हो भाइ, माता जे बिराजै मिथिले देशमे’

ई सभ गीत मिथिला-क्षेत्रमे ओहि समयक फ़िल्मी गीत सबहक प्रभावकें त’र क’ देने छल |

उत्सुकता छल बुझबाक जे ई गीत सभ के लिखने छथि |

रेकॉर्डमे गीतकारक नाम ‘रवीन्द्र’ लीखल छलै | एहिसँ जिज्ञासा बनले रहल | ई रवीन्द्र के छथि, कत’ रहैत छथि |

एक बेर दुर्गा पूजाक अवसरपर मधुबनी जिलाक यमसम गाममे नाटक देखबाक अवसर भेटल | ओत’ नाटकक सभ  दृश्यक समाप्तिपर ओही गामक निवासी आ लोकप्रिय गायक महेन्द्र झा जीक स्वरमे उपरोक्त सभ गीतक संग और बहुत रास गीत सभ सुनबाक सुअवसर प्राप्त भेल | ओहू ठाम ई जिज्ञासा बनले रहल जे ई गीत सभ के लिखने छथि |

चलू चलू बहिना :

एक दिन मधुबनीमे स्टेशन लग एक ठाम एक गोटे लग मधुप जीक ‘टटका जिलेबी’ आ ‘अपूर्व रसगुल्ला’क संग एकटा पोथी देखलहुँ ‘चलू-चलू बहिना’ |

ई पोथी हाथमे लेलहुँ | गीतकारक नाम लीखल छलै ‘रवीन्द्र नाथ ठाकुर’ | देखलिऐ जे एहि पोथीमे ओ सभ गीत छै जे सभ एच.एम.बी.क रेकॉर्डमे देखने छलहुँ आ यमसममे  महेन्द्र झाजीक मुँहसँ सुनने छलहुँ | पोथीक भूमिका पं.चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’जी लिखने छलाह | ईहो पता चलि गेल जे रवीन्द्र जी पूर्णियाँ जिलाक धमदाहा गामक निवासी छथि |

एहि पोथीमे किछु और लोकप्रिय गीत सभ छलै :

‘चलू-चलू बहिना / जहिना छी तहिना / लाल भैया नेने एला लाले-लाले कनियाँ’

‘माटिक सामा बनली,बहिनो खेल’ चलली, भैया जीब’ हो...’

‘सुन-सुन-सुन पनिभरनी गे, कनी घुरियो क’ ताक

चुप रह छौंड़ा बटोहिया रे, बड़ भेलें चलाक......’

‘गोरे इजोरियापर तारा के तिलबा, कमाल गोदना

लागे गोरे बदनपर कमाल गोदना |’

‘लाले-लाले साड़ी सेहो रे तिनपढिया

लाले रङ आङी लाले सिन्नूर...’

जहिना छी तहिना :

महेन्द्रजीक मूँहें किछु और गीत सभ सुनने रही से सभ ऐ पोथीमे नै छलै |

महेन्द्रजी किछु लोकोक्ति सबहक पहिल पाँती पढ़ि कहैत छलाह जे ई पाँती त सभ गोटे सुनने हैब, एहिसँ आगाँक पाँती हमरासँ सूनू | जेना :

‘बापक दुलारि बेटी दूरि गेली’

‘बिढ़नी बिन्ह्लक, तुम्मा फुलौलक, फेर कन्हुआइ छौ तोरेपर’

‘चकै के चकदुम मकै के लाबा’

‘करिया झुम्मरि खेलै छी’

‘दालि ददरी मरीच ददरी’

एक दिन दरभंगा टावर चौकपर रवीन्द्र जीक एकटा पोथी ‘जहिना छी तहिना’ भेटल, ओही पोथीमे एहि तरहक गीत सभ छलै जकर पहिल पाँती मिथिलाक गाम-गाममे लोकोक्तिक रूपमे व्यवहारमे छल | ओहि पाँती सभकें नव जीवन प्रदान करैत रवीन्द्रजी नव-नव प्रयोग करैत अपन विलक्षण प्रतिभाक परिचय देने छलाह |

ई गीत सभ लोक सभकेँ अप्पन गीत, अपन गाम-घरक, अपन आँखि-पाँखिक, अपन खेत-पथारक,पोखरि-इनारक,पावनि-तिहारक गीत लगैत छलैक आ होइत रहै छलै जे सुनिते रही |

बहुत दिनक बाद रहिकामे विद्यापति पर्वक विलक्षण आयोजनक अवसरपर आदरणीय रवीन्द्रजीसँ किछु कविता आ महेन्द्रजीक संग बहुत रास गीत सभ सुनबाक सुअवसर भेटल | उत्साह, आनन्द, प्रेम, करुणा, हास्य आ  व्यंग्यक बहुत रास विषय नेने बहुत गीत सभ लोककें आनन्द विभोर क’ देबाक सामर्थ्य रखैत छल :

‘की थिक मिथिला के छथि मैथिल’

‘जेम्हरे देखू तेम्हर, ठाकुर ओझा मिसर...’

