आत्मकथाक ई भाग इन्टरनेट पत्रिका ‘विदेह’क अंक 324 (15.6.2021) मे प्रकाशित भेल छल.
आँखिमे चित्र हो
मैथिली केर
(
आत्मकथा )
14. समस्या आ समाधान : कल्पना
आ यथार्थ
ढोलीसँ गाम जाइत काल दरभंगामे
टैक्सी स्टैंड पर भेटलाह रामपट्टीक आर के
रमण जी | हुनकासँ किछु गीत सुनने रही आर
के कॉलेज, मधुबनीमे भेल विद्यापति पर्वमे | बहुत नीक लागल रहय | हुनकासँ गप भेल |
हुनको दरभंगासँ मधुबनीबला टैक्सी पकड़बाक रहनि | रस्तामे हुनका जना देलियनि जे
हमहूँ लिखै छी |
‘कोनो रचना संगमे
अछि ?’
ओ पुछ्लनि |
हम हुनका एकटा रचना देख’ देलियनि | कविता रहै ‘रूपांतरण’|
ओ कहलनि, हम ई राखि लै छी, वैदेहीक अगिला अंकमे छपि जाएत (आदरणीय
सोमदेवजी छलाह ‘वैदेही’क सम्पादक)| पुछ्लनि, और की लिखै छी, त कहलियनि जे एखन किछु
गीत सेहो लीखि रहल छी | ओ कहलनि
फल्लाँ तारीक क’ कोइलखमे विद्यापति पर्व
मनाओल जेतै, अहूँ आउ, किछु और साहित्यकार सभसँ
परिचय हैत |
कोइलख गेलहुँ | नीक लागल | मधुपजी, किरणजी, सोमदेवजीकें सेहो देखलियनि | पहिल बेर हुनका सभसँ कविता
सुनबाक अवसर भेटल छल, से बड्ड नीक लागल | हमरो काव्य पाठ लेल प्रस्तुत कएल गेल |
दूटा रचना सुनौलियनि |
श्रोता सबहक प्रतिक्रिया आ साहित्यकार लोकनिक आशीषसँ हमर उत्साहवर्धन भेल |
तकर बाद रामपट्टी, कथवार आ रहिका सेहो विद्यापति पर्वमे भाग लेलहुँ |
कमलाकान्तजी, ‘अकेला’ जी, शंकपियाजी, प्रदीपजी
आ प्रवासी साहित्यालंकारजीसँ सेहो
परिचय भेल | रहिकामे आदरणीय रवीन्द्रजी आ उदय चन्द्र झा ‘विनोद’जीसँ परिचय भेल |
एकठाम एकटा गीत प्रस्तुत केने रही जकर अंतिम पाँती ई रहै :
‘दुख केर इ राति बौआ बीतत
अबस्से, असरा गरीबक भगवान रे, जुनि कान रे बौआ जुनि कान रे |’
आर के रमणजी कहलनि जे ‘असरा गरीबक भगवान रे’ के बदला ‘जहिया तों हेबही जुआन
रे’ हमरा बेशी नीक लगैत | गीत एना अछि :
जुनि कान जुनि कान जुनि कान रे
बौआ जुनि कान रे |
नै तँ कौआ ल’ जेतौ तोहर कान रे || बौआ .......
खा ले जल्दी, सूति रह चुप-चाप
नहि तँ
भकौआँ धरतौ,
सुनहिन हे जंगलमे गीदड़ बजै छै
टाङ पकड़ि
ल’ जेतौ
एतौ लकड़सुंघा धोकड़ीमे कसिक’
नेने चल जेतौ अपन गाम रे |......
काल्हि अबै छै बौआके बाबू
नेने कते बस्तुनमा
हमरा बौआ ले’ अंगा - टोपी
रंग-विरंगक खेलौना
सायकिल के घंटी बौआ टुनटुन बजेतै
देखि जुड़ायत
हमर प्राण रे | .....
बुचिया रधिया बड़ बदमास’छि
बौआ हमर बुधियार
भोरे बौआक बाबाकें कहिक’
मङबा देबै कुसियार
काल्हि खन नानीक गामसँ
अबै छै,
चङेरा भरल पूरी -पकवान रे | .....
