Saturday, 28 January 2012

एना रे बिल्टू कतेक दिन रहबें

                  एना रे बिल्टू कतेक दिन रहबें
(गीत)


करजेमे  जीबें   आ  करजेमे   मरबें ।
एना  रे  बिल्टू   कतेक  दिन  रहबें ?

तोरे  पसेना सँ  हरियर  ई  भारत
ई रॉकेट्ई प्लेनई ऊँचका इमारत
तों नारे - पुआर पर कतेक दिन सुतबें ?
एना  रे  बिल्टू   कतेक  दिन  रहबें ?


तोरा लेएखनो ने लोटा ने थारी
ओम्हर घोटालामहलहावागाड़ी
दोस आर दुश्मन केँ कहिया तोँ चिन्ह्बें ?
एना  रे  बिल्टू   कतेक  दिन  रहबें ?


दू  हाथ  अनको छै,  दू हाथ तोरो
कटलें अन्हार राति देख अपन भोरो
बाट कोनो गांधीक  कतेक दिन तकबें ?
एना  रे  बिल्टू   कतेक  दिन  रहबें ?



टुइट जेतै बन्हन तों जोर कदेखही
भेटि जेतौ संगी  तों सोर कदेखही
हुकुर - हुकुर जिनगी कतेक दिन कटबें ?
एना  रे  बिल्टू   कतेक  दिन  रहबें ?



सूतल अछि लोक तों सभ कें जगबिहें
कांट-कुश झारि-झारि रस्ता बनबिहें
कनलें  कतेक दिन,  कहिया तों हंसबें ?
एना  रे  बिल्टू   कतेक  दिन  रहबें ?






       (  प्रकाशित : मैथिली पत्रिका देशज २००१ )


डिबिया

                                        
डिबिया
(कविता)

बंगला अछि
गाड़ी अछि
टी. व्ही. अछि
फ्रीज़ अछि
कूलर अछि
फोन अछि
कतेक धनीक छी हम सब,

जीबि नहि सकैत छी
बिना घूसक
क नहि सकैत छी
बेटाक बियाह
बिना दहेजक
कतेक गरीब छी हम सब !



( प्रकाशित : आरम्भ, मैथिली पत्रिका, पटना, अंक २४ / जून २०००  )


मुट्ठीमे भोर अछि

                                                  मुट्ठीमे भोर अछि
(गीत)

भरि  गाम  चोरे,  तऽ चोर कहू ककरा ।
कोतवालो सएह तखन सोर करू ककरा ।।

छोट माँछ, पैघ मांछ
आर बहुत पैघ माँछ
छोट जाल, महाजाल
आर महा - महाजाल
गुम्म छी  जे  बंसी आ बोर कहू ककरा
भरि  गाम  चोरे,  तऽ चोर कहू ककरा ।।


छोट   बाँस,  पैघ   बाँस
बीस   आ  उनैस   बाँस
लहकि रहल, महकि रहल
फूलि  रहल  साँस - साँस
सभ  लोक  पैघे  तऽ  थोड़ कहू ककरा
भरि  गाम  चोरे,  तऽ चोर कहू ककरा ।।


भेटि   गेल   कारा
ढेकार हम करैत छी
छी बिलाइ, मूस केर
शिकार हम करैत छी
सभ  मुँह  कारी  तऽ  गोर  कहू ककरा
भरि  गाम  चोरे,  तऽ चोर कहू ककरा ।।


जे भेलैक,  से भेलैक
आब  तेना  नै  हेतै
हाथ  हो  मशाल तऽ
अन्हार कोना  नै जेतै
मुट्ठीमे  भोर  अछि  खोलि  देखू तकरा
भरि  गाम  चोरे,  तऽ चोर कहू ककरा ।।





प्रकाशित : मैथिली पत्रिका देशज २००१ )





Friday, 27 January 2012

रूपांतरण

                                   
रूपांतरण
(कविता)



हमरा मोनमे नचैत रहैत अछि ---
          ब्लैक मार्केटिंग क लाखो रुपैया
          एकटा   एमबैसेडर           कार
          एकटा       पानासोनिक रेडियो
          एकटा           खूब सुन्दर पार्क
          आ ---   दू बोतल शराब !

