Wednesday, 22 February 2012

किछु ने किछु सदिखन सिखबाक मोन होइए


किछु ने किछु सदिखन सिखबाक मोन होइए




पढ़बाक   मोन   होइए,  लिखबाक  मोन   होइए,
किछु  ने  किछु सदिखन, सिखबाक  मोन होइए ।

अन्हड़ जे  रातिखन  एलै,  सब गाछ  डोलि गेलै,
टिकुला  कतेक  खसलै,  बिछबाक  मोन  होइए ।

सासुर  इनार  होइए     डोल  थिकहुँ  हमहूँ,
किछु ने किछु  एखनहुँ,   झिकबाक मोन होइए ।

अहाँ आबि  जे रहल छी,  सुनिकऽ  बताह  भेलहुँ,
गोबर  सँ  आइ  आङन,  निपबाक  मोन होइए ।

दुइ  ठोर  थीक   अथवा  तिलकोर  केर  तड़ुआ,
होइत अछि लाज लेकिन,  चिखबाक  मोन होइए ।

कोनो  ऑफिसक  चक्कर, लगबऽ  ने पड़ै  ककरो,
ई बीया  विचार क्रान्तिक, छिटबाक मोन होइए ।

आजादीक  लेल   एखनहुँ,  संघर्ष   अछि  जरूरी,
व्यर्थ  गेल  सब माँगब,  छिनबाक  मोन  होइए ।



“विदेह” पाक्षिक इ पत्रिका वर्ष ५, मास ५०, अंक ‍१०० मे छपल ।

जै खातिर मारामारी अछि


जै खातिर मारामारी अछि



जै   खातिर    मारामारी   अछि,
भात – दालि – तरकारी    अछि ।

छात्र     गरीबक    धिया – पुता,
विद्यालय    सरकारी      अछि ।
ई   जे   उल्लू  देखि  रहल  छी,
लक्ष्मी   मैयाक  सबारी   अछि ।
सदाचार   केर   शिक्षा   सबठाँ,
सबठाँ     चोरबजारी    अछि ।
भोज    करत   रसगुल्ला   केर,
बड़का   ई   भ्रष्टाचारी    अछि ।
घूस,    दहेजक   चस्का   बूझू,
छूआछूतक    बीमारी    अछि ।
देश   द्रौपदी,  हम  भीष्म  छी,
हमरहुँ    ई   लाचारी   अछि ।




“विदेह” पाक्षिक इ पत्रिका वर्ष ५, मास ५०, अंक १०० मे छपल ।

गीत कोना कऽ गाबी / मैथिली गीत

                          
गीत कोना क गाबी




एहेन  हाल मे कानि  सकै  छी,  गीत  कोन क गाबी ??




गोली - बारूदक  मौसम मे, हम  कविता  केहेन सुनाबी ?
हाल  देखि  बे-हाल  भेल  छी,  गीत कोना कऽ   गाबी ??



गाम - गाम आ शहर – शहर मे, आतंकक अछि    छाया ।
ठोहि पारि क कानी रहल अछि, गौतम  बुद्धक  काया
शब्द - शब्द सँ  चिनगी उड़इछ,  शब्द - शब्द सँ धधरा ।
अपनहि घर,  हम जड़ा रहल छी,  अपन - अपन बखरा ।

गामक - गाम  जरैए  धह - धह,  ककरा कोना बचाबी ?
एहेन  हाल मे कानि  सकै  छी,  गीत  कोन क गाबी ??



टूटल   सरस्वती   केर,  वीणा  केर     संगीतक  धारा ।
मनुखक छुद्र  स्वार्थ पर कनइत,  अछि विज्ञान बेचारा
पत्रहीन, सभ गाछ  नग्न अछि,  जेम्हरे  देखू      तेम्हर
कत अलोपित भेल  गाम सँ,  बऽड़क गाछ     झमटगर

थाकल - हारल  लोक  सोचैए,  कतऽ   कने   सुस्ताबी ?
एहेन हाल मे  कानि सकै छी,  गीत  कोना क गाबी ??