‘तोरा अपने हाथें विधिना गढ़लनि अछि मोन लगाक’....’

‘अहाँकें लगैए किए लाज हे यै कनियाँ...’

‘बड़ा छणमे छनाक भेलै दाइ गे, गेलै पेटी के कुंजी हेराइ गे’

‘पिरिए पिराननाथ सादर परनाम’

‘यार दिलदार यार- की रे भजार यार  .....’

‘कियो लिखि दे दू पाँती सिपहियाके नाम’

‘अहाँ ई करू, ओ करू, जे करू....’

‘चारि पाँती सुनू रामकेर नामसँ....’

‘कोन गामसँ चललें रे भरिया..’

‘हजमा रे काट-काट बौआ केर केश....’

‘हे यौ बर बाबू यौ हैत ने बियाह बौआ घर घूरि जाउ.....’

‘हवा जे चल मिथिलामे चल ....’

‘हम मिथिले के जलसँ भरब गगरी..’

‘बटोही भैया, चलिते जाउ बटोही...’

‘कतेक दिन रहबै यौ मोरंगमे..’

‘चिट्ठी के तार बुझू, बुढिया बेमार बुझू ...’

‘हमरा देशक गरीबी छुतहरी गे तों उढरियो त जो...’

पोथीक पथार :

देखिते-देखिते रवीन्द्र जी रंग-विरंगक गीत सबहक पोथीक पथार लगा देलनि |

स्वतंत्रता अमर हो हमर, सुगीत, प्रगीत, अति गीत, रवीन्द्र पदावली आदि पोथीक बहुत रास गीत बहुत लोकप्रियता अर्जित केलक |

गीतक अतिरिक्त कविता आ आनो विधाक पोथी सभ प्रस्तुत कए रवीन्द्रजी मैथिली साहित्यक भण्डार भरबामे महत्वपूर्ण योगदान देलनि |

चित्र-विचित्र, नर-गंगा,पंचकन्या,एक राति, श्रीमान गोनू झा,लेखनी एक, रंग अनेक

आदि पोथी हमहूँ पढने छी |किछु और पोथी सभ छनि जे हमरा नहि पढ़ल अछि |

नव-नव प्रयोग :

रवीन्द्रजी गीतमे नव-नव प्रयोग करैत आएल छथि |

एकर उदाहरण अछि निम्नलिखित किछु गीत :

‘लटर – पटर दुनू टाङ करय, जे ने ई नबका भाङ करय...’

‘कोंचा लेटाइ छनि, केश फहराइ छनि, मोछो गेलनि कलकत्ते...’

‘ आकि हम झूठ कहै छी / नै यौ / आकि हम गप्प हँकै छी / नै यौ .....’

‘ बाबा डंडोत बच्चा जय सियाराम ....’

‘सभटा कर्म के कमाल सभटा विधि के विधान.....’

‘यार दिलदार यार ! की रे भजार यार !....’

 

युगल गायनक परम्परा :

बिना कोनो साज-बाज के पुरुखक स्वरमे आकर्षक युगल गायनक परम्परा रवीन्द्रजी द्वारा स्थापित भेल आ रवीन्द्र-महेंद्रक जोड़ी सम्पूर्ण भारतमे विभिन्न क्षेत्रमे,गाम-गाम आ  विभिन्न शहर सभमे सेहो लोकप्रियताक शीर्षपर पहुँचल |

यैह लोकनि अपन मनमोहक प्रस्तुतिक बलपर बहुत गोटेक सहयोग पाबि मैथिली फिल्म ‘ममता गाबय गीत’क बाँचल काज पूर्ण करबाय लोकक समक्ष प्रस्तुत करबामे सफल भेलाह |

विद्यापति पर्वक लोकप्रियता बढयबामे, सांस्कृतिक कार्यक्रम सभमे लोकक भीड़ जुटयबामे रवीन्द्र-महेन्द्रक जोड़ीक उल्लेखनीय योगदान रहल अछि |

