Friday, 9 March 2018

फुनगीपरसं खसलाक बाद

गजल

फुनगीपरसं  खसलाक बाद और  हाथ-पैर  टूटलाक बाद
लोक मुरती  बनाओत अहांकेर  चितापर   चढलाक बाद


कियो नै करत अहाँक कहल मुदा फूल चढ़ाएत  मुरतीपर
क्यो लागि जाएत मुरती  तोडबामे  मुरती बनलाक  बाद


के चीन्हत आब अहाँ जी एम छलहुँ आ कि डी एस पी
लोक भ’ जाइए ग्राहक कि मरीज कुरसीसं उतरलाक बाद


बड़ी  काल  धरि  एसगरमे  करैत रही साहोर ! साहोर !!
भाइ  आब  मोन  लगैए हल्लुक तूफानसं गुजरलाक बाद


सुख  भेटि सकैए किछु  कालले’ पहाड़पर  अथवा जंगलमे
मुदा आनन्द भेटत अपन  गाम अपन घ’र पहुँचलाक बाद


गम-गम कर’ लगैछै सभटा घ’र आंगन टोल गाम आ शहर
गाछी  सभ  लाग’ लगैछै  सोहनगर  आम मजरलाक बाद


सजबैत  रहू  अपनाकें  सभदिन  पवित्रताक  आभूषणसं
गाछी सभ लाग’ लगैछै बड भुताहि आम झखडलाक बाद


विधान छै कनियाँक लेल महफाक  ओहारक आ कहारक
गजलो बनैछ गजल काफिया आ बहरमे  उतरलाक बाद

(मात्रा क्रम : 2222  2222  2222  2222)

दूटा अलग-अलग लघुकें एक दीर्घ मानल गेल अछि | 

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