किछु ने किछु सदिखन सिखबाक मोन होइए
पढ़बाक मोन होइए, लिखबाक मोन होइए,
किछु ने किछु सदिखन, सिखबाक मोन होइए ।
अन्हड़ जे रातिखन एलै, सब गाछ डोलि गेलै,
टिकुला कतेक खसलै, बिछबाक मोन होइए ।
सासुर इनार होइए आ डोल थिकहुँ हमहूँ,
किछु ने किछु एखनहुँ, झिकबाक मोन होइए ।
अहाँ आबि जे रहल छी, सुनिकऽ बताह भेलहुँ,
गोबर सँ आइ आङन, निपबाक मोन होइए ।
दुइ ठोर थीक अथवा तिलकोर केर तड़ुआ,
होइत अछि लाज लेकिन, चिखबाक मोन होइए ।
कोनो ऑफिसक चक्कर, लगबऽ ने पड़ै ककरो,
ई बीया विचार – क्रान्तिक, छिटबाक मोन होइए ।
आजादीक लेल एखनहुँ, संघर्ष अछि जरूरी,
व्यर्थ गेल सब माँगब, छिनबाक मोन होइए ।
“विदेह” पाक्षिक इ
पत्रिका वर्ष ५, मास ५०, अंक १०० मे छपल ।