गीतक अतिरिक्त ‘पंचकन्या’क किछु अंशक पाठ एहि जोड़ीक मूँहसँ सुनबाक अवसर हमरो प्राप्त भेल अछि आ ओहि आनन्दक वर्णन हम नहि क’ सकैत छी |

सीवानमे गरमीक समय विद्यापति स्मृति  पर्वक अवसरपर दुनू गोटे आएल छलाह, दुनू गोटे जखन गाबय लगलाह : ‘हवा रे चल मिथिलामे चल, जतय अनन्त वसन्त हँसैए सुरभित आठहु पल,हवा रे चल मिथिलामे चल |’

हुनक एहि आकर्षक प्रस्तुतिक परिणाम रहै जे लोककें लगलै जेना गरमी भागि गेल होइ आ शीतल बसात चल’ लागल होइ | लोक एतेक आनन्दित अनुभव करैत रहय जे बड़ी राति धरि  बैसले रहल, श्रोता नहि थाकल,डटल रह्ल, जखन ई दूनू गोटे चाह्लनि तखने कार्यक्रम समाप्त भेल |

एकटा भोजपुरी गीतकार छलाह परशुराम शास्त्री,ओहो सुनैत छलाह, हुनका नै रहल गेलनि, ओ मंचपर चल गेलाह आ रवीन्द्रजीक जीभरि प्रशंसा केलनि |     

स्कूल, कॉलेज, बैंक, शासकीय विभागक बहुत अधिकारी-कर्मचारी आ स्थानीय साहित्यकार आ आनो लोक सभ श्रोतामे छलाह | बहुत गोटे एहि कार्यक्रमक स्थायी प्रशंसक भेलाह आ फेर कहिया हेतै से पुछैत रहैत छलाह |

ओही स्मृतिमे अपन किछु पाँती प्रस्तुत क’ रहल छी :

मोन पड़ैए  आनन्दक बरखा होइ छल

जखन रवीन्द्र-महेन्द्र मंचपर अबै छला

बह’ लगै छल  शीतल  हाबा  गरमीमे

‘चल मिथिलामे चल’जखन ओ गबै छला

जिनका ‘रवीन्द्र-महेन्द्र’कें सुनबाक सौभाग्य भेटल छनि, तिनका ई अतिशयोक्ति नहि लगतनि :

जहिना दिन आ राति सूर्य आ चन्द्र बिना

तहिना गीतक मंच  रवीन्द्र-महेन्द्र  बिना |

जगदीश चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’

पटना / 31.01.2022

 

 

 

 

 

सभटा सोनारकें नहि गढ़बाक कला होइछ

 

    सभटा सोनारकें नहि गढ़बाक कला होइछ

   (गजलक समीक्षा : पोथी ‘लेखनी एक रंग अनेक’)

एकटा समय छल जखन मैथिली गजलक नामपर जे किछु लीखल जा रहल छल तकरा भक्ति-भावसँ लोक ग्रहण करैत जा रहल छल |

समय बदलल |

ओकरा राजनीतिक चश्मासँ देखल जाए लागल |

मुदा रचना स्वस्थ दृष्टिसँ नहि पढल जा रहल छल |

प्रगति भेल अछि |

आब ठीकसँ पढल जा रहल अछि |

ओ गजल अछियो कि नहि सेहो देखल जा रहल अछि |

कोनहु रचनाक सार्थकता सेहो अहीमे अछि जे ओकरा स्वस्थ दृष्टिसँ पढल जाए, ओकर समीक्षा हुए, कमजोर पक्षक आलोचना हुए, नीक पक्षक प्रशंसा हुए | मुदा, सभसँ पहिने त ई देखब जरूरी अछि जे ओ रचना जाहि विधाक लेल लीखल गेल अछि ओकर योग्यता रखैत अछि कि नहि |

मैथिली गजलकें भक्ति-भावसँ अथवा राजनीतिक दृष्टिसँ देखब ओकर उपेक्षा करब  हएत |

जाहि समयमे, मैथिलीमे गजलक व्याकरण उपलब्ध नहि छल, 111 टा रचना ल’ क’ ‘लेखनी एक रंग अनेक’ प्रकाशित भेल छल, ओहि समय ई एकटा स्पष्ट घोषणा छल जे मैथिलीमे गजल अवश्य लीखल जा सकैत अछि | ई एकटा क्रान्ति छल किएक त ओहि समय किछु साहित्यकार कहैत छलाह जे मैथिलीमे गजल लिखले नहि जा सकैत अछि | एहि धारणाक खण्डन  छल ई संग्रह |

रचनाकारक गीते जकाँ तथाकथित किछु शेर सभ लोककें आकर्षित केलक |

शब्द सभमे गीतहि जकाँ वैह मिथिलाक माटि-पानि आ बसातक सुगन्धि !

