गीत
एसगर कहाँ रहै छी
हम |
रंग विरंगक पोथी –पतरा संग रहय हरदम
एसगर कहाँ रहै छी हम |
हँसै-बजै छी गप्प करै छी पोथी सबहक संग
जे सुख आ आनन्द दैत अछि मनमे भरय उमंग
बिना झालि-ढोलक-हरमुनियाँ मोन करय बम-बम
सूतल कहाँ रहै छी हम |
पोथी संगे भोरे-भोरे घूमि अबै छी गाम
देखि अबै छी फड़ल गाछमे जामुन-आम-लताम
मधुर-मधुर शब्दक गाछी गमकैए गम-गम
भूखल कहाँ रहै छी हम |
कखनो घूमी बाध-बोन आ देखी खेत-पथार
डेन पकड़ि देखबैए पोथी पोखरि-धार-इनार
प्रकृति कल्पना केर जगतमे नाचि रहल छम-छम
रूसल कहाँ रहै छी हम |
दर्शन दै छथि पोथी सभमे ग्यानी-ध्यानी लोक
जे हरि लै छथि सभटा पीड़ा सभ चिन्ता सभ शोक
मातु-पिता-गुरु-बन्धु-मित्र सभहक देखी संगम
टूटल कहाँ रहै छी हम |
ज्ञानक गंगामे पोथी सभ करबय नित असनान
गीत गजल कविता आ कथा सभ लागय तीर्थ समान
पोथीमे देखी मानवता केर दृश्य अनुपम
बैसल कहाँ रहै छी
हम |
No comments:
Post a Comment