भोरे बौआले’ भानस
करबै
भात- दालि- तरकारी
बुचियाकें कनिञो नै
देबै
बौआकें भरि थारी
दुखकेर ई राति बौआ बीतत अबस्से
असरा गरीबक भगवान रे |
....
1978 मे प्रकाशित
गीत-संग्रह ‘तोरा अङनामे’क पृष्ठ चारि आ
पाँचपर ई गीत छपल अछि | इन्टरनेट पत्रिका ‘विदेह’क साइटपर सेहो ई पोथी उपलब्ध अछि
|
10.05.2021 क’ यू-ट्युब पर
‘नीलम मैथिली’ द्वारा अशोक चंचल जीक स्वरमे ई गीत प्रस्तुत कयल गेल अछि जाहिमे
‘वस्तुनमा’क स्थानपर ‘वस्तुनामा’ कहल गेल अछि, जे ठीक नै लागि रहल छै | विडियो
तैयार करबा काल प्रस्तुतकर्ता आ गायक दुनू गोटेकें मूल गीतक शब्दक शुद्ध उच्चारण
सुनिश्चित करबाक चाहियनि |
एहि प्रस्तुतिमे एकटा और त्रुटि भेल अछि जे गीतकारक नाम रवीन्द्र नाथ
ठाकुर अंकित अछि | हमरा द्वारा सुचित केलापर एकठाम त सुधार कयल गेलै, मुदा फ्रंट
पर एखनो सुधार बाँकी अछि | आब दुनू नाम आबि रहल अछि | आदरणीय रवीन्द्र नाथ ठाकुर
जी मैथिलीक सर्वश्रेष्ठ गीतकार छथि |
लोकप्रियताक लेल हुनक नामक उपयोग हुनक सहमतिक बिना नहि कयल जेबाक चाही |
आर के रमणजीक एकटा गीत ‘अहाँकेर
इजोरिया कहाँ हम मँगै छी, अन्हारोमे हमरो जीब’ त दीय’..... बहुत नीक लागल रहय |
प्रवासी साहित्यालंकारजीक ‘अन्नपूर्णा’
सेहो सभकें बहुत नीक लागल रहनि | प्रदीपजीक
कयटा गीत बहुत लोकप्रिय भेल छलनि |
रहिकामे कवि सम्मेलन खूब नीक होइत छलैक
| रवीन्द्रजी पहिने कवि सम्मलेनमे सुन्दर
कविता अथवा गीत प्रस्तुत करैत
छलाह, सांस्कृतिक कार्यक्रममे एसगर अथवा महेन्द्र झा जीक संग
रंग-विरंगक मनोरंजक गीत प्रस्तुत करैत छलाह
जे लोककें तीन-तीन घंटा धरि मुग्ध केने रहैत छल |
रहिकाक कार्यक्रमक विशेषता ई छलै
जे सांस्कृतिक कार्यक्रमसँ
कवि-सम्मेलन प्रभावित नहि होइत
छलैक | बड़ी-बड़ी राति धरि लोक कवि सम्मेलनक आनन्द लैत रहैत छल | आदरणीय उदय चन्द्र
झा ‘विनोद’ जीक देख-रेखमे कवि-सम्मेलनक
आयोजन होइत छलै, जे अपने त खूब सुन्दर कविता प्रस्तुत करिते छलाह, अन्त धरि
कवि-सम्मेलनकें आकर्षक बनबौने रहैत छलाह |
आदरणीय सुमनजी, किरणजी,मनिपद्मजी, अमरजी, सोमदेवजी, मायानन्द बाबू, विनोदजी,
रवीन्द्र जी, अर्जुन कविराज आदि कविक
कविता लोककें भाव-विभोर क’ दैत छलैक |
हमरा एहि मंचसँ बहुत किछु सिखबाक अवसर भेटल | आदरणीय रवीन्द्र जीसँ नीक जकाँ गप भेल | कहने छलाह जे रचनाकारकें
प्रतिदिन कम-सँ -कम एकटा रचना करबाक चाही | यदि कोनो गीतकार प्रतिदिन एकटा गीत
लिखैए त सालमे तीन सय पैसठिटा गीत भेलै | एहिमे यदि तीन सय रचनाकें ठीक नै मानैत
छी आ ओकरा फाड़िक’ फेकियो दैत छी तैयो पैंसठिटा
त नीक रचना अवश्य हैत | जँ दस साल ई क्रम