मिथिला मिहिरमे पढल किछु शेर सभ ह्मरहु बहुत आकर्षित केलक :

‘हम जे मैथिल थिकहुँ से मूर्ख कालिदास सन

 जतय बैसल छी सैह डारि काटि रहल छी’

‘चली जखनसँ सदिखन सोची एखन दहिन की बाम चलै छी

राखू अपने विश्व-नगर भरि, हम त अपना गाम चलै छी’

‘सुखकेर  हो कि दुखक बीतैये घड़ी सभटा

 हो बाँस आ कि बेंतक टुटैये छड़ी सभटा’

एहि संग्रहक रचना सभक जन्म अस्पतालमे भेल छल | अस्पतालसँ बाहर आबि ई शेर सभ दहाड़ मारिक’ चिकरल :

‘गजल मैथिलीक मर्म आब जानि लेने छैक

गजल मिथिलामे घर अपन बान्हि लेने छैक’

जे सभ कहैत छलाह जे मैथिलीमे गजल नहि लिखल जा सकैत छैक, सभ शान्त भ’ गेलाह |

गीतक महाराजक अश्वमेघक घोड़ा निकलि गेल गजलक मैदानमे |

लव-कुशक हाथें पकड़ल गेल घोड़ा |

रामक कृत्यक  सार्थकता सेहो अहीमे अछि जे घोड़ा पकड़ल जाए लव-कुश द्वारा |

अनचिन्हार  आखरक साइटपर गजेन्द्र ठाकुर आ आशीष अनचिन्हार द्वारा गजल शास्त्र एलाक बाद जाँच-पड़ताल हुअ’ लागल जे गजलक नामपर जे किछु लिखा रहल अछि से गजल अछियो कि नहि |

ई पाछाँ मूहें घुसक’ बला बात नहि भेलै |

ई पछिला पीढ़ीक कृत्यकें आगाँ ल’ जेबाक, गौरव प्रदान करबाक,ओकरा परिपूर्ण करबाक, स्वस्थ आ समृद्ध करबाक दिशामे आन्दोलन भेलै |

हमहूँ त भक्ति –भावसँ सभ रचनाकें गजल मानिए नेने रही | अनचिन्हार आखर साइटपर उपलब्ध व्याकरणसँ परिचित भेलाक बाद ई पोथी पढ़ि जे किछु  नीक –बेजाए देखबामे आएल अछि ताहिसँ अवगत करयबाक प्रयास क’ रहल छी :

(1) 109 टा गजलमे    587  टा शेर अछि | एहि संग किछु ‘कतआ’ अछि |

(2) 26 टा बिना रदीफक गजल अछि |  

 ( 3 )  5 टा गजलमे मतलाक अभाव अछि |

    ( गजल क्रमांक 35,42,45,54,90 )

(4)  4 टा गजलमे रदीफ मतलामे अछि मुदा ओकर पालन  सभ शेरमे नहि भेल   

  अछि |

    ( गजल क्रमांक :49,62,81,82 )

 

( 5 ) 9 टा गजलक कयटा शेरमे समान काफियाबला शब्द अछि |

       (गजल क्रमांक :65,68,72,77,89,103,105,107,108)

 ( 6 )10 टा गजलक मतला छोड़ि सभ शेरमे अनुपयुक्त काफियाबला शब्द अछि |

    ( गजल क्रमांक :5,10,11,23,41,43,62,70,83,93 )

(7 ) 7 टा गजलक मतलामे काफिया नियमित नहि अछि |

   ( गजल क्रमांक :48,50,63.99,100,101,106 )

(8)  16 टा गजलक एक अथवा अधिक शेरक काफियाबला शब्द सभ उपयुक्त नहि अछि |

   ( गजल क्रमांक : 15,21,25,29,30,31,46,49,59,75,86,87,88,94,97,109 )

(9)रचना सभ ओहि समय लिखल गेल अछि जखन रचनाकारक पयरमे प्लास्टर पड़ल छलनि, ओ अस्पतालमे छलाह |