बेर - बेर    उठबैए   हाबा,      एखनो   वैह   सवाल
बुद्ध – महावीरक   ई   धरती,  एहेन   किये    कंगाल
द्रोण - भीष्म केर चुप्पी आ  धृतराष्ट्रक   कुत्सित  सपना ।
बेर – बेर - दोहरैल जाइत अछि,  लाक्षा-गृह  केर घटना

उचित  यैह  जे  आमक खातीर,  आमक  गाछ लगाबी ।
चलै चलू हम सभ हिल-मिल कऽ,  अपन बिहार  बचाबी ।।






(परिप्रेक्ष्य / सन्दर्भ - ओहि समयक मिथिला सहित सम्पुर्ण बिहारक दुरावस्था)
( रचना : सिवान / २२.०२.१९९२ )




घऽरे केँ मंदिर बनाउ / मैथिली गीत

                            
घऽरेकेँ मंदिर बनाउ





बनाउ   हे  यै कनियाँ,
घऽरे केँ मंदिर बनाउ |

                               

                                 कखनहुँ घर अन्हार रहय नहि
                                 अखण्ड ज्योति, प्रेमक जड़ाउ |



गमकय भरि घर-आँगन गम-गम
बातेँ केर बेली बनाउ |



                                 हो सिनेह मन मे सब जन  ले'
                                 आसक अछिञ्जल चढ़ाउ |



धूप – दीप - नैबेद्य हो करुणा
सेवा केँ पूजा बनाउ |



                               सासु - ससुर छथि देवी - देवता
                                श्रद्धा सँ  माथा झुकाउ |




( प्रकाशित : मिथिलायतन, रायपुर, छत्तीसगढ़ : दिसम्बर २००५ )



एना गे सुगिया कतेक दिन रहबें ?

एना गे सुगिया कतेक दिन रहबें ?



टूइट    जेतै    बन्हन,
तोँ जोर क देखही





नोरे  के  जिनगी,  कतेक दिन उघबेँ ?
एना गे सुगिया  कतेक  दिन  रहबेँ ?



तोहर  वयस    जेना,
कोबर  के   कनियाँ ।
तोरा  ले     एखनहि,
अन्हार भेल दुनियाँ ।

तोँ  अपने कपार पर कतेक दिन झखबेँ ?
एना गे सुगिया  कतेक  दिन  रहबेँ ?



तोरा   ले’  सभ  ठाम,
सभ    बाट  काटल ।
सभ   दृष्टि    काटल,
आ सभ गाछ काटल

ओकरा सँ छाहरि केर, आश कोना  करबेँ ?
एना  गे सुगिया  कतेक  दिन  रहबेँ ?



लोक  तोरा सोझ भ ऽ,
चऽलहु      ने       देतौ ।
जीबऽ      ने      देतौ,
आ   मरहु   ने      देतौ

चालनि मे पानि तोँ कतेक दिन भरबेँ ?
एना गे सुगिया  कतेक  दिन  रहबेँ ?



जिनगी   छै    सभकेँ,
आ जिनगी छौ तोरो
राति  अपन    देखलेँ,
तऽ देख अपन भोरो

बाट कोनो रामक,  कतेक दिन तकबेँ ?
एना गे सुगिया  कतेक  दिन  रहबेँ ?



टूइट    जेतै    बन्हन,
तोँ जोर क देखही
भेटि    जेतौ        संगी,
तोँ सोर कऽ देखही ।

हुकुर-हुकुर जीबेँ, तऽ जीबि क की करबेँ ?
एना गे  सुगिया   कतेक  दिन  रहबेँ ?






(परिप्रेक्ष्य / सन्दर्भ विषय – बाल वैधव्य ओ पुनर्विवाह)  
( प्रकाशित : मिथिला मिहिर / जून ८७ / पहिल पक्ष )




हमर ई गीत आइ सँ २० २५ वर्ष पहिने, महादेव ठाकुरजी द्वारा, nv (new voice) Series, Mumbai (Bombay) सँ हुनिकहि द्वारा गाओल एक गोट मैथिली ऑडियो कैसेटमे निकलल छल । कैसेटक नाँव छल "मैथिली गीत संग्रह" । बाद मे बहुतहु गोटे विभिन्न मैथिली सांस्कृतिक मञ्च सभपर गओलन्हि ।





