गजल
दिन के दिन बजबोमे छै बड़का झंझट
और चुप्प रहबोमे छै बड़का झंझट
कहथि पिता भरि राति पानिमे ठाढ़ रहू
एत्ते दुख सहबोमे छै
बड़का झंझट
सबहक तील चाउर खा’ सोचथि नेताजी
पांच साल बहबोमे छै बड़का झंझट
ओ पच्छिमकें पूब कहथि अहूँ ‘हं’ कहियौ
संग हुनक चलबोमे छै बड़का झंझट
दान दक्षिणा जप तप दंड-प्रणाम करू
कतहु शिष्य बनबोमे छै बड़का झंझट
सभ चाहै छथि घर बनितै किछु नव ढंगक
आ पुरना ढह्बोमे छै बड़का झंझट
बहर काफिया और रदीफ मिलान करू
भाइ गजल कहबोमे छै
बड़का झंझट
( मात्रा
क्रम :2222 2222 222)
दू टा अलग-अलग लघुकें एक
दीर्घ मानल गेल अछि.
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