(10)भरिसक मैथिली गजलक नामपर एतेक संख्यामे रचनाक ई पहिल संकलन अछि |

(11)कतहु-कतहुसँ किछु गजलक अवलोकनसँ पता चलैत अछि जे बहरक उपेक्षा भेल अछि |

(12) किछुए रचनाकें छोड़िक’ सभक अंतिम दू-पाँतीमे रचनाकारक नाम अछि |

(13)नमहर भूमिका द्वारा पाठककें आतंकित करबाक अथवा रचनाक त्रुटिकें झाँपन देबाक प्रयास नहि कयल गेल अछि, रचना सभमे पाठककें गुद्गुदयबाक, आनन्द प्रदान करबाक आ जीवनक विभिन्न पक्षक रहस्यकें शालीनताक संग प्रस्तुत  करबाक  सामर्थ्य छैक |

उदाहरणस्वरूप किछु पाँती प्रस्तुत कएल जा रहल अछि :

 

‘जतय सभ किछु देखार, जकर सभ किछु नुकैल

गजल गागरमे सागर तमाशा थिकैक’

 

‘मोट मडुआकेर रोटीपर रैंचीकेर साग

गजल जीवन केर स्वादहु ठेकानि लेने छैक’

 

‘मनसँ मनकेर संचार-सेतु ओहि महासेतुकेर नाम गजल

कहलहुँ से गजल, सुनलहुँ से गजल, कहबामे कहू की शेष रहल’

 

‘रवीन्द्र’ प्रेम-पंथी से छंदकार जानथि

किछुए गजल एहन जे पढ़बाले’ होइत अछि’

 

‘रवीन्द्र’ रह-रहाँ एतय होइत अछि एहन

कि जैह क’र मूँह धरी, ताहीमे केस’

 

‘दाग चेहराक हो कि वस्त्रक, सब दाग थिकै दागे

साधूकें छोड़ि चट-पट सब चोरकें धरक चाही’

 

‘औंठा ने कटय ध्यान रहय, एहि बातकेर

कि कोन गुरु केर अहाँ शिष्य बनल छी’

‘अस्मिताक प्रश्न अछि त एक भ’ ‘रवीन्द्र’

प्रगट होइत जाउ जे अदृश्य बनल छी’

 

‘धकियाय आगू गेल जे, बुधियार छल सब लोक से

नाव एखनहुँ अछि हमर, ओहिना पड़ल मझधारमे’ 

 

‘किछुओ ने बचा सकलहुँ किछुओ ने बचा पायब

सूझय ने जाल लेकिन, जंजालमे फसल छी’  

 

‘दर्द अपन गुपचुप सह्बाले होइत अछि

हरेक बात नहि हरेककें कहबाले होइत अछि’

‘आँचर रह्य समेटल,बरु केस रह्य फूजल

किछु बात त चौपेतिक’ धरबाले’ होइत अछि’

 

‘ई बात खानगीमे कहबाक मोन होइछ

बैद्य एहन के जे चीन्हैये जड़ी सबटा’

 

‘बात केर बात अछि त एक बात हम कहि दी

कि बात, बात-बातमे हो, बात से जरूरी नहि’

 

‘गुलाब जलक शीशी भरि, पयर धोइत शोषक

नोरक इन्होरमे नहाइत अछि लोक’

‘गाइयो हँ, बड़दो हँ, एहने व्यवस्थामे

आँटाक सङे घून सन पिसाइत अछि लोक’   

 

(14)संकलनक कोनो रचनामे मैथिलीसँ इतर कोनो आन भाषाक शब्द नहि लेल गेल अछि |एहि दृष्टिसँ ई संकलन मैथिली गजल-लेखन लेल पथ-प्रदर्शकक योग्यता रखैत अछि |मैथिली गजलक बहुमंजिला भवनकक निर्माणमे एहि संकलनक आधारक उपयोग कयल जा सकैत अछि |

प्रकाशनक छत्तीस बरखक बाद एहि संकलनक  समीक्षा कि आलोचनाक प्रस्तुति  एकटा सादर आ सविनय आश्वस्ति अछि जे ‘लेखनी एक रंग अनेक’ पढल गेल अछि, गुनल गेल अछि आ आदरणीय रवीन्द्र नाथ ठाकुर जी द्वारा रोपल गेल गाछ आब फुला रहल अछि |

जगदीश चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’

पटना /  19.02.2022

की ई आलोचना प्रायोजित अछि ?

 

                  की ई आलोचना प्रायोजित अछि ?

