Friday, 9 March 2018

रास रचलक ई दुनिया हमर दुनिया

गजल
रास रचलक ई दुनिया, हमर दुनिया
गीत गजलक ई दुनिया, हमर दुनिया

शांति तकलक ई दुनिया, हमर दुनिया
फूल कमलक ई दुनिया, हमर दुनिया

लोक सूतल जे छल भांग खाक’ बहुत
नाक दबलक ई दुनिया, हमर दुनिया

लोक जागल जे छल नाचमे बाझल
नाम गनलक ई दुनिया, हमर दुनिया

लोक टूटल जे छल भीड़मे  छूटल
ताकि अनलक ई दुनिया, हमर दुनिया

लोक करजामे डूबल हजारो जत’
हाल जनलक ई दुनिया, हमर दुनिया

लोक भागल जे छल रूसि कय गामसं
नेह बँटलक ई दुनिया, हमर दुनिया

( मात्रा-क्रम : 21222-221222)

(तेसर शेरमे दू टा लघुकें दीर्घ मानल गेल)






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बेर-बेर बौआ खसै छी किए

गजल

बेर-बेर   बौआ खसै छी किए
अहाँ धडफडायल चलै छी किए


अहाँ चुप्प र’हू  कोनो बात नै
अहाँ रातिकें दिन कहै छी किए


‘सरस’‘चन्द्रमणि’कि ‘रवीन्द्र’क सुनाउ
अहाँ भोजपूरी गबै छी किए


छुबि कान देखू हकमै किए छी
कौआके पाछाँ भगै छी किए


सूतल जे मन अछि तकरा जगाबी
अनकासं तुलना करै छी किए


संतान  छी  हम  परमात्माकेर
तखन मृत्युसं हम डरै छी किए

(मात्रा क्रम :222222222)
1.दूटा अलग-अलग लघुकें एक दीर्घ
मानल गेल अछि |
2.पांचम शेरमे ‘जे’आ ‘सं’ कें क्रमशः

लघु आ दीर्घमे गिनती कैल गेल अछि |

फुनगीपरसं खसलाक बाद

गजल

फुनगीपरसं  खसलाक बाद और  हाथ-पैर  टूटलाक बाद
लोक मुरती  बनाओत अहांकेर  चितापर   चढलाक बाद


कियो नै करत अहाँक कहल मुदा फूल चढ़ाएत  मुरतीपर
क्यो लागि जाएत मुरती  तोडबामे  मुरती बनलाक  बाद


के चीन्हत आब अहाँ जी एम छलहुँ आ कि डी एस पी
लोक भ’ जाइए ग्राहक कि मरीज कुरसीसं उतरलाक बाद


बड़ी  काल  धरि  एसगरमे  करैत रही साहोर ! साहोर !!
भाइ  आब  मोन  लगैए हल्लुक तूफानसं गुजरलाक बाद


सुख  भेटि सकैए किछु  कालले’ पहाड़पर  अथवा जंगलमे
मुदा आनन्द भेटत अपन  गाम अपन घ’र पहुँचलाक बाद


गम-गम कर’ लगैछै सभटा घ’र आंगन टोल गाम आ शहर
गाछी  सभ  लाग’ लगैछै  सोहनगर  आम मजरलाक बाद


सजबैत  रहू  अपनाकें  सभदिन  पवित्रताक  आभूषणसं
गाछी सभ लाग’ लगैछै बड भुताहि आम झखडलाक बाद


विधान छै कनियाँक लेल महफाक  ओहारक आ कहारक
गजलो बनैछ गजल काफिया आ बहरमे  उतरलाक बाद

(मात्रा क्रम : 2222  2222  2222  2222)

दूटा अलग-अलग लघुकें एक दीर्घ मानल गेल अछि | 

Thursday, 8 March 2018

बियाहमे एतेक हंगामा मचाएब कोन जरूरी छै

गजल

बियाहमे    एतेक    हंगामा   मचाएब       कोन   जरूरी  छै
सय   गोटेकें   बरियातीमे   ल'क'  जाएब   कोन  जरूरी छै


कोंचि-कोंचिक' खुआएब रहु माँछक मूड़ा  अथवा रसगुल्ला
आ रातिमे जनउ-सुपारी पकड़ाएब            कोन जरूरी छै


कोन   जरूरी   छै    सत्ताइसटा  तडुआ        और   तरकारी
सबहक पातपर ओतेक अन्न छुटाएब        कोन जरूरी छै


ई   भोमाशंख   दर्जन   के  दर्जन  फटक्का     आ आर्केस्ट्रा
एहि     हुड़दंग   परम्पराकें   अपनाएब       कोन जरूरी छै


बचबियौ  दाइ  माइक  मूँहक  डहकन  सोहर आ समदाउन
डीजेके  धुनपर   नाचब   और     नचाएब     कोन जरूरी छै