चलल त छ सय पचासटा रचना त नीक हैत, एतबो पर्याप्त छै | सुझाव त नीक लागल, मुदा एकर
क्रियान्वयन नहि कयल भेल |
आदरणीय सोमदेवजी, विनोद जीसँ सेहो मार्ग-दर्शन प्राप्त भेल |
हमर लेखन कार्य बढल |
किछु दिनक बाद सासुर (लदारी)मे कलिगामक मनोजानंद झा जीसँ भेंट भेल |
हुनको सासुर ओतहि छलनि, ओही टोलमे | हमरासँ पहिने हुनकर विवाह भेल छलनि | ओहि समयमे हुनकर
गिनती सभसँ नीक जमाएक रूपमे होइ छलनि |
हमहूँ हुनक बहुत प्रशंसा सुनने रही | भेंट भेल त नीक लागल |
सम्बन्धक अनुसार हम सभ साढ़ू नै छलहुँ, किन्तु एकहि ठाम सासुर छल,तें हम
सभ साढ़ूएक संबोधन चुनलहुँ |
हुनका हमर गीत लेखन द’ बुझल छलनि, हमरा हुनक फिल्म-जगतमे अपन जीवन तलाश
करबाक प्रयासक विषयमे सूनल छल |
बड़ी काल गप भेल | कय बेर गप भेल | हुनका साहित्यिक विषय पर चर्चा नीक
लगैत छलनि, से हमरो नीक लगैत छल |
एक दिन दूनू गोटे साइकिलसँ दरभंगा गेलहुँ |
बस स्टैंड लग आर के रमण जी भेटि गेलाह, रिक्शासँ कतहु जा रहल छलाह | झाजीसँ परिचय करौलियनि | रमणजी कहलनि, सासुर
घुरबासँ पहिने एकटा कविता हमर पत्रिका (
मिथिला टाइम्स ) लेल हमर कार्यालय (अजय छात्रावास)मे छोड़ने जाएब |
रमनजी त आगू निकलि गेलाह, हम मुश्किलमे पड़ि गेलहुँ | एकटा कविता तुरन्त
लीखू, साफ़ कागजपर उतारू आ अजय छात्रावास जाक’ जमा क’ आउ, ई काज हमरा लेल बहुत
कठिन लागल | पहिनेसँ कोनो कविता लीखल नहि छल जे वैह द’ दितियंनि आ
गीत त हुनका पत्रिका जोगर हमरा लग नहि छल
|
झाजी कहलनि, हुनका भरोस छलनि, तें अहाँकें कहलनि, आब एकरा पूरा हेबाक छै,
चलू कोनो होटलमे चाह पिबैत छी आ तकर बाद भ’ सकै छै अहाँकें लिखबाक प्रेरणा भेटि
जाय |
लहेरियासराय टावर चौक लग कोनो होटलमे बैसलहुँ | दू ताव कागज बगलक
स्टेशनरी दोकानसँ अनलहुँ | एक कोनमे खाली टेबुल छलै | हमरा ओहि कोनमे
बैसाक’ झाजी दूरक टेबुल लग चल गेलाह आ दू टा चाहक आदेश द’ देलखिन |
हम कलम नेने कागज दिस थोड़े काल
तकैत रहलहुँ | हमर परीक्षा छल | हमरा बूझल छल जे कम्युनिस्ट पार्टीक पत्रिका छै |
विषयक लेल मंथन केलहुँ | किछु-किछु लिखाय लागल | आगू बढैत गेलहुँ | थोड़े काल लेल
लागल जे हम एसगर ओत’ छी, और कियो नै छै |
एक बेर फेर चाह आएल |
लिखनाइ चालू छल | एकठाम आबि रुकल
|
एक घंटा बीति चुकल छलै | हमरा आब एकरा संक्षिप्त क’ क’ दोसर कागजपर उतारबाक
छल |
झाजी फेर किछु मंगयबाक लेल पुछलनि | मना क’ देलियनि |
हम जहाँ ठाढ़ भेलहुँ त झाजी
कहलनि, आउ हिनकासँ परिचय कराबी |
झाजी एते कालसँ एक गोटेसँ गप करैत छलाह जे एकटा हिन्दीक पत्रिका
‘पूर्वांचल’ निकालैत छलाह |
ओ अपन परिचय दैत हमरासँ एकटा
हिन्दी कविताक मांग केलनि ‘पूर्वांचल’ लेल | हम कहलियनि जे हम मैथिलीमे लिखैत छी त