       (पोथी आ आलोचनापर पाठकीय प्रतिक्रिया )

 

नवारम्भसं प्रकाशित डा.कमल मोहन ‘चुन्नू’ जीक पोथीक नाम अछि ‘आबि रहल एक हाहि’ |

पोथी हमरा भेटल छल |

उत्सुकता भेल | जहिया हाथमे आएल, ओही राति आरम्भसं पढ़ब आरम्भ केलहुं |

किछु पढलाक बाद आगाँ पढबाक उत्साह नहि रहल |

पढ़ब लंबित रहि गेल |

काल्हि जखन आशीष अनचिन्हारजीक आलोचना पढ़लहुँ  त हमरा लेल ई पोथी अत्यन्त महत्वपूर्ण भ’ गेल | पहिने त पोथीक प्रचारक लेल ई प्रायोजित आलोचना लागल, बादमे आश्चर्य सेहो भेल जे भूमिकाक फोटोकॉपी मंगाय आशीषजी एतेक शीघ्र  विस्तृत आलोचना लीखि लेलनि, मुदा हमरा लग पोथी रहैत हम भूमिको नहि पढ़ि सकलहुं |

एकर दोख हम अपन अवस्थाजन्य अक्षमताकें द’ सकैत छी |

आइ पहिल बेर हमरा  ई अनुभव भेल जे पोथीकें चर्चित बनयबामे ओकर भूमिकाक आलोचनाक की भूमिका होइत छैक |

यैह कारण अछि जे हम पोथीकें ठीकसं  पढ़बाक लेल आकर्षित भेलहुँ | दोसर कारण इहो भ’ सकैत अछि जे दोसरक आलोचनामे सुखक अनुभव करबाक संस्कार हमरहु मोनमे विद्यमान हो |

भूमिकाक आलोचनाक मिलान भूमिकाक आलेखसं करैत गेलहुँ, एहि तरहें सम्पूर्ण भूमिका पढब आसान भ’ भेल | तकर बाद पोथीक रचना  सभ सेहो पढबामे नीक लागल |

आब हम सभटा रचना आ आलोचना पढ़िक’ किछु कहबाक स्थितिमे आएल छी |

आलोचनाकें धारदार बनेबाक लेल किछु शब्दक उपयोग  हमरा अनसोहांत लागल अछि ( छुल-छुल मूतै बला प्रसंग ) |

एहि तरहक शब्द सबहक उपयोगसं सेहो एकटा अस्वस्थ परम्पराक जन्म भ’ सकैत अछि, तें एहिसं बचबाक प्रयास  हमरा आवश्यक लगैत अछि | आलोचनाक  सीमाक अतिक्रमण नहि हो,से ध्यान राखब चाही | एकटा स्वस्थ परम्पराक रक्षाक लेल एकटा अस्वस्थ परम्पराकें जन्म देब कोना उचित कहल जाएत ?

हमरा आलोचनाक सीमा निर्धारित करबाक अधिकार नहि अछि, मुदा एक सामान्य पाठकक रूपमे हमरा लगैत अछि जे आलोचना कबाछु नहि बनबाक चाही |

हम देखलहुं अछि जे पोथीमे रचनाक माध्यमसं  गाम-घर, राज्य, देश आ दुनियामे घटैत बहुत रास सामाजिक,आर्थिक,राजनीतिक घटना सबहक प्रति अपन विचार आ प्रतिक्रिया व्यक्त कएल गेल  अछि |

प्रतिक्रिया व्यक्त करब साहित्यकारक हाथमे छनि, व्यक्त करबाक माध्यम शब्द छै, शब्दक उपयोग विभिन्न विधामे करबाक स्वतंत्रता साहित्यकारकें छनि | एहि स्वतंत्रताक संग ओहि विधाक विधानक पालन करबाक कर्तव्य सेहो साहित्यकारक  छनि | एहि कर्त्तव्यक पालन नहि भेलासं अस्वस्थ परम्पराक जन्म होइत अछि |

साहित्यकार यदि चाहथि जे कर्तव्य पालनक जिम्मेदारी मात्र आन लोक लेल छै, ओ स्वतन्त्र रहताह, त ई उचित नहि कहल जा सकैत अछि |

आइ जे किछु साहित्यमे व्यक्त कएल जा रहल अछि, से पहिनहुं कोनो-ने-कोनो रूपमे व्यक्त कएल जा चुकल अछि |