एकहि मन्त्र जपब जीवन भरि / मैथिली गीत


                         
एकहि मन्त्र जपब जीवन भरि






हम नहि जायब  मास करै ले',  हम नहि  करब   उपास ।
अपनहि मन,  मंदिर बनि पाबय, तकरहि करब प्रयास ।।



नहि  जायब  हम  काबा – काशी,  वा   बृन्दावन धाम ।
हम तऽ  प्रेमक दीप जड़ायब, घुमि-घुमि अपनहि गाम ।।



रामायण,  गुरुग्रण्थ आ गीता,  बाइबिल  आओर  कुरान ।
सभ ग्रण्थ केर  मूल मंत्र थिक,  मानव केर     कल्याण ।।



चाननठोप - पाग आ  डोपटा,  जप-तप-योग-धियान ।
सभ   ध्यान  सऽ  सुन्दर  लागय, देशभक्ति  केर ध्यान ।।



एकहि  माला,   एकहि  पूजा      एकहि  टा  ध्यान ।
एकहि  मन्त्र  जपब  जीवन  भरि, जय-जय हिंदुस्तान ।।





( प्रकाशित : हिंदी पत्रिका "सद्भावना दर्पण", क्षेत्रिय भाषा स्तम्भ - "मैथिली" अन्तर्गत,  रायपुर, तत्कालीन मध्य प्रदेश आ एखनुक छत्तीसगढ़ )



Tuesday, 21 February 2012

ई जुनि पूछू


                                               
ई जुनि पूछू






ई  जुनि  पूछू  अहाँ  बिना,
राति  बितैए  हमर  कोना |




किछु बात  मोन पड़ि आबय |
मोनक  पंछी  उड़ि    भागए |
चैनक चिल्हका उठि कानए |
कतबो  कहने  नहि   मानए |
लाख थकनी  रहइछ तैयोऽऽ,
गाढ़ निन्न    नहि  आबयऽऽ |

ई  जुनि  पूछू  अहाँ  बिना,
राति  बितैए  हमर  कोना |




किछु  दर्द  एहेन  सन  होइए |
लिखितो जे लिखल ने   जाइए  |
कहितो  जे  कहल   ने जाइए |
लेकिन  जे  सहल  ने जाइए |
मजबूरी  त  अछि  रहबा ले'ऽऽ,
एसगर   रहल  ने  जाइए,ऽऽ |  

ई  जुनि  पूछू  अहाँ  बिना,
राति  बितैए  हमर  कोना |




अछि आँखिक निन्न बिलायल
लगइछ  किछु  जेना  हेरायल
मन  विकल  भेल  औनायल
नोरे   नयना    भरि   आयल
प्रिये ! अहाँ केर सुधिक लहरि मेऽऽ
जाइत     छी      भसिआयलऽऽ |

ई  जुनि  पूछू  अहाँ  बिना,
राति  बितैए  हमर  कोना |


ई गीत विजय सिंहजी केर अवाज मे “परदेसिया” नामक ऑडियो कैसेट मे नीलम कैसेट सँ बहरायल । यद्यपि एहि मे जे गयबाक भाष प्रयोग भेल अछि से मूल भाष सँ सर्वथा भिन्न अछि तथापि निश्चित रूपेँ एहि गीतक गायन आ संगीत संयोजन मे विजय सिंहजी बहुत मेहनति कएलन्हि अछि । सभसँ नीक बात जे शब्दक उच्चरण ओ वाक्य – विन्यास केँ यथावत रखलन्हि अछि । ओना एहि कैसेट मे ई गीत नवीन संगीत (रैप वा पॉप) सन बुझना पड़ैछ, पर एकर मूल संगीत सत्तरि केर दशक केर हिन्दी फिल्मी संगीत जेकाँ सौम्य व सुगम थिक । दिक्कति इएह जे कागज पर सिर्फ गीत लीखि सकैत छी हम, ओकर संगीत नञि ।


( १९७८ मे प्रकाशित गीत संग्रह 'तोरा अँगना मे' केर गीत क्र. ‍१५ )
संगहि “गीतक फुलवारी” मे सेहो प्रकाशित ।