ओ कहलनि, एकहुटा त अवश्य लिखने हेबै, हमरा केह्नो कविता देब, चलतै |
हमरा लागल जे झाजी हमर प्रशंसा क’ देने हेथिन तें हुनका भरोस भ’ गेल छनि
जे हम जे देबनि से ठीके हेतै |
हम बहुत पहिने एकेटा तुकबन्दी बला कविता हिन्दीमे लिखने रही, सेहो एखन
पूरा मोन नै छल |
फेर कनी काल बैसलहुँ |लीख’ लगलहुँ
त मोन पड़ैत गेल | हुनका द’ देलियंनि | हमर ढोली छात्रावास
बला पता ल’ क’ ओ प्रस्थान केलनि | हमहूँ सभ बिदा भेलहुँ | अजय छात्रावासमे मिथिला
टाइम्सक कोठली बन्द छलै |
केबारक नीचाँ द’ क’ कोठलीमे
राखिक’ हम सभ विदा भ’ गेलहुँ |
दोसर दिन झाजीक संग फेर बैसार भेल आ आजुक प्रसंगपर बड़ी काल गप भेल |
झाजी फिल्ममे अवसरक तलाशमे छलाह,
कहलनि जे फिल्ममे विविध तरहक गीतक उपयोग होइत छै, मैथिलीयोमे एहेन रचना सभ हेबाक
चाही जे काल्हि मैथिली फिल्म बन’ लगै त ओहि लेल रचना सभ उपलब्ध होइ, एहि लेल और
रवीन्द्र नाथ ठाकुरक आवश्यकता हेतैक |
झाजी हमरा कयटा विषय द’ देलनि गीत रचनाक लेल : गीत जेहेन मुकेश गबै छथि,
जेहेन लता आ रफ़ी गबैत छथि, प्रेमक गीत,
मिलन आ बिछुड़नक गीत |
दुनू गोटे अपन-अपन गामक बाट
धेलहुँ |
गाम त आबि गेलहुँ, मुदा मनोज बाबूक देल विषय सब रहि-रहिक’ स्मृतिमे आबि
जाइत छल | कालान्तरमे किछु गीत हुनक देल विषय आ परिस्थितिकें ध्यानमे रखैत लिखा
गेल, मुदा हुनकासँ व्यक्तिगत रुपमे कोनो नियमित सम्पर्क नहि बनल रहल |
हुनकासँ पहिल भेंट अंतिम भेंट
सिद्ध भेल | तीन बरखक बाद एकदिन ई खबरि सूनि बहुत आहत भ’ गेलहुँ जे हमर प्रिय
मनोजानंद झाजीक ह्रदय-गति रुकि गेलनि | लदारीसँ कलिगाम धरि शोकक लहरि व्याप्त भ’
गेल छलै | दू बरखक एकटा बेटी आ किछुए दिनक एकटा पुत्र शांतीकें द’ क’ एहि जगतसँ
प्रस्थान क’ गेलाह झाजी |
कोनो रोजगारक खगता छल हमरा, से आंशिक रूपसँ प्राप्त भेल | प्रशिक्षु-पर्यवेक्षकक रूपमे छओ
मासक अवधि लेल डेढ़ सय रूपया स्टाइपेंडपर
पौधा संरक्षण केन्द्र, मधुबनीमे काज करबाक अवसर भेटल |
राज्य सरकार द्वारा बहुत गोटेकें
ई अवसर विभिन्न जिलामे देल गेलनि |
जाधरि बैंकमे भर्तीक विज्ञापन नहि अबैत
छै, ताधरि ई हमहूँ स्वीकार क’ लेलहुँ | बादमे
स्टाइपेंड राशि दू सय क’ देल गेलै |
मासमे जिला भरिक प्रशिक्षु सबहक मीटिंग होइ छलै दरभंगामे जिला पौधा
संरक्षण पदाधिकारीक कार्यालयमे | किछुए मासक बाद एक दिन मीटिंगमे नन्द कुमार झाजी
( मोहना, झंझारपुर ) कहलनि जे टाइम्स ऑफ़ इंडियामे बैंकमे बहालीक विज्ञापन आबि
गेलैए, जल्दिए पठा दियौ | दोसर दिन मधुबनी पुस्तकालय जाक’ टाइम्स ऑफ़ इंडियामे छपल
विज्ञापन देखि तदनुसार आवेदन पठा देलिऐ | दू मासक बाद लिखित परीक्षा भेलै पटनामे |