चिन्तक लोकनि कहैत छथि जे देवता आ दानवक संग्राम अनवरत चलैत आबि  रहल अछि | रामायण,महाभारत आ आनो धर्म ग्रन्थ द्वारा विभिन्न रूपमे सम्वेदना प्रगट कएल गेल अछि | पछिला सय दू सय बरखमे सेहो हजारो साहित्यिक कृति द्वारा  भिन्न-भिन्न तरहें प्रतिक्रिया आ सम्वेदना व्यक्त कएल गेल अछि आ एखनो कएल जा रहल अछि |

प्रतिक्रिया आ सम्वेदना व्यक्त करबाक अनेक माध्यम अछि, मुख्य दूटा माध्यम अछि-गद्य आ पद्य | गद्यमे निबन्ध, कथा,लघुकथा,बीहनि कथा, उपन्यास,नाटक,संस्मरण,जीवनी,  आत्मकथा आदि मुख्य अछि, तहिना पद्यमे कविता,दोहा,मुक्तक,हाइकू,गीत,गजल,खण्ड काव्य,महाकाव्य आदि मुख्य अछि | सभ विधाक अपन-अपन  विशेषता छै | अही विशेषताक कारण ओइ विधाक अस्तित्व छैक |

गजल विधा सेहो अपन किछु खास विशेषताक कारण अस्तित्वमे   अछि, काफिया आ बहर अनिवार्य अंग अछि गजलक | रदीफ़ अनिवार्य नहि अछि |

रदीफ़ हो त केहेन हो,काफिया आ बहरक आयोजन कोना हो, से किछु अवधिक अभ्याससं सीखल जा सकैत अछि | सौभाग्यक बात अछि जे  एहि सम्बन्धमे पर्याप्त जानकारी नेट पर  उपलब्ध अछि जे  गजलक व्याकरणक गहन अध्ययनक बाद सबहक उपयोग लेल प्रस्तुत कएल गेल अछि |

ओना अपन अनुभवसं हम जनैत छी जे सुनि-सुनिक’, पढ़ि-पढ़िक’ बहुत गोटे रदीफ़ आ कफियाक विषयमे किछु-किछु जान’ लगैत छथि आ लिखनाइ शुरू क’ दैत छथि |

रदीफ़ चुनबामे त कष्ट नै होइत छनि, कारण समान शब्द अथवा शब्द-समूहक आवृति पहिल शेरक दुनू पांतीक अन्तमे आ बादक प्रत्येक शेरक दोसर पांतीक अन्तमे  होइत छैक |

सभ शेरमे काफियाक मिलान ठीक रखबामे गजलक व्याकरणक  जानकारी आ अभ्यासक आवश्यकता होइत छैक | एत’ अबैत-अबैत बहुत लोक थाकि जाइत छथि  आ बहर संतुलित रखबाक बेरमे असंतुलित भ’ जाइत छथि  अथवा ओतबेकें पूर्ण मानबापर आ मनयबापर  अड़ि जाइत छथि |

दुष्यन्त कुमार जीक एकटा शेरक एक पांती  छनि :

‘यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ’

व्याकरणक ज्ञान आ निरंतर अभ्यास एकर एकमात्र समाधान अछि |

जे सभ कहैत छथि जे हम विचारकें प्रधानता दैत छी,ओहो सभ   रदीफ़ आ काफियाक पालन त अवश्य करय चाहैत छथि कारण तखने रचना ‘गजल जकाँ’ लाग’ लगैत छै, मुदा रचनाकें गजल बनबामे बहरक खगता रहिए जाइत छैक | 

अहू संकलनमे  देखलहुँ अछि जे रदीफ़ आ काफियाक निर्वाह करबाक प्रयास कएल गेल अछि |

किछु गजलमे सभ शेरमे काफियाक निर्वाह करैत काल गंभीरताक अथवा धैर्यक अभाव दृष्टिगोचर होइत अछि |

बहरक पालन लेल सेहो प्रयास भेल अछि, मुदा समयक  अभावक कारण ओकरा प्रति गम्भीरता नहि राखल गेल अछि | जत’ ओहि लेल उपयुक्त शब्द तकबामे किछु समय आवश्यक छलै, ओत’ समय देबाक बदला रचनाकार आगू बढि गेल छथि किछु और बात कह्बाक लेल |

एक बैसकीमे एकटा गजल लीखिक’ उठब यदि लक्ष्य हो त गजलक संग न्याय नहि क’ सकबाक  संभावना अधिक भ’ जाइत छैक |