हम तीनमंजिला सं उतरि
         बैसैत  छी                  कारमे
         जे द्रुत गतिसँ             दौडेत
         ल जाइत अछि           हमरा
दूर---दूर ---            एकटा पार्कमे !
        बहि रहल अछि मंद-मंद पवन
        पसरि रहल अछि कामिनीक सुगन्धि
        बाजि रहल अछि रेडियो
        नाचि रहल अछि सगरो संसार
        , हाथमे नेने दू बोतल शराब
        ठाढ अछि आगांमे
        इन्द्र लोकक परी-सन
एकटा ---एकटा ----जुआएल नर्तकी !
        कल्पनाक एही क्रम मे
        भ जाइत अछि मुनहारि साँझ,
        आब हमर भक्क टूटैछ
        आबि जाइछ  हमरामे क्रियाशीलता
        लगैत अछि नर्तकीक बाहुपाश
        एकटा लेपटाएल गहुमन साँप जकाँ
        रेडियो क आवाज लगैछ
        जंगल मे चिकडेत
        कोनो हुराढ़क स्वर जकाँ
        आ सम्पूर्ण पार्क
एकटा --एकटा मरुभूमि जकाँ !
        हम एकटा गहुमन  सं हाथ छोड़ाए
        एकटा हुराडसं त्रस्त भेल
        भाग लगैत छी ओहि मरूभूमि सं
अपन---- अपन डेरा दिशि !
        छुइट जाइछ हमर रेडियो आ कार
        छुइट  जाइत अछि मेन पीच रो ड
        आ हम अफस्यांत भेल
        जा रहल छी
एकटा -- एकटा एकपेरिया धेने !
       गुजगुज अन्हारमे 
       हम ताक लगैत छी
       अपन बामा आ दहिना
       सभ तरि देखैत छी
       टूटल-फाटल छोट -छीन घर
       भुकभुक करैत एकटा डिबिया
       ओसारा पर बैसल एकटा नर -कंकाल
       जकरा देहसँ टप-टप
       चूबि रहल छै घाम, किन्तु
       राखल छै हाथमे
       सुखाएल - टटाएल
एकटा ------एकटा रोटीक टुकड़ी !
       हमरा लगैछ जेना आबि गेल होइ
       कोनो देवताक लोकमे
       हम देखैत छी ओकर आँखिक नोर
       हम जाइत छी ओकरा लगमे
      सटा लैत छी ओकरा अपन छाती सं
      आ हम सोच लगैत छी
      इहो तं
हमर----हमर भाइए थिक !
       हमरा होम लगैछ अपनेसँ घृणा
       टप -टप चूअ  लगैछ
       पश्चातापक नोर
       दहा जाइत अछि मोन सं
       पूंजीबादक सभटा बिकार
       आ जातिबादक सभटा पाप
         आब हमरा लगैछ जेना
       दानव सं देवतामे
       भ गेल होअए
हमर ----हमर रूपान्तरण |






( प्रकाशित : वैदेही ७२ / पेज ८ -९ -१२   )









महाभारत आ हम

                                  महाभारत आ हम
(कविता)

भोरे  उठि
सब दिन
करैत छी संकल्प
विदुर जकाँ जीबाक
अपन जीवन
दस बजैत - बजैत
शुरू भ जाइत अछि महाभारत
टूटि जाइत अछि हमर संकल्प
बिसरि जाइत छी अपन कर्तव्य
बन्न भ जाइत छी हम
एकटा छहरदेबालीमे
अपनहि कोनहु पाखंडक
भ जाइत छी दास
आ पांच बजैत - बजैत
पबैत छी
अपनाकेँ
कुरुक्षेत्रक कातमे
पड़ल शरशय्या पर
बेचारा
भीष्म पितामह- सन |