तीन मासक बाद परीक्षामे उतीर्ण हेबाक
सूचनाक संग साक्षात्कारमे भाग लेबाक आदेश भेटल |
बैंकमे आवेदन पठा देलाक बाद साक्षात्कारक अवधि धरि लेखन कार्य एकदम छोड़ि
देलहुँ, कतहु जाएब सेहो बन्द क’ देने छलहुँ | मुख्य काज छल परीक्षाक तैयारी आ
तैयारी मात्र |
साक्षात्कारक बाद फेर पौधा संरक्षण केन्द्र जाएब, घरक कोनो छोट-मोट काज
रहैत छल से करैत, पुस्तकालय होइत घर आबि जाइत छलहुँ आ मिथिला मिहिर अथवा मैथिलीक
कोनो किताब पढ़ब, कतहु गोष्ठीमे जाएब, साहित्यकार लोकनिक सम्पर्कमे रहब नीक लगैत छल
|
हमरा होइत छल जे जीवन जीबाक लेल जहिना नोकरीक आवश्यकता अछि, तहिना
साहित्यसँ लगाव सेहो आवश्यक अछि |
हम देखैत छलिऐक जे लोक स्वस्थ जिनगी नहि जीबि रहल अछि, लोककें सामान्य
जिनगी जीबाक लेल जे वस्तु सभ हेबाक चाही, तकर अभाव छै | दोसर दिस अस्वस्थ परम्परा
सबहक त्याग करबाक साहसक अभाव सेहो छै |
हमरा लगैत छल जे जाधरि साहित्यसँ लगाव नहि
रह्तै, ताधरि जीवनमे संतुलन नहि आबि सकैत अछि | हमरा होइ छल जे एहि लेल स्त्री, पुरुष सभकें समान रूपसँ शिक्षित हेबाक चाही | मुदा हम तँ अपने घरमे
हारल छी | हमर पत्नी जँ शिक्षित नहि भेलीह
त हमहूँ स्वस्थ जीवन नहि जीबि सकैत छी | तें हमरा लगैत छल जे एतेक योग्यता त अवश्य
भ’ जेबाक चाहियनि जे ओ कोनो पोथी अथवा पत्रिका पढ़ि लेथि | हमरा ई बुझल भ’ गेल छल
जे अक्षरक ज्ञान छन्हि, तें हम जे चाहैत
छी, से संभव भ’ सकैत अछि |
एहने विश्वास नेने हम एक बेर सासुर गेलहुँ आ रातिमे भेंट भेल त मिथिला
मिहिरक एकटा पेज सामने राखि पढबाक लेल कहलियनि | बड़ी काल अनुरोध करैत रहि गेलहुँ,
ओ टस-सँ -मस नहि भेलीह | हमरा एकदम ‘कन्यादान’क बुच्ची दाइ जकाँ लाग’ लगलीह | हम
कहलियनि, तखन अहाँ बाहर जाउ | ओ बाहर जाक’ माए लग जाक’ सूति रहलीह | हमरा भेल जे
काल्हि अवश्य हमर बात मानि लेतीह, मुदा से नहि भेल | हमर सासु सेहो प्रयास केलनि
हमरा तरफसँ मुदा सफल नहि भेलीह | आ लगातार
तीन राति धरि यैह चलैत रहल | ओ अबैत छलीह,
हम पढ़’ कहैत छलियनि, ओ ओहिना तकैत रहि जाइत छलीह, फेर हम कहैत छलियनि बाहर जाए
लेल, ओ निकलिक’ माए लग जाक’ सुति रहैत छलीह |
चारिम दिन सबेरे जलखै क’ क’ अपन
बैग ल’ क’ हम बाहर निकलि गेलहुँ | दरबज्जापर सार छलाह | ओहो संगे विदा भेलाह | हुनका
अपन स्थिति नै कहलियनि, एतबे कहलियनि जे जा रहल छी, जाएब
जरूरी अछि | सासु रोकने छलीह, हुनकर बात नै मानने छलहुँ | हम सभ किछु-किछु गप करैत
जा रहल छलहुँ | हम तय क’ नेने छलहुँ जे आब किन्नहु नहि घूरब | टोलसँ निकलि गाछीक
बीच पहुँचल छलहुँ |
चौदह-पन्द्रह सालक एकटा लड़की
ह्कमैत आबि आगूमे ठाढ़ भ’ गेलि, हुनका पाछू एकटा अधवयसू महिला सेहो छलीह | हम अकबका