पोथीक भूमिका कहैत अछि जे गजलक वैधानिकता आ वैचारिकतापर आश्रित दूटा सम्प्रदायमे एक सम्प्रदाय विचारक स्वास्थ्यक बिना परवाह केने गजलक व्याकरण-विधानकें अक्षुण्ण रखबाक समर्थक अछि, दोसर सम्प्रदाय गजलक माध्यमसं अपन बात-विचार कहबाक समर्थक अछि |

एहि उक्तिक सोझ अर्थ ई अछि जे किछु गोटे  गजलक व्याकरणकें पूर्णतः मानैत अपन बात कहैत छथि,मुदा बात दमगर नै रहि जाइत छनि ; दोसर दिस किछु गोटे गजलक व्याकरणकें आंशिक रुपें मानैत दमगर बात कहैत छथि |

 मतलब गजलक व्याकरणकें आंशिक रूपें मानैत कएल गेल रचनाकें गजल कहबाक आ ओकर स्वीकृति पयबाक आग्रह अछि | एकरा और सरल करी त ई कहल गेल अछि जे रदीफ़ रहित अथवा रदीफ़ सहित सभ शेरमे शुद्ध अथवा अशुद्ध काफिया बला रचनाकें गजल मानू |

एत’ प्रश्न ई उठैत छैक जे दूटा अनिवार्य अंगमे एकटाकें मानू, दोसरकें नै मानू, एकटा राखू,दोसर नै राखू, एहेन रचनाकें गजल कहबाक जिद्दे किएक ?

विचारणीय बात ई अछि जे कोनो विधामे रचना करैत काल ओहि विधाक व्याकरणक प्रति गम्भीरताक अभाव ओहि विधाकें कोना स्वस्थ राखि सकैत अछि ?

पोथीक एक पृष्ठपर जाहि रचनाकार सबहक प्रति आभार प्रगट कएल गेल अछि, ओहो सभ कतहु-ने-कतहु एहि अनियमितताक लेल दोखी मानल जा सकैत छथि |

हम अपन दोखक चर्च करब आवश्यक बुझैत छी | हम एकटा गजलक प्रथम शेरक दुनू पांतीमे गजल लेखनमे परस्पर विरोधी दू तरहक विचारकें व्यक्त केने छी :

एक पांतीमे एकटा विचार अछि किछु रचनाकारक जे बहरक झंझटसं मुक्ति चाहैत छथि, दोसर पांतीमे गजलक विचार अछि, जे अपन बरबादी नै देखय चाहैत अछि | हम कतहु अपने गजल कहैत काल ई बात कहि दैत छी, मुदा क्यो पढैत छथि त भ्रम होइत छनि जे हमहूँ गजलमे बहरक पालन करबाक विरोध करैत छी | ओ शेर अछि :

बहरक झंझटिसं हमरा आजाद करू

हम गजल छी, हमरा नै बरबाद  करू

ई शेर स्थापित सरल वार्णिक बहरमे रचल गजलक अछि |

विभिन्न प्रकारक बहरक जानकारी आवश्यक अछि गजल लेखनक लेल | 

ओना हमहूँ एखन सीखिए रहल छी, एखनहु गलती करैत छी आ मानैत छी जे गलती भेल अछि, ओहिमे सुधारक प्रयास करैत छी | विचारमे  हम स्वच्छ दुनियाँ चाहैत छी त अपन रचनामे सेहो स्वच्छता सुनिश्चित करबामे कोताही किएक ? यदि हमर रचना गजल कहयबाक योग्यता नहि रखैत अछि त ओकरा गजल कहबाक जिद्द्क की प्रयोजन ? गीत कहब,कविता कहब |

किछु गोटेक मत ई भ’ सकैत छनि जे रचनाकार आगू-आगू  चलताह  आ व्याकरण पाछू-पाछू अथवा इहो कहल जा सकैत अछि जे साहित्यमे सेहो लोकतन्त्र हेबाक चाही आ बेशी लोक जेना चाहैत छथि तकरे आधार अथवा तकरे सही मानल जाए, तखन जे साहित्यिक अराजकताक स्थिति उत्पन्न हएत तकर की करब ?

आम जीवनमे हत्या अथवा शीलहरणकें अपराध मानल जाइत अछि | गजलमे बहरक अनिवार्यताकें नष्ट करबाक जोर-जबरदस्तीक क्रियाकें गजल विधाक शीलहरणक प्रयास नहि त आर की कहल जा  सकैत अछि ?

 जगदीश चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’/ पटना / 7.12.2021