( प्रकाशित : मैथिली पत्रिका आरम्भ, पटना, अंक २४ / जून २०००   )

हमर संसार


हमर संसार
(कविता)


बेड  पर पड़ल छी
अस्पताल अछि
सूई अछि, सिरींज अछि
टेबलेट आ केपसूल अछि
इंजाइम अछि, टॉनिक अछि
कतेक असहाय छी हम
कतेक दुखद  अछि ई  क्षण,
हमरा देखैले
आबि गेल अछि कतेक लोक
बेटी-जमाए
बेटा - पुतोहु

नाति-नातिन

पौत्र - पौत्री
मित्र -पड़ोसी
कतेक सामर्थ्यवान छी हम
कतेक सुखद अछि ई क्षण !




( प्रकाशित : मैथिली पत्रिका आरम्भ, पटना, अंक २४/ जून २००० )


गाम आ दिल्ली

गाम आ दिल्ली
(कविता)





एकेटा घर
आ सत्रह टा लोक
कहैत छलाह बुच्चुन भाइ 
गेल छलाह दिल्ली,

सात-सात टा घर
आ दुइएटा लोक
कहैत छलाह एन. झा
गेल छलाह गाम |

                                      
                            
(प्रकाशित : मैथिली पत्रिका आरम्भ, पटना, अंक २४/जून २०००)  





Thursday, 26 January 2012

हमरा चिंता कथी के ?

हमरा चिंता कथी के ?
(गीत)


बुच्ची बढती, लिखती - पढ़ती
हमरा चिंता कथी के ?

                                तिलक - दहेजक दानव केर
                                उत्पात मचल अछि मिथिलामे

तै ले बुच्ची खडग उठौती
हमरा चिंता कथी के ?

                               ज्ञान और विज्ञानक सम्पति
                               अर्जित करती जीवनमे

नव सुरुज आ चान बनौती
हमरा चिंता कथी के ?

                                 लोकक मोल बुझैछै एखनहु
                                 लोक बहुत छै दुनियामे

संगी अप्पन अपनहि चुनती
हमरा चिंता कथी के ?

                                  अपनहि श्रम सं बाट बनौती
                                  एहि बबूर के जंगलमे

दुःख सं लड़ती आगाँ बढती
हमरा चिंता कथी के ?
                          




कही तें वंदे मातरम्

जपैछी  वंदे  मातरम्
(गीत)




हम  भारत  केर  पूत,
पुजैछी भारती कें हम ।
जपैछी  वंदे  मातरम् ।।

                                    लाल  बहादुर   केर  नारा  सँ,
                                    गुंजि  उठल  छल  हिंदुस्तान ।
                                    चिकरि क कहलनि सबसँ पहिने ,
                                    जय  जवान,जय जय किसान ।।

 जय जवान जय जय किसान
नारा लगबै छी हम
जपैछी वंदे मातरम् ।।

                                   ताल  ठोकैए  हमर  हिमालय,
                                   ललकि कहै छथि जमुना -गंगा
                                   फहराइते  ई  रहत  अमर भए,
                                   लालकिला  पर  हमर  तिरंगा ।।
अपन स्वतंत्रता गमा एको छण,
रहि ने सकैछी हम ।
कही तें वंदे मातरम् ।।

                                   लक्ष्मी,  सुभाष आ भगत सिंह,
                                   एखनहुँ भारतमे छथि जिबइत ।
                                   स्वतंत्रता  केर  बलि - बेदी पर,
                                   प्रान  अपन   अर्पित  करइत ।
स्वर्ग  तुच्छ आजादीक आगाँ
सैह बुझइ छी हम ।
कही तें वंदे मातरम् ।।

                                    हम   मैथिल,   बंगाली   वा
                                    पंजाबी  आ   कि   मद्रासी ।
                                    सबहक जन्मभूमि थिक भारत,
                                    हम    सब  छी  भारतवासी ।।

अनेकतामे  एकता केर
रंग भरैछी  हम
कही तें वंदे मातरम् ।।