गेलहुँ | ओ हमरा दूनू गोटेकें झुकिक’ प्रणाम केलनि | पाछाँ हुनकर माए छलथिन | ओ
कहलनि जे हम सभ अहींसँ भेंट कर’ जाइ छलहुँ
त पता चलल जे अहाँ जा रहल छी, तें दौड़ल एलहुँ, अहाँकें आइ नै जाए देब हम सभ |
ओ हमरा हाथसँ हमर बैग छीनि लेलनि आ दुनू माइ-धी हमरा सभकें घुरबाक लेल जिद्द क’ देलनि | हमरा लेल दुनू अपरिचित
छलीह | हमर सार जनैत छलखिन | हुनका सबहक बीच जे
गप भेलनि ताहिसँ पता चलल जे ई
बच्ची अपन माए संगे मामा गाम आएल छथि, ई सभ काल्हि साँझमे एलीह, एखन हमरासँ
भेंट कर’ गेल छलीह, हमर सासुसँ
किछु गप भेलनि आ दौड़लीह हमरा
घुरयबाक लेल |
हम किछु बहन्ना बनेलहुँ गाम
जेबाक लेल, मुदा ओ सभ किछु सुनबाक लेल
तैयार नहि भेलीह | कहलनि जे आइ हम सभ नहि मानब, हम सभ अहाँसँ बिना गीत सुनने अहाँकें नहि छोड़ि सकैत छी |
हुनकर माए कहलनि जे अहूँकें सूनब आ इहो सुनाएत, चलू आइ नै जाउ | हुनका सभकें
देखि-सूनि हमरो पयर आगू नै बढ़’ चाहैत छल | लागल जेना हमरे समस्याक समाधानक लेल
भगवान हिनका सभकें पठा देलखिनहें |
ओ हमर बैग नै द’ रहल छलीह | हमर सार निर्णय सुनौलनि | हमरा कहलनि, आइ
यात्रा स्थगित करू, काल्हि देखल जेतै, प्राचीकें कहलखिन दाइ तों बैग नेने जाह, हम
हिनका चौकपर घुमाक’ नेने आबि रहल छी | अही बातपर सहमति भेल | प्राची हमर बैग ल’क’
माए संगे घुरि गेलीह | हम सभ हाजीपुर
चौकपर पान ख़ाक’ घुरलहुँ |
प्राची आ हुनक माएक उपस्थिति वातावरणकें रसमय बना देने छल | वस्तुतः
साहित्य आ संगीतक प्रेम जीवनकें आनन्ददायक बना दैत छैक अन्यथा लोक ककरो खिधांस करबामे अपन अधिक समय बितबैत
रहैत अछि अथवा अपन बड़ाइ करबामे | हिनका दुनू गोटेमे जे ई चेतना छलनि से हमरा
अद्वितीय लागल | प्राची अपन पाठ्य-पुस्तकसँ
सेहो कोनो-कोनो कविता सुनबैत छलीह आ हमरो सूनि खूब आनन्दित होइत छलीह |
बच्चन जीक कविता ‘ जो बीत गयी सो बात गयी...’ बहुत नीक जकाँ सुनबैत छलीह |
दिनमे भोजनक बाद बड़ी काल आ रातिमे भोजनक बाद थोड़े काल बैसकी चलैत छल :
गीत-नाद, कविता-संस्मरण, हँसी-ठहक्का चलैत रहैत छल | एकटा नियमक पालन प्राची करैत
छलीह जे ओ कखनो एसगर नै अबैत छलीह,
मायक संगे अबैत छलीह | कखनो-कखनो
हुनकर मामी सभ सेहो अबैत छलखिन, हमर दूनू सरहोजि त रहिते छलीह | कखनो-कखनो किछु
पुरुष लोकनि सेहो आबि जाइत छलाह |
प्राची बच्चीकें मौसी कहैत छलखिन आ हिनको गोष्ठीमे सम्मिलित करबाक प्रयास
करैत छलीह, मुदा बच्चीकें ओहो सभ परिवर्तित नहि क’ सकलीह | एकदिन कहलनि जे
द्विरागमनक बाद अहाँक संग रह’ लगतीह त
देखबै सभ बदलि जेतनि, नैहरमे लाज होइ छनि | हुनकर माए पुछ्लनि, ‘अहाँक बहिन सभ
तँ पढल-लिखल हेतीह ने ?’