जरूरी अछि कहुना बचाक' राखब    पवित्रताक संस्कृतिकें
साल भरि कन्यागतकें कबाछु लगाएब      कोन जरूरी छै


'अनिल' नेटपर परसि दियौ सभटा जे लिखने छी,लीखै छी
ब्लॉग केर युगमे आब किताब छपाएब      कोन जरूरी छै

(मात्रा क्रम : 2222  2222  2222  2222)
अलग-अलग दूटा लघुकें एकटा दीर्घ मानल गेल अछि ।

कानमे तूर धेने अछि लोक गजल की कहबै

गजल

कानमे तूर   धेने  अछि   लोक  गजल की कहबै
लगैए  भांग  खेने  अछि  लोक गजल की कहबै


बरियातीकें   चाही   खाली   रहु  माँछक   मूड़ा
पिबैले' जान  देने अछि  लोक गजल  की कहबै


छै   बलडप्रेशर    डायबिटीज   और    बबासीर
भोजले'   मूँह  बेने अछि लोक  गजल की कहबै


खुट्टा त  गड़तै  ओही  ठाम  जत'  हम कहै छियै
एकेटा  सुर  धेने  अछि लोक  गजल  की  कहबै


ढेपाक   जबाब   पाथरसं   देबाक  चलन   गेलै
जेबीमे  बम  नेने  अछि  लोक  गजल की कहबै


चाही   सभकें   जाड़मे  रौद,  गरमीमे    बसात
खिड़कीए बन्द केने अछि लोक गजल की कहबै

( मात्रा क्रम : 2 2 2 2  2 2 2 2 2 2 2 2 2)
दू टा अलग-अलग लघुकें दीर्घ मानल गेल अछि

दीनता अशिक्षा और अन्हार अछि मिथिलामे

 गजल


दीनता अशिक्षा और अन्हार अछि मिथिलामे
अनगिनती  नोरक  टघार  अछि मिथिलामे


गाम बहुत अछि बिला  गेल कोसीक बाढ़िमे
अनगिनती सूखल  इनार  अछि  मिथिलामे


अल्हुआ  मडुआ आ बिसाँढ एखनहु  खेबाले’
सुतबाले’ एखनहु  पुआर  अछि  मिथिलामे


गाम  छोड़िक’ लोक  भगैए  दिल्ली  मुंबई
किछुए अनार लाखो बिमार अछि मिथिलामे


कतेक   योजना   शापित   एखनहु   जहां-तहां
एखनहु   रामक   इंतिजार   अछि   मिथिलामे


कोन   कृष्ण  कहिया  एथिन  से के जानय
दुख केर गोबर्धन पहाड़ अछि अछि मिथिलामे
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दिन के दिन बजबोमे छै बड़का झंझट

गजल

दिन के दिन बजबोमे छै बड़का झंझट
और  चुप्प  रहबोमे छै बड़का  झंझट

कहथि पिता भरि राति पानिमे ठाढ़ रहू
एत्ते  दुख  सहबोमे  छै  बड़का झंझट

सबहक तील चाउर खा’ सोचथि नेताजी
पांच  साल  बहबोमे छै बड़का झंझट

ओ पच्छिमकें पूब कहथि अहूँ ‘हं’ कहियौ
संग हुनक चलबोमे छै बड़का झंझट

दान दक्षिणा जप तप दंड-प्रणाम करू
कतहु शिष्य बनबोमे छै बड़का झंझट

सभ चाहै छथि घर बनितै किछु नव ढंगक   
आ पुरना  ढह्बोमे  छै बड़का  झंझट

बहर काफिया और रदीफ मिलान करू
भाइ गजल कहबोमे  छै बड़का झंझट

( मात्रा क्रम :2222 2222 222)
दू टा अलग-अलग लघुकें एक
दीर्घ मानल गेल अछि.       

अपन नाम परिचय आ घर त्यागि क' हम

गजल

अपन नाम परिचय आ घर त्यागिक’ हम
कहू  की  सोचै  छी  एत’  आबिक’ हम


सभठाँ   अहाँकेर   संगे   छी    हमहूँ
आब जायब कतयसं कतय   भागिक’ हम


ओ सभ गाछ ब’रक  सुखा गेल असमय
त सुस्ताएब जा कय कतय थाकिक’ हम


सत बात  बाजी  से  होइछ  सिहन्ता
से चुप छी अहाँ  केर मुंह ताकिक’ हम


सपनेमे  देखल   करब  हम   अहाँकें
निकलि जाएब भोरे गजल गाबिक’ हम

(मात्रा क्रम : 2222 2222 22
दू टा अलग-अलग लघुकें एक दीर्घ मानल गेल अछि |