हम निरुत्तर भ’ गेल रही |
हमरो तीनटा छोट बहिन अछि | ओकरो सबहक पढाइक स्थिति त यैह छै |
हमर चित्त शांत भ’ गेल रह्य | हमर सभ प्रश्नक जबाब हमरा भेटि गेल छल |
चमत्कार भेलै जे बच्चीकें बदलबाक हमर प्रयास बन्द भ’ गेल | हम फेर हुनका
पढबाक जिद्द नै केलियनि, फेर घरसँ बाहर
जेबाक लेल नै कहलियनि | हम सोचि नेने रही जे हमरा संग जखन रह’ लगतीह तखन हम प्रयास
करब, आ जँ तैयो संभव नै भेल त अपना
बेटीकें खूब पढयबाक प्रयास करब |
हमरा लागल जेना अस्तित्व हमरा वैह देलक अछि जे हमरा आ हमरा परिवारक लेल
जरूरी अछि, अस्तित्वकें हमरा संग हमर परिवारोक लेल व्यवस्था करबाक छैक |
एकदिन जखन एसगर रही
त अपनेसँ गप होइत रह्य |
‘जँ बियाहसँ पहिने प्राचीकें देखने रहितियनि त ....?’
‘त की ? वैह होइतै जे भेलैए | बच्चा जे-जे मंगैत छैक से सभ टा ओकर
माए-बाप नै दै छै, बच्चाकें वैह देल जाइ छै जे माए-बाप ओकरा लेल ठीक बुझैत छै |
अहाँ जान’ चाहैत छी त कखनो पुछियौ प्राचीकें जे हुनका सभकें केहेन लड़का पसन्द
हेतनि |’
एक दिन हुनका पुछलियनि जे अहाँ लेल केहेन वरक खोज भ’ रहल अछि, त प्राची
चुप रहि गेलीह, हुनक माए कहलनि, काल्हि अबिते छथिन, कहबे करताह |
प्राचीक पिता कलाकार छथिन, कहलनि जे लड्काक लेल हमरा मोनमे कृष्णक छवि
आबि रहल अछि, आँखि, नाक,मूँह,केश सभ एहेन जेना हम सभ कृष्णक फोटोमे देखैत छियनि,
इंजिनियर अथवा डॉक्टर होथि, हँसमुख होथि, घर-दुआरि- पक्का मकान होनि, खेत-पथार
होइन |
हमर सार पुछलखिन जे गनबै कत्ते त कहलखिन, से हमर स्थिति त जनिते छी अहाँ सभ जे किछु गनबाक
ओकादि नै अछि हमरा, तखन भगवाने कोनो उपाय लगेथिन त हेतै |
किछु गोटेकें हँसी लागि गेल रहनि |
हमरो हुनक कल्पना,आस्था आ विश्वासपर आश्चर्य भेल रह्य, मुदा तीस बरखक बाद
जखन प्राचीसँ भेंट भेल त बड़ी राति धरि हम
सभ गोटे हुनके मूँहें हुनक पिताक सपना साकार हेबाक कथा सुनैत रहि गेलहुँ आ विश्वास
भेल रह्य जे प्रतीक्षा करबाक लेल धैर्य हो आ किछु त्याग करबाक साहस हो त अस्तित्व
अहाँक सभ मांग पूर्ण क’ सकैत अछि |
पटना / 14.06.2021